पिंजरा-गृहलक्ष्मी की कहानियां: Pinjra Story
Pinjara

Pinjra Story: कल रात को फेसबुक पर दौड़ते हुए अचानक नजर ठहर गयी|अभि वापस इंडिया आ गया था| इसी शहर में है! क्या मेरे लिये आया है? उसने आखिरी मुलाकत में मेरा हाथ थामे कहा था,”मैं इंडिया वापस आते ही तुमसे शादी करूँगा, तब तक तुम मेरा इंतज़ार करना|

वो तो पंछी बन उड़ गया और मैं पिंजरे में फड़फड़ाती रह गयी| मगर अब क्या करने आया है? पांच साल बाद! सब कुछ बिखर जाने के बाद अब क्या समेटना बाकी रह गया था? अभी तक शादी भी नहीं की थी उसने|क्या मेरे लिये ही कुंवारा है? मुझे याद तो करता होगा शायद | एक बार फिर दिल में कहीं टीस सी उभरी|

चार साल का साथ एक पल में भूलना इतना आसान था क्या| कालेज में कभी क्लास के बाहर मेरे इंतजार में चॉकलेट लिए घण्टों खड़े रहना कभी बस स्टॉप पे गुलाब को शर्ट में छिपाए मेरी राह ताकना|

उसकी वो पागलपन की हद तक दीवानगी, मदमस्त जिन्दगी जीने का अन्दाज,सब कुछ मुझे उसके प्यार में जादू होने का अहसास करवा देता था| कितने कसमे वादे किये थे दोनों ने कि जीवन का हर पल हर लम्हा यूं ही हाथों में हाथ लेके जिएंगे|

ना जाने कितनी यादें थीं जो कभी मेरा पीछा ही नहीं छोड़ना चाहतीं थीं| उफ्फ !!!! शुभम की पत्नी होने के बावजूद मन में किसी और के लिये जज्बात अब तक दफन क्यूँ नहीं होने दिये मैंने| मुझे अब अपने ही खयालों से कोफ्त होने लगी थी|

सारी रात मैं पुरानी यादों के बिखरे कांच समेट कर खुद को लुहूलुहान करती रही| सुबह पलकें भारी थीं मगर अभि का अक्स आंखों के सामने ज्यों का त्यों था| ना शुभम का कोई फोन आया ना ही मैंने किया|नाराजगी का सवाल ही पैदा नहीं होता क्यूंकि ये हक़ हम दोनों में से किसी के पास नहीं था |एक साल से हम दोनों एक अनकही खामोशी और समझदारी के बन्धन से लिपटे हुये थे|ऐसा नहीं कि शुभम ने अपना प्यार जताने की कोशिश ना की हो,मगर मेरे मरे हुए जज्बात उनके लिये कभी जागे ही नहीं|मेरी खामोशी से डर कर वो खुद ही पीछे हो गये फिर ना उन्होँने कभी इस खामोशी को जानने की कोशिश की ना मैंने बताने की हिम्मत जुटायी| शुभम मान चुके थे कि उनकी गलती की वजह से मेरी जिन्दगी खामोश है , शादी के पहले मुझसे एक बार भी जानने की कोशिश नहीं की कि मैं इस शादी से खुश हूं या नहीं|बस बड़े लोग जो कहते गये वो करते गये|खैर मैं इस समझदारी के बन्धन को कभी समझ ही नहीं पायी ना कभी शुभम से कोई शिकायत की,उम्मीद उधर से भी नहीँ की गयी तो गिले शिकवे कैसे होते|
सुबह फोन की घंटी बजी तो मैंने लपक कर फ़ोन उठाया| अभि की अवाज सुन कर दिल के तार बेसुरी आवाज़ में झनझनाने लगे “कैसी हो?” सुन कर ठहाके मार कर हंसने का मन किया,, दर्द देने वाला घायल कर के पूछ रहा था कि अभी तक जिन्दा कैसे हो| उसने मुझे मिलने को कहा तो मैं मना भी ना कर सकी| मुझे भी तो उसकी आँखों में खुद को खोने का गम देख कर कलेजे को शीतलता पहुंचानी थी, पूछना था कि क्यूँ एक बार भी मेरी खबर नहीं ली उस बेरहम ने,खुद को और मुझे क्यूं उमर भर का दर्द दिया, मुझसे नाराजगी जाहिर करेगा तब उससे मांफी भी तो मांगनी थी कि मैं उसका इंतजार नहीं कर सकी,गलती तो मेरी भी है प्यार में कोई मजबूरी बहाना थोड़े ही होती है| मन में प्यार और तकरार लिये मैं खुद को संवारने लगी| शादी के बाद पहली बार साड़ी पहनी थी बिन्दी भी लगाई थी|शुभम की ओर से मुझे कुछ भी पहनने की अजादी थी,मैं भी जबर्दस्ती खुद को शुभम की सुहागन होने का दिखावा नहीं कर पायी| मगर आज जब सिन्दूर लगाने को हाथ उठे तो हाँथ और दिल दोनों कांप गये,किसके नाम का है ये?? खुद से सवाल किया मगर जवाब ना मिला तो चुपचाप आँख मूंद के एक लाल लकीर अपनी मांग में खींच ली| अभि मेरे सामने था,दिल में आज वही धड़कन जिन्दा हो गयी थी जो कभी अभि का नाम सुन कर हो जाती थी| “हाय! कैसी हो मिस शुभम काजल सिंह?” मैं कुछ पूछती उससे पहले ही वो मुस्कराते हुए बोला| मैं उसे देखती रह गयी|आज तक जिसे मैने अपनी जिंदगी में जगह तक ना दी उसके साथ मेरा अस्तित्व ही जोड़ दिया अभि ने| “हां हां अब ये मत सोचो कि मुझे तुम्हारे पति का नाम कैसे पता चला, दुनिया बहुत छोटी है काजल जी, मुझे सब खबर है, एक बड़ी सी कम्पनी में सी ए हैं जनाब” एक और झटका मिला मुझे| “तुम्हें हर बात की खबर थी अभि फिर भी तुम गुमनाम बने रहे”अपने गुस्से का घूँट गटकते हुए मैंने उससे पूछा |
”अरे जस्ट चिल यार,मैं वहां कितना बिजी था तुम्हें क्या पता और वो सब बचपने की बातें भूल जाओ,कितने पागल थे ना हम लोग हा हा हा” अभि की बेपरवाह हंसी ने आज मुझे पागल साबित कर दिया,मैं पागलों की हद तक जिस इन्सान की यादों को दिल में बसाये हुए थी उसने ही मेरी भावनाओं की इज्जत हंसते हंसते तार तार कर दी| 

”लेकिन एक शिकायत है मेरी शुभम से,तुम्हें हनीमून पे नहीं ले गये वो| वैसे सब कुछ ठीक तो है ना तुम दोनों के बीच??”उसके इस अनपेक्षित सवाल पर मैंने थोड़ा खुद को सम्हाला| “हां हां सब ठीक है तुम्हें ऐसा क्यूं लगा” अब सच बताकर मैं अपना मजाक नहीं बनने दे सकती थी| “वो तुम्हारी सगाई वाली हीरे की अंगूठी अपना निशान छोड़ कर गायब है, फेसबुक बड़े काम की चीज है मैडम| हीरे की कद्र नहीं है तुम्हें” 
”मेरी नजर मेरी सुनी उंगली पर गयी, अंगूठी गायब थी|”सच कहा तुमने मुझे हीरे की कद्र ही नहीं है” कहकर उठने को हुई तो अभि ने एक फोटो सामने रख दी” ये लड़की कैसी है जरा बताओ तो? मेरी पसंद है| अगले महीने हमारी शादी है तुम्हें शुभम के साथ आना है याद रखना” एक कार्ड मेरी ओर बढ़ाते हुए वो बोला|  “मेरी पसंद” अभि के कहे ये शब्द मेरे गाल पर जोरदार तमाचे की तरह पड़े | आँसुओं ने थमने से साफ इन्कार कर दिया था|
”सो सॉरी अभि मैं अपने पति के साथ हनीमून पर रहूंगी उस वक्त, शादी की बधाई हो” इससे पहले मेरे दिल का ज्वालामुखी फटता मैं झूठ बोलकर वहां से रुखसत हुई| इससे ज्यादा फजीहत सहने की ताकत अब मुझमें नहीं बची थी| जिन आंखों में मेरे लिये प्यार ही नहीं दिखा उनसे शिकवा भी कैसे करती|
जो हवा का झोंका बरसों पहले गुजर चुका था मैं उसे अब तक मुट्ठी में दबाये रखने की नाकाम कोशिश कर रही थी| मेरा गीला  तकिया मेरे दर्द का गवाह बन रहा था|मेरी सगाई की अंगूठी खोने के दुख से ज्यादा मुझे ग्लानि हो रही थी| पहली बार मैंने सोचा कि शुभम क्या सोचेंगे| 

दो दिन बाद शुभम आफिस ट्रिप से वापस आ गये|उनका सामना करने की हिम्मत नहीं बची थी मुझमें| मुझे देखते ही वो चौंक पड़े ” क्या हुआ तुम्हें काजल?” 
”कुछ नहीं,मैं ठीक हूं” मैंने रसोई की ओर जाते हुए बेपरवाही से जवाब दिया|  
”ओह तुम्हें तो बहुत तेज बुखार है” मेरी नब्ज पकड़ कर वो बोले| “कब से बीमार हो? इतनी बात बताने लायक तो रिश्ता है ना हमारा” मुझे सहारा देकर बिस्तर पे बैठाते हुए वो बहुत गम्भीर हो कर बोले| शुभम ने इस बार मेरी बहुत कमजोर नब्ज पकड़ी थी जहां बहुत दर्द हो रहा था| इतनी फिक्र लायक नहीं थी मैं |मेरे दिल में एक तूफान सा उठा मगर क्या कहती उनसे? “ह..ह.. हमारी सगाई वाली अँगूठी खो गयी” इस गुबार को बाहर निकालने के लिये मैंने टूटे फूटे शब्दों का सहारा लिया और गुबार फूट पड़ा| अँगूठी के बहाने मुझे अपना असल दर्द हल्का करने का मौका मिल गया |


“पागल हो गयी हो क्या तुम?”शुभम ने कड़क आवाज़ में मुझे झकझोरते हुए कहा तो मैं सहम सी गयी लेकिन मैं चाहती थी कि आज शुभम मुझ पे जी भर के गुस्सा करें,मुझे बुरा भला कहें,  मेरा अपराधबोध हल्का हो और मुझे थोड़ी सी शांति मिले, आखिर इतने दिनों तक मैने बिना उनकी गलती के उन्हें कटघरे में खड़ा रखा था, हर बड़ी से बड़ी सजा की हकदार थी मैं| 
”ये इतनी बड़ी बात थी क्या जिसे सोच कर तुम बीमार पड़ गयीं, क्या मोल है इन हीरों का? तुम्हारी सेहत मेरे लिये इन हीरों से लाख गुना ज्यादा कीमती है,मेरे पास तुम हो तुमसे ये घर है,इस पर मैं लाखों हीरे कुर्बान कर दूँ और तुम बस एक अंगूठी की खातिर रो रो कर बीमार पड़ गयी?” इस बार फिर शुभम ने मुझे बख्श दिया|मुद्दई सजा की भीख मांग रहा था मगर बाइज्जत बरी कर के एक बार फिर उसे बेइज्जत कर दिया गया| 

”अगर तुम कहो तो कुछ दिन के लिये तुम्हें कहीं बाहर घुमा लाऊं, शायद तुम्हारा मन नहीं लगता यहां,ऑफ़िस से छुट्टी ली है मैंने” शुभम घावों पर जितना मरहम लगाते मुझे उतना ही दर्द होता| इस बेचारे को तो पता ही नहीँ था कि मैं रो क्यूं रही थी| शुभम की मासूमियत देख मुझे खुद से घिन आने लगी थी,  और उनका कद मेरी नजरों में आज फिर बढ़ गया था| पहली बार शुभम के आगोश को करीब से  मह्सूस किया था मैंने|एक बार फिर ना उन्होने कुछ पूछा ना मैं अपनी सफाई में कुछ कह सकी|अब कुछ कहना सुनना बाकी नहीं था,शायद यही ग्लानि मुझे मेरे पति को अपनाने में मेरी मदद करने वाली थी| अभि सही कहता था मैंने सच में हीरे की कद्र नहीं की,अभि ने मुझे अनजाने में ही सही हीरे की परख करवा दी थी| अब तक शुभम ने खामोशी से पति होने के फर्ज निभाने की पूरी कोशिश की अब मेरी बारी थी इस हीरे को सम्हालने की|आज मैं पूरी तरह जंग लगे पिंजरे को तोड़कर आजाद हो चुकी थी अपने घरौंदे में बसेरा करने के लिए ।

यह भी देखे-अग्निपरीक्षा-गृहलक्ष्मी की लघु कहानी