सुहागन का इन्तज़ार-गृहलक्ष्मी की कहानियां
Suhagan ka Intezar

Hindi Kahani: सूरज और उगती सुबह के साथ बेला भी उठ जाती थी। चादर तह कर के चारपाई पर एक तरफ़ रख देती थी। स्नान करके ठाकुर जी के आगे दिया जलाकर अपनी और बेटा-बहू के लिए चाय बनाती। तीनों मिलकर अपने छोटे से घर के सीमेंट वाली फर्श पर बैठकर चाय पीते और दिन भर का कार्यक्रम तय करते। उसके बाद बेला कपड़े धोने पीछे दालान में चली जाती, बेटा गिरीश ढाबा खोलने चला जाता और बहू गीता घर के बाकी काम निपटाती। उसके बाद दोनों सास बहू भी ढाबे पर चली जातीं।

तीनों मिलकर सुबह के नाश्ते के लिए पूरी, आलू, सब्जी और जलेबी बनाते। खुद भी वही नाश्ता करते और फिर आने वाली भीड़ को भी वाजिब दाम पर बेचते। दोपहर में चावल के साथ कभी राजमा और कभी छोले बनाते। रात में परांठे और कोई सी एक सब्जी बनाते। बेला के हाथों में जैसे जादू था। जो भी पकाती लोग उंगलियां चाट कर खाते और तारीफ़ करते नहीं थकते। गीता भी सास के साथ हाथ बंटाते बहुत कुछ सीख गई थी।

गीता और गिरीश की शादी को कुछ ही साल बीते थे। गांव में रहने की वजह से बहुत छोटी उम्र में ही उन दोनों की शादी हो गई थी।

रोज़ की तरह शाम को बेला गीता से कहती है, “ मैं आती हूं बेटा। तब तक तुम ज़रा काम संभालना।” गीता मन में कईं सवाल लिए जवाब देती है, “ जी अम्मा।” वह इतने सालों से देखती थी की बेला घर से दूर जहां नदी बहती है वहां दिया बाती लेकर जाती है।

एक बार वह कहीं से आ रही थी तो उसने अपनी सास को नदी के पास एक खास जगह पर दिया जलाते हुए देखा था। पहचान के लिए बेला ने अपनी साड़ी का कोना काटकर लकड़ी पर बांधकर लकड़ी जमीन में गाड़ रखी थी।

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गीता ने गिरीश से उस बारे में पूछा भी था, “अम्मा रोज़ शाम को नदी के पास दिया क्यों जलाती हैं? पिताजी के न होने पर भी करवा चौथ का व्रत रखती हैं, पूजा करती हैं।” गिरीश ने जवाब दिया था, “ पता नहीं! एक बार मैंने भी अम्मा से यही सवाल पूछे थे पर उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया था। नम आंखों से मुस्कुरा कर मेरे सर पर हाथ रख दिया था। उसके बाद से कभी मेरी हिम्मत नहीं हुई उनसे कुछ पूछने की। मैं बहुत छोटा था तब से मां को अकेले सब संभालते और दिया जलाते देख रहा हूं।”]

गीता ढाबे के काम में लग जाती है। इस तरह दिन बीत रहे थे और त्योहारों का महीना आ गया। चार दिन बाद करवा चौथ थी। गीता और बेला सामान खरीदने बाज़ार गईं। गीता ने अपने लिए चटक लाल साड़ी और श्रृंगार का सारा सामान लिया, नया मिट्टी का करवा, माता की तस्वीर आदि सामान दिया। बेला ने बाकी कोई भी सामान नहीं लिया सिवाय करवे के। गीता चुपचाप सब देखकर अपनी सास की इच्छा में साथ दे रही थी।

करवा चौथ से एक दिन पहले गीता गिरीश के पास ढाबे पर आ जाती है और बेला हमेशा की तरह नदी किनारे जाकर दिया जलाती है।
जब वह वहां से वापस आ रही थी तो गांव की एक झगड़ालू किस्म की औरत ने उसे ढाबे के पास रोक लिया, “ रूक बेला! जब देखो अपशगुन करती रहती है। कौन है जिसके नाम का दिया जलाती है और करवा चौथ रखती है? शर्म नहीं तुझे।” उसने बहुत कुछ उल्टा सीधा कहा। बेला चुपचाप खड़ी रहती है। गिरीश और गीता उस औरत को डांटकर वहां से भगा देते हैं। बेला घर जाकर फूटकर रो पड़ती है।
उस दिन दोनों बेटा बहू उसके पास आते हैं, “ मां आखिर आज बता दो ना क्या बात है। बचपन से देख रहा हूं लोग तुम्हें ताना मारते हैं, गालियां देते हैं और न जाने क्या-क्या कहते हैं। हमें तो बता दो हम तुम्हारा साथ देंगे मां। उनकी बात सुनकर बेला कहती है, “ तुम हमेशा पूछते हो, आज बता ही देती हूं…
जब तू बहुत छोटा था तेरे पिता करवा चौथ से चार दिन पहले मुंह अंधेरे नदी की तरफ़ गए थे। उसके बाद कभी वापस लौट कर नहीं आए। तब वहां कच्चा पुल था। वह एक जगह से टूटा हुआ था। उस दिन किसी ने उन्हें जाते हुए देखा भी नहीं था पर सब ने मान लिया कि तेरे पिता पुल से गिरकर नदी में बह गए हैं। एक दिन परेशानी में मैं शिव मंदिर में बैठी थी। तभी वहां एक बुज़ुर्ग औरत मेरे पास आकर बैठ गईं। उन्होंने मेरे हाथ में सिंदूर दिया और कहा, “ यह ले बेटा, यह सिंदूर बहुत शुभ है। हमेशा लगा कर रखना तेरा पति एक दिन ज़रूर वापस आएगा। मेरे तो अब यह किसी काम का नहीं रहा।” मेरे पूछने पर उन्होंने बताया कि मैंने कई बार उन्हें बिना पैसों के खाना खिलाया था। वह अलग बात है कि मुझे कुछ याद नहीं आया। फिर वह औरत सिंदूर दानी देकर और सदा सुहागन रहो का आशीर्वाद देकर वहां से चली गई। उसके बाद मुझे कभी दिखाई नहीं दी पर न जाने क्यों उनके एक-एक शब्द और उस सिंदूर पर मुझे पूरा विश्वास सा हो गया था जो आज तक बरकरार है।
लेकिन उस दिन के बाद से गांव वालों ने तुम्हारे पिता के खिलाफ़ बातें बनानी शुरू कर दीं कि वह मुझे छोड़कर कहीं और चले गए हैं। कोई कहता दूसरी औरत का चक्कर तो कोई मेरे ही चाल चलन पर बातें बनाता। सब ने मुझसे करीब करीब नाता तोड़ दिया था।
तुझे पालने और घर चलाने के लिए मैंने किसी तरह खुद के थके शरीर और मन को उठाया। ढाबा साफ़ कर उसे अच्छे से चलाने की कोशिश करती रही। धीरे-धीरे दो चार बाहर के लोगों की तारीफों से अपने गांव वालों ने आना शुरू किया। इधर तू बड़ा होने लगा और उधर काम भी बढ़ने लगा। हम दोनों ने ढाबा संभाला। उधर लोगों का रवैया ज़्यादा तो नहीं बदला पर उन्होंने कुछ कहना भी बंद कर दिया था। फिर तूने गीता से शादी कर ली और यह हमारे परिवार का हिस्सा बन गई।

मैं उन बुज़ुर्ग औरत की बात पर अमल कर सिंदूर लगाती रही और जिस जगह पर तेरे पिता के आखिरी निशान थे वहां दिया भी जलाती रही। यही सोचती कि इस रास्ते वापस आएंगे तो मेरा छोटा सा दिया उनकी राह पर रोशनी करेगा। अब तुम दोनों को बुरा लगता है तो….”

गिरीश बात काट कर बीच में कहता है, “ नहीं मां! आपके जैसा प्यार और विश्वास मैंने कहीं नहीं देखा। हम दोनों आपकी इस भावना की बहुत इज्ज़त करते हैं। आज के बाद कोई आपसे कुछ नहीं कह पाएगा। गीता भी कहती है, “ जी अम्मा! बिल्कुल” तीनों हाथ पकड़ कर मुस्कुराते हैं।
करवा चौथ वाले दिन गीता पूजा कर गिरीश के साथ मेला देखने चली जाती है और उधर बेला मांग में सिंदूर सजा कर उसी जगह पर दिया जलाती है। वह चांद को जल चढ़ा रही होती है कि जल की धार के बीच उसे एक परछाई दिखाई देती है। परछाई देखते हुए वह वहीं नीचे करवा ज़मीन पर रखती है। तब तक वह परछाई उसके पास आ जाती है। बेला के मुंह से कंपकंपाती आवाज़ में निकलता है, “आप….”
वह आदमी उसका पति चरण उसको मुस्कुरा कर कहता है, “ हां बेला मैं ही हूं।” बेला झुक कर उसके पैर छूती है और फूटकर रो पड़ती है। चरण उसको प्यार से उठाता है और अपने हाथ से करवे से पानी पिलाता है। बेला और चरण की आंखों में बहुत सा प्यार और बहुत से सवाल भी थे।
वे दोनों घर आते हैं। तब तक गिरीश और गीता भी घर आ चुके होते हैं। वे दोनों चरण को देखकर समझ जाते हैं पर उनकी भी आंखों में खुशी के साथ कईं सवाल थे। सब लोग पहले खाना खाते हैं, फिर चरण उन्हें सारी बात बताता है….
“उस दिन जब मैं सुबह निकला था तो मैं बेला के लिए उसकी सबसे मनपसंद चीज़ करवा चौथ के लिए लेने जा रहा था। उधर अंधेरे की वजह से मुझे पुल का टूटा हिस्सा नज़र नहीं आया और मैं नदी में गिर गया। उस दिन बहाव और भी तेज़ था। जब मुझे होश आया तो मैं किनारे पर था। किसी तरह खुद को उठाकर पास में छोटे से मकान में गया। वहां कोई नहीं था। अचानक मुझे चक्कर आया और मैं वहीं गिर गया।
जब होश आया तो मैं थाने में था। उस घर में किसी का खून हुआ था। पुलिस ने मुझे कातिल समझा और गिरफ़्तार कर लिया। मैंने उन्हें बहुत समझाने की कोशिश करी। तुम्हारे और गांव के बारे में भी बताया लेकिन वह शायद जल्दबाज़ी में सब रफ़ा दफ़ा करना चाहते थे। उन्होंने मेरी एक न सुनी और जेल में डाल दिया। एक महीना पहले केस फ़िर से सामने आया और कुछ दिन पहले असली कातिल पकड़ा गया।अदालत ने मुझे छोड़ दिया और कुछ पैसे भी दिए।
गिरीश की उम्र के हिसाब से यह तोहफ़ा लाया हूं पर गीता के बारे में मुझे कुछ पता नहीं था। गीता कहती है, “ कोई नहीं बाबा! फिर कभी ले लूंगी।”
फिर चरण एक छोटा सा रेडियो निकाल कर बेला को देता है, “ करवा चौथ की शुभकामनाएं बेला। सिर्फ़ तुम ही नहीं बल्कि हम दोनों सदा सुहागन रहें।