सास की सीख-गृहलक्ष्मी की लघु कहानी
Saas ki Sikh

बड़े घर की बेटी राधा शादी करके ससुराल आई। दूसरे ही दिन आस-पड़ोस की स्त्रियां उसे देखने के लिए आई। उसे देख कर पड़ोसन बोली- “बहू, तुमने पूर्वजन्म में बहुत ही पुण्य कमाएं होंगे तभी तुम्हें इस खानदान परिवार की बहू बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है।”
राधा रसोई घर में जाकर धीरे से बोली- “भाग्यशाली मैं नहीं, लेकिन ये लोग हैं जिनको हमारे जैसा खानदान परिवार मिला है।”
चारुलता ने इस बात को सुन लिया। आस-पड़ोस की स्त्रियों के जाने के बाद उसने राधा से कहा- “बेटी, रिश्ता वो नहीं होता जो दुनिया को दिखाया जाए। रिश्ता वो होता है जिसे दिल से निभाया जाए। अपना कहने से कोई अपना नहीं होता। अपना वो होता है जिसे दिल से अपनाया जाए।”
राधा- “मैं कुछ समझी नहीं।”

चारुलता- “बेटी, अब तुम किशन के साथ विवाह के पवित्र गठबंधन में बंध गई हो। तुम्हारे नाम के पीछे पति का नाम जुड़ गया है। पीहर के प्रभाव से मुक्त होकर अपने परिवार और पति पर गर्व करो। रिश्तो की अहमियत को समझ कर उसे सम्मान दो। फिर देखना, इस छोटे-से घरौंदे में तुम्हें स्वर्ग से भी सुंदर अनुभूति होगी।”
 सास की सीख को सुनकर राधा थोड़ी लज्जित हो गई और चिंतन करने के लिए विवश हो गई।

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