shiv vivaah
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Hindi Katha: देवी पार्वती ने मन-ही-मन भगवान् शिव का वरण कर लिया है, यह बात उनके पिता पर्वतराज हिमालय भली-भाँति जानते थे। उन्होंने सोचा – ‘यदि पार्वती भगवान् शिव का वरण करे तो यह स्थिति उनके लिए परम कल्याणकारी होगी । ‘ यह सोचकर उन्होंने पार्वती के विवाह के लिए एक स्वयंवर का आयोजन किया। इस अवसर पर इन्द्र, कुबेर, वरुण, सूर्य, चन्द्रमा, अश्विनी कुमार, अग्नि आदि देवगण, नाग, गंधर्व, यक्ष, दैत्य आदि भी सुंदर वस्त्राभूषणों से सुशोभित होकर वहाँ पधारे। देवी पार्वती गिरिराज हिमालय के निकट ही बैठी हुई थीं। उनका रूप-सौंदर्य देखकर उपस्थित सभाजन मोहित हो रहे थे ।

निश्चित समय पर स्वयंवर आरम्भ हुआ। पिता की आज्ञा प्राप्त कर देवी पार्वती वरमाला लिए हुए अपने आसन से उठीं और आगे की ओर बढ़ीं। किंतु अभी वे कुछ क़दम ही चली थीं कि सहसा भगवान् शिव पाँच शिखा वाले बालक बनकर उनके पास आए। देवी पार्वती ने अपने ध्यान द्वारा उनके वास्तविक स्वरूप को पहचान लिया। चूँकि उन्हें मनोवांछित वर मिल चुका था, अतः वे उन्हें साथ लिए स्वयंवर से लौट पड़ीं।

यह देख उपस्थित सभाजन अत्यंत विस्मित होकर कोलाहल करने लगे । इन्द्र ने तो मोहित होकर बालक पर वज्र का प्रहार करने का प्रयास किया। किंतु बालक- रूपधारी भगवान् शिव ने उन्हें स्तंभित कर दिया, जिससे वे न तो वज्र चला सके और न ही हिल-डुल सके। तब भग नामक एक आदित्य ने भी उन पर एक दिव्य- शक्ति का वार करना चाहा। भगवान् महादेव ने उन्हें भी जड़वत कर दिया, कि उनका बल, तेज और योग- शक्ति सभी व्यर्थ हो गए।

तभी ब्रह्माजी उन्हें पहचान गए और उनकी स्तुति करते हुए बोले – ” प्रभु ! आप परब्रह्म हैं। आप ही जगत् के रचयिता, पालक और संहारक हैं। देवगण और ऋषि-मुनि सदा आपका ही ध्यान करते हैं। आप सभी प्राणियों के लिए समान रूप से पूजनीय हैं। प्रभु ! देवी पार्वती भी प्रकृतिरूपा हैं और सृष्टि- कार्य में सदा आपकी सहायक होती हैं। वास्तव में ये आपकी पत्नी रूप में ही प्रकट हुई हैं। महादेव ! ये देवगण आपकी माया से मोहित होने के कारण आपके वास्तविक स्वरूप से अनभिज्ञ हैं। आप इनका मोह भंग करने की कृपा कीजिए। ‘

ब्रह्माजी की स्तुति से प्रसन्न होकर शिवजी अपने वास्तविक स्वरूप में प्रकट हो गए। उस समय उनके तेज से देवताओं के नेत्र बंद हो गए और वे मन-ही-मन उनका स्मरण करने लगे। तब प्रसन्न होकर शिवजी ने उन्हें दिव्य-दृष्टि प्रदान की, जिससे वे उनके दर्शन कर सके।

देवी पार्वती ने सभी देवताओं के देखते-ही-देखते वरमाला भगवान् शिव के श्रीचरणों में अर्पित कर दी। तत्पश्चात् पर्वतराज हिमालय के आग्रह पर ब्रह्माजी ने आचार्य बनकर पार्वती और भगवान् शिव का विवाह सम्पन्न करवाया। इसके बाद वे सभी अपने-अपने धाम पधार गए।