Tankhwa Hindi Kahani: शुभम मां की हालत देखकर परेशान हुआ जा रहा था। अभी दो महीने तो गुजरे थे.. पिताजी को गुजरे हुए और दो महीने में ही लगता था मां एकदम सूख गई है। शुभम किसी तरह चाहता था कि मां नॉर्मल जिंदगी में वापस लौट आए । पिताजी के यादों से बाहर ..ताकि उनका जीना आसान हो जाए । जाने वाले चले जाते हैं लेकिन उनके साथ इस तरह जुड़े रहना जीना मुश्किल कर देता है अतः उन यादों से बाहर ही आना बेहतर होता है । शुभम को मां की गुम हुई मुस्कान वापस लौटाने की फिक्र खाए जा रही थी।
सुबह शायद मां को कोई काम था अतः उसने शुभम से ₹300 मांगे .. शुभम ने बिना सवाल किए तुरंत निकाल कर दे दिए ..लेकिन पता नहीं क्यों उसे देना अच्छा नहीं लग रहा था जब तक पिताजी थे तब तक सारे खर्च मां करती थी कभी उन्हें शुभम से मांगने की जरूरत नहीं पड़ी और शुभम नहीं चाहता था कि मां उसके आगे हाथ फैलाए पिताजी प्राइवेट जॉब में थे अतः जो कमाया वह घर बनाने में और शुभम के ऊपर ही खर्चा कर दिए थे।
इसके लिए शुभम ने अपने मन में निश्चय किया कि इस महीने से जब भी सैलरी मिलेगी.. मां के हाथों में दे दूंगा मां सारे घर के खर्चे को चलाएगी और मां को मांगना भी नहीं पड़ेगा और उसने ऐसा ही किया एक दो महीने तक सब ठीक ही चल रहा था। लेकिन उसकी पत्नी रेणुका को अपनी सास के आगे बार-बार हाथ फैलाना अच्छा नहीं लग रहा था अतः वह गाहे-बगाहे इस बात की शुभम से शिकायत करती। रेणुका शायद शुभम की मनोदशा को समझना ही नहीं चाहती थी इसीलिए शुभम उसे समझा नहीं पा रहा था।
आखिर एक दिन बात इतनी बढ़ गई शुभम और रेणुका में इस बात को लेकर खूब झगड़ा हुआ और रेणुका उठकर मायके चली गई मां को इस बारे में पता भी नहीं चला कि आखिर झगड़े की वजह क्या है तीन महीने हो चुके थे रेणुका को मायके गए हुए । शुभम रेणुका को समझाने में नाकाम रहा फिर उसने अपने साले किशोर को एक दिन फोन किया और सारी बात बतायी किशोर ने अपने जीजा शुभम को आश्वासन दिया कि बहुत जल्द आपकी समस्या का सॉलिड समाधान निकाल दूंगा।
मायके में एक सुबह रेणुका सो कर उठी तो भाई किशोर और मां के बीच में बहस चल रही थी..
मां—” किशोर क्या मैंने तुझे इसी दिन के लिए पाल पोस कर इतना बड़ा किया कि आज सौ रुपए के लिए बहू के आगे गिड़गिड़ाना पड़ रहा है क्या तुम मेरी इतनी छोटी-छोटी जरूरतें भी नहीं पूरी कर सकते”
किशोर–” देखो मां मैं नहीं चाहता कि मेरी पत्नी भी मुझे छोड़ कर चली जाए अतः आपको रुपए चाहिए तो आपको शोभा (किशोर की पत्नी) से मांगने पड़ेंगे मेरी तनख्वाह की मालकिन मेरी पत्नी ही रहेगी”
कहकर किशोर उठकर चला गया।
लेकिन रेणुका को अपने भाई की बात बहुत बुरी लगी और उसे अपनी गलती का एहसास होने लगा कि मैंने भी तो यही किया।
रेणुका अपनी मां को आश्वासन देने लगी तो उसकी मां बिफर पड़ी—” रहने दे रेणुका तू किस मुंह से मुझे समझा रही है तूने तो अपनी सास के संग यही किया है और यही चाहती है । तेरी भाभी ने तुझसे ही यह सीखा है वरना पहले किशोर अपनी सारी तनख्वाह मेरे हाथ में ही रखता था और पूरे घर का खर्च में चलाती थी और तेरी भाभी को कभी ऐतराज भी नहीं था पर तेरी देखा देखी मेरा घर भी बिगड़ गया।
रेणुका रूवांसी होकर अपने कमरे की तरफ चली गई और कमरे में जाकर सबसे पहले शुभम को फोन मिलाया..
शुभम के फोन उठाने पर रेणुका बोली –“सुनिए आप यहां पर आ जाइए मैं घर आना चाहती हूं अब मुझे कोई तनख्वाह नहीं चाहिए”।
इधर दरवाजे के बाहर किशोर, शोभा और किशोर की मां तीनो एक दूसरे को मुस्कुरा कर प्रसन्न नजरों से देख रहे थे।
आखिरकार किशोर का आईडिया काम कर गया।
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