नयी राह-21 श्रेष्ठ नारीमन की कहानियां मध्यप्रदेश: Soldier Hindi Story
Nayi Rahh

भारत कथा माला

उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़  साधुओं  और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं

Soldier Hindi Story: आज फिर सीमा पार से खबरें आ रहीं हैं। रोज छोटी-बड़ी झड़पों के कारण तनाव फैल रहा। कभी कहीं आमना-सामना होता तो कभी दोनों तरफ से फायरिंग भी। यही सब जान कर मीरा सारा दिन टीवी के सामने बैठी रहती। मन-ही-मन घबराती। मीरा वीर की बारे में चिंतित है। कई दिन से उससे बात नहीं हो पायी। कभी काम और कभी नेट ना मिलने से। फिर कुशंका को झटक देती कि ऐसे तो कई बार होता है। इंतजार के अलावा उसके पास कोई और उपाय नहीं।

यूँ ही छोटे मोन को सँभालते-घर के काम में व्यस्त रहती पर उसका मन स्थिर नहीं हो पा रहा था। सोचा सासू जी को ही बुला ले। अभी वो दस दिन से अपनी बहन के यहाँ गयी हैं। उनका साथ रहेगा। हाँ! यही ठीक रहेगा उसके लिए, बस उसने माँ को फोन किया और साथ आने को कहा। माँ भी शायद उसकी थरथराहट भाँप गयीं। बोलीं, आती हूँ शाम तक।

ठंडी सांस ले मीरा फिर मोनू के साथ लेट गई। कब नींद आ गई उसे पता ही नहीं चला। यूँ मीरा का जीवन आराम से चल रहा एक ही शहर में उसके पिता और ससुराल का घर था। सो अकेली रहते हुए भी हमेशा सबका साथ मिलता रहा। वीर सेना में होने के कारण अक्सर बाहर ही रहते। दो साल ही उसे उनके साथ रहने को मिले थे, मोनू के कारण फिलहाल वह दिल्ली में थी। इस इंतजार में कि उसे वीर के पास रहने को जल्दी ही मिलेगा।

बाहर से गेट खुलने और कॉल बैल की घंटी एक साथ सुनाई दी। शाम हो गई थी। धीरे से उठ कर दरवाजा खोला, माँ ही थीं। अंदर आते ही वो मोनू के पास चली गयीं।

मीरा ने हाथ-मुँह धो कर चाय की ट्रे लेकर माँ को आवाज दी। मोनू को लेकर माँ सोफे पर बैठ कर हाल-चाल पूछती-बताती रहीं। मोनू इनके साथ हमेशा खुश रहता। मीरा चाय पीकर सब्जी काटने बैठ गई। ऐसा लगा जैसे बहुत दिन बाद मन से खाना बना रही है। सच है माँ के आने से उसका मन बदल रहा।

अचानक फोन की घंटी बजी, जब तक मीरा उठती, बंद भी हो गई। मोनू के शोर के कारण उसने ध्यान भी नहीं दिया। थोड़ी देर में ही फिर घनाघन कॉल बेल बज उठी, दौड़ के दरवाजा खोला तो उसके बड़े भाई राज फुर्ती से अंदर आ गए। जोर से बोले, “फोन क्यों नहीं उठाया? न्यूज नहीं सुन रहे?” माँ को प्रणाम कर सीधा टीवी खोल दिया। मीरा काम छोड़ कर उनको चाय देने उठी, पर राज ने उसे बैठने को कहा। बार-बार वो चैनल बदलते रहे। मीरा घबरा कर जमीन पर ही बैठ गई। समाचारों में मुठभेड़ की खबरें थीं। वीर के मोर्चे की खबर। तीनों सन्न। मोनू की तेज आवाजों के बीच फोन की घंटी सुनाई दी। राज ने झपट कर फोन उठाया। मीरा ने देखा उनका पीला पड़ता चेहरा। हाँ-हूँ करते राज कभी माँ को देखते कभी मीरा को। फोन रखा और मीरा का हाथ पकड़ कर कहा, “ध्यान से सुनो मीरा, माँ आप भी। जिसका डर था वही बात है, वीर की टीम का पता नहीं चल रहा है, वो सीमा के आस-पास गश्त लगा रहे थे, अचानक सीमा पार से गोलीबारी हुई तो वो उधर मुड़ गए थे।”

जल्दी तैयार हो जाओ तुम्हें हेडक्वार्टर ले कर चलना है। सुनते ही मीरा के पैरों से जैसे जमीन खिसक गई हो। माँ ने मोनू को गोद में बिठा लिया और रोने लगीं। दोनों को सँभालते राज ने माँ से विनती की, आप घर रहो मोनू के साथ, हम दोनों चलते हैं। मैं आपको फोन करता रहूंगा। दिलासा देता राज खुद अंदर से हिल गया था, क्या कहे और कैसे?

मीरा यूँ ही शाल लेकर बाहर निकल गई, ना उसने मोनू को देखा ना माँ को। राज ने माँ को अंदर ले जाकर बैडरूम में बिठाया और मोनू के लिए दूध बिस्कुट रख कर चलने की बात कही। माँ ने सिर हिला दिया।

भारी कदमों से राज बाहर आया, मीरा को सहारा देकर गाड़ी में बिठाया। ऊपर से मजबूत दिखाते राज ने तेजी से गाड़ी चलायी। पर हैडक्वार्टर पहुँचने में एक घंटा लग ही गया। तब तक मीरा कुछ बोली ही नहीं। एकदम गुमसुम-सी। राज भी अपने आप को जैसे आने वाले समय के लिए तैयार कर रहा हो।

कार्यालय आते ही देखा वहां भीड़ लगी है। सैनिक इधर-उधर दौड़ रहे हैं। गाड़ी रुकती उससे पहले ही मीरा उतर गई और रास्ता बनाते दौड़ने लगी। अस्त-व्यस्त मीरा को देख एक लेडी अफसर ने उसे थामा, धीरे से एक कुर्सी पर बैठा दिया और पानी का गिलास पकड़ा दिया, पर मीरा की आंखें वीर के दोस्तों को ढूंढने लगीं, बार-बार वीर वीर बोलने लगी। इतने में इधर से राज और सामने से वीर के सीनियर आते दिखे। राज दौड़ कर उनके पास पहुंचा और मीरा की ओर इशारा कर के वीर की खैरियत पूछी। जो जवाब उसे मिला उससे राज गिरते-गिरते बचा। एक सैनिक उसके साथ कर दिया गया जो मीरा और उसे अंदर एक कमरे में ले गया।

कमरे में सेना के सीनियर अफसर चक्कर से लगा रहे थे। वो भी बेचैन ही थे। मीरा को देखकर बोले, “बेटी हिम्मत रखो।” बैठने को कहा। उन्होंने स्थिति समझाने की कोशिश की, पर मीरा जैसे बहरी हो गई हो, सिर्फ वीर कैसे हैं यही पछ रही थी। वो भी फिर चप हो गये। उन्होंने राज को अलग बुला कर शहादत की खबर दी और कहा कि “आप सबको यहाँ 3-4 दिन रोज आना होगा। अभी मत जाना। सुबह होने को है। फिर जाना घर।”

राज अब सहन नहीं कर पा रहा था। आंसू रुक नहीं रहे थे। दोनों बाहर आ गये। देखा बहुत से लोग और आ गये हैं। 3-4 घंटे कब बीत गए, नहीं जाना किसी ने। बस सैनिक व्यवस्था में लगे थे।

तेज साइरन की आवाज गूंज उठी, दूर से सेना के ट्रक धीमी गति से आ रहे थे। आगे जीप में अधिकारी थे, सब दौड़ पड़े। बड़ी मुश्किल से सबको रोका गया।

ट्रक रुकते ही सबसे पहले जो बॉक्स आया तिरंगे में लिपटा वीर का नाम और पद लिखा हुआ। उसका सामान भी। मीरा बेहोश-सी होने लगी कानों में वीर की आवाज, ‘अब हम तो सफर करते हैं…’ आंसू बहते गये। हर और से रोने चीखने की आवाजें। एक-एक करके उसके पाँच साथियों की शहादत सामने थी। राज का सहारा छोड़ मीरा उधर दौड़ गई। सैनिकों की पत्नियां गले लग कर फफकने लगी। आज सब एक ही दुःख की साथिन हैं। कोई किसी को नहीं जानता, ना पद का महत्त्व न नाम की पहचान का। दुःख साझा, दर्द भी साझा। शायद एक-दूसरे की यही दिलासा बन जाए।

रोज रोते-रोते कड़े दिल से कार्यवाही करवाता गया। दोपहर बाद दोनों घर वापस भेज दिये गये। माँ सब कुछ जान चुकी थी, उनका पुत्र जा चुका था। टीवी रात भर यही दिखाता रहा था वीर की वीरता देश भर जान चुका था। उसके पाँच साथियों की बहादुरी अब उदाहरण बन चुकी थी। पर माँ तो जैसे मान ही नहीं पा रही थी। विश्वास करना मुश्किल हो गया उन्हें। बस उन्हें राज और मीरा का इंतजार था। मीरा और मोनू को वही देखती आ रही हैं अब तक।

शहादत पर लोग कहते हैं रोते नहीं। पर दुःख कितना बड़ा होता है, वे ये नहीं जानते। अगले कुछ दिन कैसे निकले न मीरा को पता चला न माँ को। वीर की विदाई सैनिक सम्मान से हुई। पत्थर बनी मीरा अलग बैठ कर सब देखती रही, मोनू की हरकतें भी उसे बहला नहीं पा रहीं थीं। पूरा परिवार देख-रेख कर रहा था एक-दूसरे की, पर तसल्ली किसी को नहीं थी। माँ और मीरा एक-दूसरे को देखतीं पर कुछ कह नहीं पातीं। दोनों अपनी यादों में गुम, ना होश, ना हवास। वीर का मुस्कुराता चेहरा फूल के हार के बीच झाँकता मानो कह रहा हो “फिर मिलेंगे।” ऐसा लगता समय जैसे बीतना नहीं चाह रहा हो। पर ऐसा होता कब है? अब घर फिर खाली है. सब जा चके हैं और सूनापन बिखर गया। वीर की उपस्थिति मीरा को हर जगह दिखायी देती, हर जगह। अंदर-बाहर सब जगह।

दो माह बाद फिर बुलावा आया। आज फिर राज मीरा को लेकर सेना मुख्यालय में आया है। अधिकारी ने वीर की सेवा के सभी कागजात की फाइल उसे दी। शहीद के दर्जे की सभी सुविधाओं का वादा भी, सारे नियम-कायदे समझा दिये।

मीरा ने जब हाथ नहीं बढ़ाया तो राज ने ही फाइल्स संभाली। अधिकारी ने पूछा अब मीरा क्या नौकरी चाहेगी? मीरा तुरंत जैसे जाग गई हो। अभी तक वह दु:ख दर्द में डूबी थी और आज जैसे उसे उबरने की दवा मिली हो।

अब जैसे मीरा को राह मिल गई हो, खट से बोल पड़ी, “जी मैं भी सेना में ही काम चाहूंगी। मैं पोस्ट ग्रेजुएट हूँ। मेरे लायक जो जॉब मिलेगा, करूंगी। मैं भी वीर की तरह देश सेवा करना चाहूंगी।”

राज ने कहा भी कि “अभी क्या जल्दी है? अभी मेरे साथ जयपुर चलना है तम्हें। थोडा आराम करो अभी माँ और मोन को भी संभालना होगा।”

अधिकारी ने भी कहा, “हाँ कोई जल्दी नहीं है, जब सुविधा हो तब सही। सब व्यवस्था होगी जहाँ जैसा आपको सही लगेगा।” उन्होंने राज को कुछ सलाह और सुझाव दिये और फिर मिलने को कहा। राज समझ रहा था कि मीरा अब संभल रही है। शायद नौकरी करने से उसका मनोबल बढेगा।

मीरा को भी अब राह मिल रही थी, वह समझ रही थी कि अब उसे ही परिवार की जिम्मेदारी लेनी होगी। पहले जैसा ही परिवार चलाना जरूरी होगा। मोनू तो पूरा उसी पर निर्भर है। माँ का फर्ज वीर की पत्नी से बढ़कर हो गया इसके लिए। अब उसे वीर की याद, प्रेम और विश्वास के साथ ही रहना होगा। एक ठंडी और गहरी सांस लेकर मीरा अपने को सहेजने लगी।

जैसे ही दोनों घर पहुंचे देखा, माँ मोनू को गोद में लिए बाहर ही थीं। आज गौर से दु:खी माँ का उतरा हुआ चेहरा भूली-सी, अपने दुःख में वह माँ का दु:ख नहीं देख पायी। मीरा उनसे मोनू को लेकर अंदर चली गई। माँ हैरत से उसे देख रहीं थीं, उन्हें लगा अब उनके हाथ में कुछ है नहीं। राज ने ही उन्हें मीरा के बदलाव का कारण और सब बातें समझायीं। थोड़ी राहत माँ के चेहरे पर झलकी। यह भी कि दो दिन बाद आपको मीरा के साथ चलना है जयपुर हमारे घर, वहां से बुलावा आया है। माँ समझ गयीं। उन्होंने राज के सिर पर प्यार से हाथ रखा और सहमति दे दी। वो भी अब मीरा के साथ नई राह ढूँढने के लिए तैयार हो गयीं। आखिर वीर की याद, उसके प्रिय मोनू और मीरा की देख-रेख उन्हें ही करनी है। बेटा खो दिया है पर अब मीरा उनकी बेटी है।

भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’

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