Hindi Social Story
Hindi Social Story

Hindi Social Story: आंखों में मोटे प्रेम का चश्मा लगाए हुए जैसे ही नीता आचार्या की गाड़ी घनश्याम आश्रम के गेट से घुसी छोटे छोटे बच्चों से लेकर बड़े बुजुर्ग लोग चिल्लाते हुए उधर आ पहुंचे
“बड़ी दीदी आ गई! बड़ी दीदी आ गई!!”

“बस बस रुको तो सही, पहले मुझे उतरने दो फिर…!”
नीता गाड़ी से उतरकर खड़ी हुई कि बच्चे उसके चारों ओर नाचने लगे।
ड्राइवर और एक स्टाफ के साथ नीता ने अपने साथ लाए हुए नाश्ते, मिठाई और फल भीतर रखवाने लगी।

थोड़ी देर बाद सब लोग मनोयोग से नाश्ता करने लगे।
बच्चे खुश होकर खा भी रहे थे और खेल रहे थे। अनाथालय और वृद्धाश्रम बच्चों की किलकारियों से गूंज उठा था।
थोड़ी देर तक नीता उन सबको देखने लगी फिर स्टाफ रूम की तरफ बढ़ गई।
नीता आचार्या इस आश्रम की मालकिन थी।शहर के नामचीन बिजनेसमैन घनश्याम आचार्या की इकलौती बेटी नीता आचार्या को कौन नहीं जानता था।
“आइए मैम!”जैसे ही वो स्टाफ रुम के भीतर आईं सबलोग बहुत ही अदब से खड़े हो गए।

“ नमस्ते- नमस्ते! क्या हाल-चाल है? यहां किसी चीज की जरूरत तो नहीं है?कोई भी जरूरत हो लिस्ट भेज देना ।”
“नहीं मैम, सब है । ठंड आने वाली है तो नए कंबलों की जरूरत पड़ेगी।”
 “ठीक है। नीता के साथ चल रहे सेक्रेटरी ने नोट कर लिया।
बच्चे अभी तक खेल रहे थे । बच्चे बूढ़े सबके चेहरे पर मुस्कान थी। थोड़ी देर तक वह उन सबको देखती रही थी। यही देखने के लिए तो वो यहां आती थी और इतना कुछ ले-देकर ताकि जीने की, मुस्कुराने की कुछ पल चुरा कर अपने हिस्से में कर सके।

वह वापस घर चली गई। इतना बड़ा आलीशान बंगला और उसने रहने वाली अकेली नीता। घर पहुंचने के बाद जैसे ही उसने ड्राइंग रूम में कदम रखा उसके दिवंगत माता पिता की बड़ी सी तस्वीर उसे निहार रही थी।
उसने बड़ी उपेक्षा से अपने पिता की तरफ देखा और अपने कमरे की ओर बढ़ गई। “दीदी आपका नाश्ता ?”
“मेरे कमरे में भिजवा देना!” वह सीढ़ियों से ऊपर चली गई।
अमला बचपन से उसके साथ इस घर में रही थी ।उसका साथ आज तक निभाती आ रही थी। कहने को वह घर की नौकरानी थी मगर नीता का ख्याल रखना, खाना बनाना, उसे खिलाना सब कुछ उसी की जिम्मेदारी थी।
अमला अपने हाथ में नाश्ते की ट्रे और जूस लेकर उसके कमरे में आई।
“ मैं यहां बैठ जाऊं ?”
“बैठो ना!”
“ चलो तुम नाश्ता कर लो ?”
“मैं कर लूंगी!” नीता मुस्कुराने की कोशिश करने लगी।
“ नहीं मैं तब तक यहां रहूंगी जब तक तुम नाश्ता नहीं करोगी ।”
“ठीक है बाबा तुम मुझे छोड़ोगी तो नहीं!” नीता ने प्लेट हाथ में उठा लिया और खाने लगी।  
खाली प्लेट और जूस का गिलास  टेबल पर रखने के बाद उसने कहा”हो गया बस !”
“हां,तुम्हें खाते हुए देखकर ही तो मेरा पेट भर जाता है। मैं मरे हुए मालिक मालकिन को क्या जवाब दूंगी?”
 नीता का मन कड़वाहट से भर गया।
“अब मैं जाती हूं ।”अमला प्लेट और गिलास लेकर नीचे चली गई और नीता अकेले अपने कमरे में रह गई।

जब अमला वहां से चली गई, नीता अपने सोफे पर अपना सिर टिका कर बैठ गई। उसके दिमाग में पुरानी बातें एक झंझावात की तरह घूमने लगी थी।

घनश्याम आचार्या यानी नीता के पिता शहर के एक नामचीन बिजनेसमैन थे और मधु आचार्या यानी नीता की मां,एक प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता।
नीता उस समय 17 साल की थी, जब उसने स्कूल से पास आउट कर कॉलेज में नाम लिखाया था ।
कॉलेज जाने के नाम से ही वो कितनी खुश थी ।
“अब मैं स्कूल छोड़कर कॉलेज जाउंगी !”
वह रोज-रोज ने कपडे खरीदती । नई जूतियां, मेकअप के समान।
 उसके माता-पिता दोनों खुश भी थे ।

जैसे ही नीता कॉलेज गई वहां उसकी मुलाकात मंगल से हो गई । मंगल उसका सहपाठी था ।पहले दिन ही क्लास में टीचर ने पूरे क्लास को  उसका परिचय कराते हुए कहा “देखो यह है मंगल ठाकुर ,इस बार की 12वीं का टॉपर ।पूरे स्टेट का टॉपर है। सब लोग उसके लिए तालियां बजाओ।”

नीता की नजर उसकी ओर चली गई।मंगल बहुत ही सीधा-साधा होनहार लड़का था।देखने में भी उतना ही हैंडसम, पतला दुबला, लंबा, बड़ी-बड़ी आंखें और अपनी किताबों से ही मतलब रखता था।

मंगल की काबिलियत और नीता की खूबसूरती,दोनों ही आग में घी डालने का काम कर रही थी।
मंगल अपने घर का इकलौता चिराग था। नीता भी अपने घर की इकलौती वारिस थी मगर दोनों के जीवन स्तर में आसमान जमीन से भी ज्यादा का अंतर था।
मंगल के पिता एक फैक्ट्री में काम करते हुए  एक हाथ गलती से कट चुका था। तब से वह गांव में ही रहते थे ।बड़ी मुश्किल से खेती बाड़ी कर अपना घर चलते थे।
मंगल शुरू से ही पढ़ने में बहुत तेज था। स्कॉलरशिप मिलने के कारण ही वह पढ़ाई कर रहा था।
साल बीत गया था।मंगल और नीता दोनों एक-दूसरे के और करीब आते जा रहे थे।
कई बार मंगल का दिल धड़क जाता। वह नीता से कहता “ मैं तुम्हारे लायक नहीं हूं नीता !तुम एक बहुत बड़े बाप की बेटी हो।”

नीता को भी पता था कि उसके माता-पिता इस रिश्ते के लिए कभी तैयार नहीं होंगे फिर भी…! प्यार ने कब धरातल देखा है…!!
दोनों स्वछंद रूप से आकाश में उड़ रहे थे। मंगल अब और मेहनत कर पढ़ाई कर रहा था ताकि वह कोई प्रशासनिक परीक्षा निकाल ले और कोई अफसर बन जाए।फिर वह नीता का हाथ खुशी से मांग सकता है।
साल दो साल तक ये खबर तो छुपी रही मगर इश्क और गंध हवा में घुलती कहां है!दूर-दूर तक उसकी महक फैल जाती है ।
वही हाल नीता और मंगल के प्रेम का हो गया था।
खबर सुनते ही घनश्याम जी का खून खौल उठा।उनके गुस्से का ठिकाना ही नहीं था। उन्होंने मंगल के बारे में पता लगा लिया ।
मंगल एक सरकारी छात्रावास में रह रहा था।
भला उस अदने से लड़के की यह हिमाकत कि वह उनकी बेटी से प्यार करें!उन्होंने अपने आदमियों को उसके पीछे लगा दिया।

नीता इन बातों से बेखबर थी।अमला की मां कांताबाई उस समय घर में काम कर रही थी। उसने घनश्याम जी को लठैतों से बात करते हुए सुन लिया था ।वह भागती हुई नीता के कमरे में गई और उसे सारी बातें बता दिया ।

अपने पिता के हरकत पर नीता को यकीन भी नहीं हुआ था ।
“समय कम है दीदी! तुम कुछ करो अब!”
उस दिन वैसे ही मूसलाधार बारिश हो रही थी जैसे कि सबकुछ निगल जाएगी। मंगल का फोन भी नहीं लग रहा था।अंत में उसने
उसने कांताबाई  के आगे ही हाथ जोड़े,
“काकी,आप ही कुछ करो अब! मैं मंगल को मरते हुए नहीं देख सकती!”
फिर उसने जल्दी-जल्दी चिट्ठी लिखा और कांता बाई के हाथों से ही चिट्ठी भिजवा दिया।

“मंगल प्लीज यहां चले जाओ, मेरे पापा तुम्हें मार डालेंगे!”

उसके बाद उसने कभी भी मंगल को नहीं देखा।न ही उसका फोन कभी लगा और न ही मंगल ने उससे संपर्क करने की कोशिश भी की।
घनश्याम जी की इज्जत तो बच गई थी लेकिन नीता का सबकुछ उजड़ गया था।दिल की धड़कन, आंखों के सपने, आंखों के आंसू भी सूख चुके थे।
उसे यह भी नहीं पता था कि मंगल जिंदा भी है या नहीं!
कांताबाई ने चिट्ठी उसके तक पहुंचा दिया था लेकिन उसके बाद उसकी कोई खबर उसे नहीं मिली।
कॉलेज में भी उसके दोस्तों को उसके बारे में कुछ भी नहीं पता था।
बहुत ही दुखी होकर उसने अपने आप को पढ़ाई में झोंक दिया।बीए करने के बाद उसने एमबीए किया, रिसर्च करने लगी।
अब शादी की उम्र हो चुकी थी।

घनश्याम जी जब भी शादी की बात करते, वह इंकार कर देती। उसकी नज़रों में उसके पिता पूरी तरह से गिर चुके थे। उसे ऐसा लगता था कि मंगल की हत्या उसके पिता ने करवा दिया है।
वह अपराध बोध से भर गई थी।

इसी बीच एक सड़क दुर्घटना में घनश्याम
 जी और मधु दोनों की मृत्यु हो गई। नीता अकेली हो गई थी।
एक तरफ मंगल की यादें और एक तरफ अपने पापा की विरासत, उसने फैसला किया कि वह अपने पापा की विरासत संभालेगी।

अपने माता-पिता के बिजनेस को संभालते हुए उसने एक अनाथालय और वृद्धाश्रम भी खोला।
पहले जब कभी मंगल अपने भविष्य संजोता तो कहता “नीता, जब मैं कामयाब हो जाऊंगा ना तो एक वृद्धाश्रम और अनाथालय जरूर खोलूंगा। मैंने गरीबी और दुख बहुत पास से देखा है!”
अपने खोए हुए प्यार को परिभाषित करने के लिए नीता ने एक अनाथालय और वृद्धाश्रम खोला था लेकिन उसने नाम अपने पिता का रखा था।
इसलिए सबको यह लगता कि नीता अपने माता-पिता को श्रद्धांजलि देने के लिए ऐसा किया है।
सच तो यह था कि नीता अब तक अपने मन की कड़वाहट भूल नहीं पाई थी।

बीते दिनों को यादों कर नीता की आंखों से समंदर बह निकला था।
देखते देखते तीन साल बीत गए थे मगर  मंगल का कुछ भी पता नहीं चला था।

उस दिन नीता अपने दफ्तर में बैठी थी तभी  सिटी हॉस्पिटल से डॉक्टर वंदना तिवारी का फोन आने लगा।
वंदना तिवारी नीता के बचपन की दोस्त थीं और उसकी राजदार भी।
“नीता,चंदनपुर से बाढ़ पीड़ितों को बचाकर इस अस्पताल में भर्ती कराया गया है। उनमें एक मंगल ठाकुर भी है !शायद …ये वही है!तुम जल्दी से आ जाओ।”
“चंदनपुर!! ऐसा कैसे हो सकता है? उसे तो पापा ने…!! यह सोचकर वह कांप उठी।
नीता हड़बड़ी में अपनी कार निकाली और सिटी हॉस्पिटल पहुंच गई।
मरीजों की भीड़ थी। चारों तरफ मरीजों की चीख-पुकार मची हुई थी।वह तेजी से वंदना के केबिन में पहुंच गई।
“आ गई तू!”
“हां कहां है वो?”
वंदना  उसे मंगल के वार्ड में ले गई। वहां मंगल अस्पताल के बिस्तर पर पड़ा हुआ कराह रहा था।
“हां यह तो मंगल ही है! क्या हाल बना लिया है इसने!!”
नीता सिर से पांव तक सिहर गई।” इसका मतलब कि उसके पापा ने उसका खून नहीं करवाया था! वह जिंदा है!!”
आज उसने अपने पिता को माफ कर दिया।

मंगल ने अपना उम्र से कहीं बहुत अधिक बड़ा लग रहा था।
 वह मंगल के बेड के पास जाकर खड़ी हो गई।
“ नमस्ते मेम साहब! मंगल ने नीता को देखकर सोचा कि  कोई उन लोगों की मदद करने के लिए वहां आया है ।
“मंगल मुझे पहचाना नहीं !!मैं नीता हूं!”

“ नीता…!!, मंगल के चेहरे पर पछतावे भरी हंसी आ गई।
“तुमने क्या हाल बना लिया है मंगल?”
“जब चकोर चांद के सपने देखने लगे तो यही हाल हो जाता है!”
“ मंगल मुझे माफी मांगने का मौका तो दो। अब तुम कहीं नहीं जाओगे। यही रहोगे तुम और तुम्हारा पूरा परिवार।
तुम्हारी जिंदगी मेरी कारण बर्बाद हुई है , नहीं तो आज तुम किसी साहब वाली कुर्सी में बैठे होते!”
मंगल की आंखें भर आईं।
“अब वह सब पुरानी बातें हो गई है!अब मैं उस काबिल नहीं रहा ।मैंने सपने देखने छोड़ दिए ।”
“नहीं मंगल, तुमने सपने देखे भले छोड़ दिया पर तुम्हें सपने संजोने होंगे फिर से मेरे लिए ।
मैं तुम्हारी जिंदगी बर्बाद की है और अब तुम मेरी कंपनी में बराबर के हिस्सेदार रहोगे। तुम कहीं नहीं जाओगे। मेरे साथ मेरे घर चलोगे। नहीं तो मैं आजीवन अपने आप को माफ नहीं कर पाऊंगी ।”
नीता ने मंगल का हाथ थाम लिया।