आध्यात्मिक उन्नति - स्वामी विवेकानंद की कहानी
आध्यात्मिक उन्नति - स्वामी विवेकानंद

स्वामीजी चाहते थे कि भारतवासी अपने कर्तव्य पालन के साथ-साथ आध्यात्मिक उन्नति के मार्ग पर भी अग्रसर हों। उन्हें उचित प्रकार से कर्म करने के अलावा आध्यात्मिक उन्नति के लिए भी प्रयत्नशील होना चाहिए। उन्होंने धर्म को दार्शनिक, पौराणिक व कर्मकांड भागों में बांटा। उनका मानना था कि दार्शनिक भाव में ही धर्म का सार छिपा है। स्वामीजी कहते थे कि इस जगत में सभी को धर्म के पथ का पालन करना चाहिए। ऐसा करने से ही मनुष्य सुखी व प्रसन्न हो सकता है। धर्म कभी किसी व्यक्ति की उदासी, दुख या कुंठा का कारण नहीं बनता । व्यक्ति के अपने पाप ही उसके कष्ट का कारण बनते हैं।

स्वामीजी कभी नहीं चाहते थे कि कोई व्यक्ति अपना उदास चेहरा लेकर दूसरों के जीवन में भी उदासी लाए। वे अक्सर कहते – ‘जब भी कभी मन उदास हो तो उतरा हुआ और उदास चेहरा लेकर दूसरों के बीच मत बैठो । तुम्हें दूसरों तक अपने दुख व उदासी को फैलाने का कोई अधिकार नहीं है। यदि किसी दिन ऐसा हो तो बेहतर होगा कि तुम किसी कमरे में अकेले ही दिन बिता दो, पर दूसरों को अपना मायूसी से भरा चेहरा मत दिखाओ। उनके हिस्से की खुशी मत छीनो । इस संसार में हर मनुष्य को हमेशा प्रसन्न रहने का अधिकार है। हमें किसी से उसका यह हक नहीं छीनना चाहिए।’

स्वामीजी धर्म के कर्मकांड को दर्शन का स्थूल रूप कहते थे। उन्होंने अपनी दूरदृष्टि के बल पर 1897 में ही ऐलान कर दिया था कि आने वाले पचास वर्षों में हमारा देश अंग्रेजों के चंगुल से आज़ाद होगा। वह एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में अपना नाम इतिहास के पन्नों पर लिखवाएगा।

आध्यात्मिक उन्नति - स्वामी विवेकानंद की कहानी
आध्यात्मिक उन्नति – स्वामी विवेकानंद

विवेकानंद में बचपन से ही दूरदृष्टि की क्षमता विद्यमान थी। वे पुस्तक को कुछ समय के लिए हाथ में लेकर और कुछ पृष्ठ पलटते ही जान जाते थे कि उसमें क्या विषय सामग्री दी गई थी। इसी प्रकार देश के स्वतंत्र होने वाली बात भी सत्य सिद्ध हुई।

स्वामीजी ने भले ही किसी सांसारिक व्यक्ति की तरह जीवन व्यतीत नहीं किया किंतु उन्होंने सांसारिक जीवन जीने वालों को सदा रास्ता दिखाया। उनका जीवन सभी के लिए एक प्रेरणा थी ।

वे स्वयं अपने जीवन की प्रत्येक घटना से शिक्षा ग्रहण करते और लक्ष्य प्राप्ति के लिए कड़ी मेहनत और लगन से कभी न घबराते। वे कहते थे कि प्रत्येक मनुष्य को यूं ही निरर्थक जीवन व्यतीत नहीं करना चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति के पास जीवन का कोई उद्देश्य या लक्ष्य होना चाहिए। हर मनुष्य को आगे बढ़ना चाहिए ।

आध्यात्मिक उन्नति - स्वामी विवेकानंद की कहानी
आध्यात्मिक उन्नति – स्वामी विवेकानंद

स्वामीजी देश के युवाओं को हमेशा यही सीख देते थे कि भविष्य अपने हाथों में होता है, हम स्वयं अपना भाग्य रचते हैं। हमें याद रखना चाहिए कि हमारा प्रत्येक विचार और कार्य संचित रहता है। जिस तरह हमारे बुरे विचार व कार्य हम पर हावी होने के लिए तैयार रहते हैं, उसी तरह हमारे अच्छे विचार व कर्म सदा हमारे सहायक होते हैं। अंतर केवल इतना है कि उनके साथ-साथ देवताओं की कृपा भी हमारी सहायता करती है। जब हमें अच्छे कार्य करने के लिए देवताओं का आशीर्वाद मिल जाता है, तो किसी भी कार्य के पूरा होने में संदेह नहीं रहता ।

आध्यात्मिक उन्नति - स्वामी विवेकानंद की कहानी
आध्यात्मिक उन्नति – स्वामी विवेकानंद