Grehlakshmi kahani

गृहलक्ष्मी की लघु कहानी-पिताः एक रिश्ता विश्वास भरा

‘सुनो, गुड़िया आजकल बहुत खोई सी रहती है. क्या बात है?’
‘मुझे भला वह कुछ बताती है? अपनी हर बात वह आप ही से शेयर करती है. कुछ खरीदना होगा तो आप से ही कहेगी। आपकी लाडली है, आप ही पूछिएगा.’
‘लेकिन कुछ प्यार वगैरह का चक्र हुआ तो? चढ़ती उम्र है… तुम ही बात करती तो…’ ‘ऐसा कुछ नहीं है. मैं उसकी सहेलियों से पूछ चुकी हूं।
‘लेकिन इसके लिए सहेलियों से पूछने की क्या जरूरत थी? उसी से पूछ लेती. हमें अपनी बेटी पर पूरा विश्वास है.’


‘पर उसे मुझ पर विश्वास हो तब ना? एक तो वैसे ही बीमारी से मरी जा रही हूॅं. उस पर…. आपके लाड़प्यार ने सर चढ़ा रखा है उसे. मुझसे तो ऐसे बात करती है जैसे मैं उसकी सौते……’ कहते हुए सुनयना ने अपनी जीभ काट ली। संदीप ने प्यार से पत्नी के सिर पर हाथ फेरा और हौले से थपथपाकर निकल गए. सुनयना पूरे दिन पश्चाताप की अग्नि में जलती रही. क्यॅू उसका अपनी जिह्वा पर नियंत्रण नहीं रहता?
शाम को संदीप को गुड़िया को प्यार से समझाते देख वह स्वयं को रोक न सकी. और चुपके से सुनने लगी.


‘मुझसे अपनी सहेली मीनू का दुख देखा नहीं जाता पापा. साल भर पूर्व सिर से मां का साया उठ गया बेचारी उस दुख से ही नहीं उबर पा रही थी कि उसके पापा दूसरी शादी कर रहे हैं…… आप वादा कीजिए पापा… जिंदगी में कभी मेरे लिए सौतेली
मां नहीं लाएगें.’ गुड़िया फूट—फूट कर रोने लगी तो संदीप उसे पुचकारने लगे.
‘तुम्हारी सहेली तो नादान है पर मेरी गुड़िया तो समझदार है. अपनी सहेली को समझाना कि रिश्तों की बुनियाद विश्वास पर टिकी होती है; सगे या सौतेलेपन पन नहीं. जहॉं तक मां की मौत के दुख का सवाल है तो मैं एक ही बात कहना चाहूंगा कि हमारे दुख बड़े नहीं हाते. दुखों को सहन करने की हमारी ताकत छोटी होती है. जिंदगी में दुखों का आना जाना ट्रकों की तरह लगा रहता है. जैसे आप एक ट्रक को ओवरटेक करके आगे निकलते हैं तो थोड़ी ही देर में फिर से एक नया ट्रक आपके आगे चल रहा होता है. तो क्या आप आगे बढ़ना छोड़ देंगे।


‘नहीं, कदापि नहीं.’ कहते हुए गुड़िया खुशी से पापा के गले लग गई. उसे जीने का मंत्र जो मिल गया था. लेकिन सुनयना की ऑंखों से बहते खुशी के आॅसूओं का ता कोई पार ही न था.
‘संदीप का यह विश्वास भरा संबल गुड़िया को कभी पता नहीं चलने देगा कि उसकी मां नहीं पिता सौतेले हैं. जिन्हांने उसकी मॉं को अनचाहे मातृत्व से बचाने के लिए उसे शादी का जोड़ा पहना दिया था. संदीप सही कहते हैं, रिश्तों की बुनियाद विश्वास पर टिकी होती है और विश्वास को किसी प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती.’

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