स्वामी विवेकानंदजी एक महान व्यक्ति थे। जिन्हें हम आधुनिक भारत का जन्मदाता भी कहते हैं। स्वामीजी ने हिंदुत्व के प्रचार व प्रसार में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई । वे कहते थे कि यदि हम धर्म को त्याग देंगे तो निश्चित रूप से पतन की ओर अग्रसर होंगे। हर मनुष्य को अपने धर्म का पालन अवश्य करना चाहिए। स्वामीजी रामकृष्ण परमहंसजी के शिष्य थे। स्वामीजी ने अपने गुरु की याद में रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी ।
स्वामी विवेकानंद का चालीस वर्ष से कम आयु में ही देहांत हो गया था। वे जितने भी वर्ष जीवित रहे, उन्होंने अपना सारा जीवन देशसेवा में समर्पित कर दिया । वे हमेशा देश के कल्याण व धर्म के उत्थान के लिए कार्य करते रहे। इस कार्य के लिए उन्होंने अपने निजी सुखों को भी त्याग दिया। प्रत्येक कार्य को पूरे समर्पण भाव व शक्ति के साथ पूरा किया। विपरीत स्थितियों में भी उन्होंने कभी हार नहीं मानी।
उन्होंने अपने कर्म व चरित्र के माध्यम से संसार के आगे मिसाल कायम की। वे कहते थे कि प्रत्येक व्यक्ति को कर्म पथ अपनाना चाहिए। उनका मानना था कि मनुष्य में कर्म के प्रति पूरी एकाग्रता होनी चाहिए ।

उन्होंने संसार को दिखा दिया कि भारत भी विश्व का नेतृत्व करने की क्षमता रखता है। अपने महान गुणों के कारण वे शिकागो की धर्मसभा में भारतीय दर्शन का डंका बजाने में सफल रहे। उस सभा में उन्हें एक गुलाम देश का प्रतिनिधि माना गया, इसलिए उन्हें मंच पर सबसे आखिर में निमंत्रित किया गया, लेकिन उनकी वक्तव्य शैली इतनी ओजपूर्ण थी कि सभी श्रोता वाह-वाह कर उठे। स्वामी विवेकानंदजी के शब्दों ने उन पर जादू-सा कर दिया। उन्होंने कुछ ही पलों में सभा को अपने सम्मोहन में बांध लिया। अपने पहले ही भाषण द्वारा स्वामीजी ने श्रोताओं के दिलों में अपनी जगह बना ली थी।

वे चाहते थे कि पश्चिमी जगत भी हमारे सनातन धर्म के महत्त्व को समझे और स्वीकार करें। हिंदू धर्म के बारे में उनका मत था – ‘यदि आप पश्चिमी संस्कृति की ओर दौड़ेंगे तो तीन ही पीढ़ियों का विनाश निश्चित है। धर्म छोड़ने से तो हिंदू जाति का मेरुदण्ड ही टूट जाएगा।’

