sarp bane nahush
sarp bane nahush

Bhagwan Vishnu Katha: पीछे आपने वृत्रासुर के वध की कहानी पढ़ी । वृत्रासुर का वध करने के कारण देवराज इन्द्र को ब्रह्म हत्या का पाप लगा । इससे उनका तेज क्षीण होता चला गया । देवगण इन्द्र को ब्रह्म हत्यारा कहकर उनकी निंदा करने लगे । उनकी कीर्ति नष्ट होती चली गई । सारी सिद्धियाँ होते हुए भी उनके मन में शांति न थी । आखिर एक दिन वे स्वर्ग से निकल पड़े और कैलाश पर्वत पर स्थित मानसरोवर पर चले गए । भय से उनका मन काँप रहा था । ब्रह्म हत्या से उनकी शक्ति क्षीण हो गई थी । वे मानसरोवर में उगे एक कमल की नाल में छिपकर बैठ गए । इन्द्र के स्वर्ग त्यागने से देवताओं का मन चिंतित हो गया । उनकी अनुपस्थिति में मेघों ने जल बरसाना बंद कर दिया । पृथ्वी में अन्न उपजाने की शक्ति नहीं रही । इस प्रकार चारों ओर अराजकता फैल जाने पर देवताओं और मुनियों ने परस्पर विचार करके इक्ष्याकु वंश के एक राजा नहुष को इन्द्र के पद पर नियुक्त कर दिया । नहुष एक धर्मात्मा व्यक्ति था, लेकिन इन्द्र बन जाने पर उसके मन में राजसी-वृत्ति उत्पन्न हो गई । वह भोग-विलास में डूब गया ।

एक बार की बात है, शची के सौंदर्य की प्रशंसा सुनकर नहुष के हृदय में उसे पाने की इच्छा जागृत हो गई । तब शची देवगुरु बृहस्पति के साथ भगवान् विष्णु की शरण में पहुँची और उनसे रक्षा की प्रार्थना की । श्रीविष्णु के परामर्श पर बृहस्पति मानसरोवर के तट पर पहुँचे और अश्वमेध यज्ञ कराने की समुचित व्यवस्था की । यज्ञ के सम्पन्न हो जाने पर इन्द्र ब्रह्महत्या से मुक्त हो गए और उचित अवसर की प्रतीक्षा में वहीं छुपे रहे । तब देवगुरु ने शची को देवी दुर्गा की पूजा-अर्चना करने का परामर्श दिया । शची ने तप आरम्भ कर दिया । उसकी आराधना से भगवती दुर्गा प्रसन्न हो गईं । उन्होंने शची से मनोवांछित वर माँगने के लिए कहा ।

शची बोली – “माते ! मुझे पति के दर्शन दुर्लभ हो गए हैं । मैं उन्हें पुन: प्राप्त करना चाहती हूँ । साथ ही, मुझे पापी नहुष से तनिक भी भय न रहे और मेरे पति को पुन: इन्द्र पद प्राप्त हो जाए । यह वर दीजिए ।“ दुर्गा माता ने उसे एक गुप्त उपाय बताया । शची वापस स्वर्ग लौट गई । शची को वहाँ देख नहुष उसके पास पहुँचा और उससे विवाह की इच्छा प्रकट की । वह बोली -“राजन ! यदि आप मुझसे विवाह करना चाहते हैं तो आपको किसी ऐसी सवारी में बैठकर आना होगा, जिसे महान ऋषि-मुनि ढोकर लाएं । ऐसा करने से आपका तेज और निखर उठेगा ।”

नहुष ने तत्क्षण अगत्स्य आदि प्रसिद्ध ऋषि-मुनियों को बुलाकर उन्हें शची की शर्त सुनाई । दैव-वश वे इस कार्य के लिए सहमत हो गए । नहुष ने शीघ्र ही एक सुंदर पालकी मँगवाई और अगत्स्य सहित अनेक ऋषि-मुनियों को उसे ढोने के लिए नियुक्त करके ‘सर्प-सर्प’, अर्थात् ‘चलो-चलो’ कहने लगा । भगवती दुर्गा की माया से उस समय नहुष की बुद्धि भ्रष्ट हो चुकी थी । उसे तो केवल शची को पाने की जल्दी थी इसलिए सर्प-सर्प कहते हुए उसने अगत्स्य ऋषि के सिर पर लात से प्रहार किया और अन्य ऋषियों पर कोई बरसाने लगा । इससे अगत्स्य मुनि क्रोधित हो गए और उन्होंने नहुष को उसी क्षण सर्प बनकर पृथ्वी पर गिर जाने का शाप दे दिया ।

नहुष तत्काल एक विशाल सर्प बनकर पृथ्वी पर जा गिरा । तब बृहस्पति इन्द्र को स्वर्ग में वापस ले आए । इस प्रकार इन्द्र पुन: स्वर्ग के आसन पर सुशोभित हुए ।

ये कथा ‘पुराणों की कथाएं’ किताब से ली गई है, इसकी और कथाएं पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं Purano Ki Kathayen(पुराणों की कथाएं)