Hindi Story:राजू बेचैनी से कभी घर के बाहर दौड़ कर दरवाजे तक जाता कभी फिर अंदर आ जाता।जब कई बार वो ऐसा करने लगा तो उसके दोस्त संजू से न रहा गया, उसने पूछा:”तू किसका इंतजार कर रहा है इतनी बेसब्री से?”
राजू मुस्कराते हुए बोला:”आज मेरे मामा,मामी और उनका बेटा टिंकू दिल्ली से आ रहे हैं।”
संजू:”ओह,वो लम्बी सी गाड़ी में जो आते हैं,वो तो तेरे लिए बहुत उपहार भी लाते हैं न।”
राजू की आंखों में एक अनोखी सी चमक आ गयी,सहमति में सिर हिलाते हुए वो फिर दरवाजे पर देखने लगा।
कुछ ही समय बाद,एक बड़ी शानदार चमचमाती गाड़ी उनके घर के सामने रूकी,राजू खुशी से चिल्लाते हुए मां को सूचित करने भागा:”मामा आ गए,”मां जल्दी आओ ,”की रट लगते हुए वो तीर की भांति अंदर घुसा।
थोडा देर में उसकी माँ भाई भाभी की आरती उतार रही थीं,छोटे टिंकू को प्यार से गोदी में लेकर वो अंदर आयीं।
उनकी भाभी रीता इठलाती हुई अंदर आयी,वो सुन्दर तो थी ही,ननद द्वारा की गई आवाभगत उसे और स्पेशल होने की अनुभूति कराती।वो जानती थी कि ये स्वागत उसका कम,उसके पति की पोस्ट,स्टेटस और उनके वैभव का होता है।तो फिर वो भी इस सम्मान का भरपूर आनंद लेती।
राजू की मम्मी उससे जरा सा भी काम न करवाती।यहां तो कोई नौकर भी नही था लेकिन उसकी ननद सब काम खुद ही समेटती,उससे कहती:”अरे एकाध दिन को आई हो अब तुमसे काम करवाउंगी क्या?”
जब भी वो लोग आते,पूरे घर के सभी सदस्यों के लिए मंहगे उपहार लाते,गाड़ी में उन्हें सारे शहर की सैर करवाते,सारे मोहल्ले में उनका कद ऊंचा हो जाता।
राजू का बड़ा रौब रहता अपने दोस्तों में।सभी खूब खुश होते।इस बार वो रक्षाबंधन पर आए थे तो खूब रौनक रही सारे त्यौहार में।
जब वो लौट के जाते तो राजू की मम्मी ऐसे विदाई करतीं जैसे ब्याहता लड़की को विदा कर रही हों,उनकी आंखों से आंसू बह निकलते,”भाभी भैया,जल्दी चक्कर लगाना फिर”,लरजती जुबान से बोलतीं।
रीता बहुत खुश थी,हालांकि वो जानती थी कि ये सारा सम्मान उसके पति की वजह से है,वो इतनी ऊंची पोस्ट पर हैं,बहन के घर जी खोल कर खर्च करते हैं और उन्हें हर तरह की सहायता का आश्वासन दिए रखते हैं।और कुछ हो न हो,अपनी बहन के बच्चों के लिए,उनके मामा ही आदर्श थे,बड़े होकर बिलकुल मामा जैसा ही बनना है,ये तो सोच हो रखा था उसने।
समय बड़ी तेजी से भागा जा रहा था कि एक दिन ऐसी खबर आई कि राजू के घर मे हाहाकार मच गया।उसके मामा इस बार सपरिवार उनके यहां के लिए चले थे और सड़क दुर्घटना में उनकी मौत की खबर ने सारे परिवार को हिला के रख दिया।मामी और टिंकू को हल्की चोटें लगी थीं लेकिन राजू के मामा को ये हादसा अपनी चपेट में ले गया अपने साथ और इस बात ने उसकी मामी की पूरी दुनिया ही बदल दी।असर तो इस बात का पूरे घर पर ही था,टिंकू बहुत उदास हो गया था,पापा को मिस करता था हर वक्त लेकिन रीता को तो अब कोई पहचान ही नहीं पाता था।
उसकी शक्ल देख कोई भी घबरा जाए,जो गोरी सुन्दर स्त्री,लाल बड़ी सी बिंदी,चौड़ी मांग भरी हुई,आंखों में काजल,होठो पर गाढ़ी लिप्स्टिक लगाए रखती,आज मोटी सूजी आंखे,बिखरे बाल,सपाट सूना माथा और मांग में ,शून्य में खोई साक्षात दुख की मूरत लग रही थी।
कुछ समय बाद,राजू के मामा के आफिस में उसकी मामी को पीयोन की नौकरी मिल गयी,कैसे भी घर तो चलाना ही था।इसे कहते हैअर्श से फर्श पर गिरना।जहां वो मालकिन बन रहती अब एक साधारण से भी साधारण नौकरी से गुजारा करती थी,पहले जहां वो छोटे लोगों से मुंह संभाल के बात नहीं करती थी एबी ही काम,खुद उसके जीवन का आधार बन चुका था।कितना ही रोई,बिलखी वो एकांत में पर रोते रोते,अब आंसू भी सूख चुके थे।किसी के चले जाने पर जिंदगी रुकती नहीं,बस जो चला जाता है,उसके साथ बचे हुए साथी की जिंदगी चलती तो रहती है पर जैसे बिन प्राणों के शरीर,बिन पतवार के नौका।
आज कई वर्ष बाद ,राजू की बहन की शादी में मामी और टिंकू आ रहे थे।एक कभी पहले का ज़माना था जब उनके आने पर राजू की मां उनकी आरती उतारती थी और एक आज का समय ,जब कोई उससे ढंग से बात भी नही कर रहा था।खैर उसे इन लोगो से बहुत लगाव जो था,वो पूरी तत्परता से काम कर रही थी।
अभी अभी पता चला कि बारात आ चुकी थी,राजू की माँ झटपट आरते का थाल सजा दामाद की अगवानी के लिए दरवाजे पर आयीं,”अरे !शगुन का गोला तो अंदर रह गया”,उन्होंने इधर उधर देखा,राजू की मामी उन्हें ये लाकर देने वाली थी कि घर की कोई बुजुर्ग चिल्लाई:”अरे विधवा को यहां किसने आने दिया,इसकी तो परछाई भी यहां नही पड़नी चाहिए।”
राजू की माँ ने भी उसे कड़ी निगाहों से देखते हुए कहा:”मना किया था न तुम्हे सामने पड़ने को,फिर क्यों इधर आई तुम?”
मामी का यूं अपमान होगा,उसने कभी सपने में भी न सोचा था,फफक के रोती हुई वो कमरे में भाग गई और रोती रही थी बहुत देर तक बिलख बिलख के,कैसे करके उसने खुद को समझाया था अपने पति की मौत के बाद,अकेले रहना सीख ही रही थी वो लेकिन ये जालिम समाज उसे ऐसा करने दे तब न…आज एक बहुत बड़ा प्रश्न समाज मे छोड़ गई थी राजू की मामी की उदासी और रूलाई और उसकी मम्मी की संकीर्ण सोच।
“क्या विधवाओं को जीने का,खुश होने का कोई अधिकार नहीं है,ये नियम किसने बनाये है कि शुभ कार्यों में विधवा के आने से अपशगुन होता है।समाज मे इन कुरीतियों का अंत होना ही चाहिए।एक तो भगवान की तरफ से पहले ही उससे उसका पति छिन जाता है,दुखों का पहाड़ उसपर टूटता है और ये ज़ालिम समाज उसपर और अत्याचार करे,ये कहाँ का न्याय है?”
समाज मे खुशियां लानी है तो अपनी संकुचित सोच को त्यागें और विस्तृत समझ को विकसित कर के ही एक सुन्दर सफल समाज की संरचना में अपना सहयोग दें।
साथ ही एक अन्य पक्ष भी उजागर कर गई थी उस दिन की घटना,मृत्यु एक अटल सत्य है,इससे कोई इंकार नहीं कर सकता।अगर किसी परिवार में एक आदमी मरता है तो उसके साथ सारा परिवार प्रभावित होता है।उनकी सिर्फ सांसे चलती हैं,दिल धड़कता है जरूर पर जिंदगी खत्म ही हो जाती है।
