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सुनो कन्हैया! मेरी पुकार: Short Motivation story
Suno Kanhaiya! Meri Pukaar

Short Motivation Story: कन्हैया…
बोलो बन्धु!
देख रहे हो भारत की दशा? गंधार देश में धर्म बचा ही नहीं, बंग में वही दशा!
मन्दिर तोड़े जा रहे, निरपराध मानुस मारे जा रहे, घरों को जलाया जा रहा है। भविष्य कैसा होगा?
तो? मैं क्या करूँ? तुम्हारा देश है, तुम्हारा युग है, तुम करो स्वयं की रक्षा!
किन्तु मैं तो तुमको पूजता हूँ न देव! मैं तो तुम्हारे भरोसे बैठा हुआ हूँ कि तुम हमारी रक्षा करोगे।
मैं? तुम्हे याद है बन्धु, अपने युग के महासमर में भी मैंने अपने परम मित्र का केवल रथ हांका था।
मैं केवल राह दिखाता हूँ, अपने जीवन का युद्ध तो सबको स्वयं ही लड़ना होता है भाई!
किन्तु तुम तो ईश्वर हो न माधव! यूँ अपने लोगों को अकेला छोड़ दोगे?
नहीं बन्धु! मैं अपने लोगों को कभी अकेला नहीं छोड़ता। मैं सदैव उनके साथ होता हूँ।
उन्हें उनका सही मार्ग दिखाता रहता हूँ। पर चलना तो उन्हें ही पड़ता है…
और यदि हम विपत्ति से लड़ कर भी पराजित हो गए, तो? क्या तुम यूँ ही धर्म को समाप्त हो जाने दोगे?

तुम यदि लड़ पड़ो तो पराजित हो ही नहीं सकते! मैं तुम्हे पराजित होने ही नहीं दूंगा।

महाभारत युद्ध में जब अर्जुन पराजित होने लगे तो बिना बुलाये मैंने अपनी प्रतिज्ञा तोड़ कर सुदर्शन उठा लिया था।

जबतक तुम मेरे साथ हो, तुम पराजित नहीं हो सकते।

पर कन्हैया!
मध्यकाल में बर्बर आतंकियों से युद्ध में अनेक भारतीय धर्मनिष्ठ शासक पराजित हो गए थे। तब तुमने उनकी सहायता क्यों नहीं की?

युद्ध में किसी एक राजा की पराजय क्या सभ्यता और धर्म की पराजय होती है? नहीं!

यदि मध्यकाल के युद्धों में सभ्यता पराजित हुई होती आज तुम नहीं होते मित्र!

तुम हो, यह सभ्यता की ही विजय है, यह धर्म की ही विजय है।

किन्तु आर्यावर्त की सीमाएं तो लगातार सिकुड़ती ही गयी हैं न माधव!

देश तो छोटा होता ही गया है। क्या यह हमारी पराजय नहीं?

राष्ट्र की सीमाएं निरन्तर परिवर्तित होती हैं बन्धु!

राष्ट्र को जब कोई योग्य नायक मिलता है तो सीमाएं बढ़ती हैं, और कायरों के काल में सीमाएं सिकुड़ती हैं। जो आज नहीं है, वह कल होगा।

तुम अपना कार्य तो करो, सिंधु की धारा पुनः तुम्हारे आंगन से बहेगी…

और यदि मैं न करूँ तो?

तो क्या? तुम नहीं तो कोई और करेगा।

तुम्हारे न करने से धर्म का कार्य बाधित नहीं होगा मित्र, उसे कोई न कोई मिल ही जायेगा।

लाखों लोग प्रतिदिन जन्म लेते हैं और उतने ही नित्य मर-खप जाते हैं, समय किसको याद रखता है?

समय उन्ही नायकों को याद रखता है जो धर्म का कार्य करते हैं।

तो क्या युग बदलेगा?

तुम्हे यदि गङ्गा की लहरों पर पसरता नया भगवा रंग नहीं दिखता तो यह तुम्हारा दोष है मित्र! बाकी समय अपना कार्य कर रहा है।

तुम यदि नायकों की सूची में अपना नाम जोड़ना चाहते हो तो लड़ो, वरना भेंड़ बकरियों की भांति गुमनाम मर जाओगे।

फिर मुझे क्या करना चाहिए कन्हैया?
आँख बंद करो, बताता हूँ।

कर लिया।
अब खोलो…
खोल लिया। अरे! किधर गए? कहाँ गए कान्हा?

तुम्हारे अंदर ही था बन्धु! अब भी तुम्हारे अंदर ही हूँ।

यह राष्ट्र मेरा है, यह सभ्यता मेरी है, मैं ही धर्म हूँ।

मैं आर्यावर्त के हर सनातन शरीर में हूँ… जब ढूंढो तब मिल जाऊंगा।

पर ढूंढने की आवश्यकता ही क्या है, तुम अपना कर्म करो मैं तुम्हारे साथ हूँ।

अपने कार्य के लिए किसी और से आशा न करो, स्वयं लड़ो अपना युद्घ। यही धर्म है…

— कन्हैया! कन्हैया! कन्हैया!

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