prakrti kee fariyaad
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भारत कथा माला

उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़  साधुओं  और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं

जंगल के सभी जानवर इकट्ठा हो रहे थे। आज उनमें आपस में कोई ईर्ष्या-द्वेष नहीं था, कोई छोटे-बड़े का भेदभाव नहीं था। सभी जानवर दु:खी थे, सभी परेशान। उनकी सभा में जानवरों के साथ-साथ नदियाँ, झीलें, झरने और पहाड़ भी इकट्ठा हुए थे। सभी सहमें हुए और सभी चिन्तित । आज सबने फैसला किया था कि वे सब मिलकर एक संघर्ष समिति का गठन करेंगे। सृष्टि के दरबार में आज सभी अपनी व्यथा कहना चाहते थे। तय हुआ कि सभी वर्ग एक-एक करके अपनी बात रखें वरना कोलाहल में कुछ भी समझना मुश्किल हो जाएगा। निश्चय किया कि सबसे छोटे प्राणियों से बात शुरू की जाए।

सबसे पहले चींटी ने खड़े होकर कहा,- ‘महाराज, मेरा आकार देखिए, मैं कितनी छोटी हूँ, पर मेहनत करने में मेरा जबाव नहीं है। मैं हमेशा काम करती रहती हूँ। मुझे शायद ही कभी किसी ने बैठे या सुस्ताते देखा होगा। हमारी बिरादरी के लोग बदले में कुछ नहीं मांगते जो बचा खुचा होता है वही खाकर गुजारा करते हैं और जहाँ तहाँ रहकर अपना जीवन काटते हैं फिर भी सड़ा गला कूड़ा-करकट साफ कर सफाई कर्मचारी कहलाते हैं। हमारे कारण न जाने कितने ही अपशिष्ट पदार्थ मिट्टी के साथ मिलकर डिकम्पोज हो जाते हैं पर पहले लोग हमारे बिलों पर आकर खुद आटा डालते थे और इसे पुण्य समझते थे, परन्तु आज हमारे अस्तित्व पर खतरा उत्पन्न हो गया है। मनुष्य ने तरह-तरह के कीटनाशक उत्पन्न करके हमारी प्रजातियों को नष्ट कर दिया है। यही स्थिति रही तो हमारी कीड़े-मकोड़ों की जाति नष्ट हो जाएगी। हमारी रक्षा करो।’

चिड़ियों के झुंड अपने साथियों तोतों, बगुलों, गौरैया, गिद्ध-चील मोर, कबूतर, सारस के साथ आए थे। नन्हीं गौरैया ने कहा, ‘ महाराज, मैं सबसे नन्हीं भोली भाली इंसान के साथ मिल-जुलकर रहने वाली चिड़िया हूँ। लोग मुझे इतना प्यार करते थे कि मेरी तुलना अपनी बेटियों से करते थे। अक्सर बेटियाँ भी अपने घर में यही कहतीं थीं,

‘बाबुल हम तेरे महलों की चिड़ियाँ

पर अब तो लोग न बेटी होने पर जश्न मनाते हैं और न मुझे यह कहकर खिलाते हैं कि-

“राम की चिरैयाँ, राम जी के खेत

खाओ चिरैयों भरि भरि पेट’

अब खाना खाने की बात तो छोड़ो पानी तक को हमें तरसना पड़ रहा है। कितनी ही हमारी सहेलियाँ भूखी प्यासी मर गईं।

तभी गिद्ध ने कोने से सिर निकालकर कहा, महाराज मैं अलग-थलग कोने में पड़े रहने वाला पक्षी हूँ । मेरे लिए शिकार करना तो दूर है। मैं तो केवल मरे सड़े-गले जानवरों आदि को खाकर ही गुजारा कर लेता हूँ। मेरी सेवा का आप इससे अंदाजा लगा सकते हैं कि मेरे ही पूर्वज श्री जटायु महाराज ने सीता माता की दुष्ट रावण से रक्षा करने की कोशिश में अपने प्राण तक गंवा दिए थे। आज हमारी प्रजाति विलुप्त होने की कगार पर है। विषैले रासायनिकों के कारण हमारे अनेक भाई-बहन समाप्त हो गए। सुबह उड़ने वाली हमारी पक्षियों की कतारें गुम हो गयीं। नई पीढ़ी के बच्चों को हम बता ही नहीं सकते कि पहले सूरज निकला चिड़ियाँ बोलीं से दिनचर्या शुरू होती थी।

कभी हमारे सुन्दर पंख के लिए, कभी हमारा मांस खाने के लिए हमारा शिकार किया गया। यही हाल रहा तो मनुष्य के अत्याचारों से हम सब एक दिन नष्ट हो जाएगें।’

पशुओं के झुंड बड़ी देर से अपनी बारी आने का इंतजार कर रहे थे। गाय, बैल, घोड़ा, भालू, हिरन, बारहसिंहा एक साथ गुहार लगाने लगे। गाय ने कहा, –‘महाराज, यूँ तो मनुष्य कहता है कि गाय हमारी माता है। यह सब सृष्टि गाय के सींग पर टिकी है पर हम पर अत्याचार करने में कोई कसर नहीं रखता। मेरे दूध को पीकर मनुष्य के बच्चे बड़े और बलवान बनते हैं पर वही बच्चे मेरे बच्चों पर अत्याचार करते हैं। उनसे बोझा उठवाते हैं तथा गाड़ियाँ हंकवाते हैं। हमने बरसों मनुष्य की सेवा की है। उनके पूर्वज पहली रोटी हमारे लिए निकालते थे, पर आज न केवल हमारे परिवार के भूखों मरने की नौबत आ गई है बल्कि कई बार लापरवाही से लोग खाने पीने की चीजें पॉलीथीन में भरकर फेंक देते हैं जिसके खाने से पॉलीथीन हमारे पेट में चली जाती है। अपने भोलेपन के कारण हमारे परिवार के सदस्य पेट दर्द से तड़प-तड़प कर मरते हैं। हमें असमय ही मार कर खा लेते हैं।

जानवरों के झुंड ने कहा हमारे छोटे साथियों की बात छोड़ो, खुद हमारे महाराज शेरसिंह कभी जंगल के राजा कहलाते थे। सर्वाधिक शक्तिशाली व्यक्ति की तुलना शेर कहकर की जाती थी पर कभी शक्ति प्रदर्शन के लिए और कभी शौक के लिए शेर का इतना शिकार किया गया कि आज संपूर्ण विश्व में बाघों और शेरों की प्रजातियाँ विलुप्ति की कगार पर आ गई हैं।

पॉलीथीन का नाम सुनकर नदियों, झीलों, झरनों, पहाड़ों को भी गुस्सा आ गया। एक भीषण गर्जना के साथ उन्होंने गरज कर कहा, ‘मनुष्य ने पॉलीथीन नाम के एक ऐसे राक्षस का निर्माण किया है जो न जलाने से, न गलाने से, न सुखाने से नष्ट होता है। यह वह दैत्य है जो जिस जगह पहुँचता है उस जगह का रास्ता बंद कर देता है। धरती पर पड़े रहने से धरती बंजर हो रही है। महाराज जल ही जीवन है, हम जल दाता हैं। सारी धरती के पालक पोषक हम हैं, पर आज हमारे परिवार की जो दुर्दशा है, वह सबको भली भाँति पता है।

आज हम जितने बड़े शहर से गुजरते हैं हमें उतने अधिक कचरे का सामना करना पड़ता है। सारी गन्दगी, सारा कूड़ा करकट, सीवर लाइन के जरिए हमारे जल में प्रवाहित कर दिया जाता है। हमारी नदियों के पानी में फैक्ट्रियों, कारखानों से निकलने वाले रासायनिक कचरे को भी नदी में छोड़ दिया जाता है। इससे हमारे ही साथी जिनमें मछलियाँ, सीप, घोंघे, शंख मर जाते हैं। हमारी सुन्दर निर्मल काया पर काई, जलकुम्भी, सिवार इस कदर पट जाती है, मानों हमारे शरीर पर खुजली हो गई है। हमारी जीवनदायिनी गंगा मैया, जिसकी पवित्रता की लोग कसम खाते थे। वह आज खुद अपवित्र हो गई है। अगर यही हाल रहा तो हमारा अस्तित्व मिट जाएगा।

वहीं खड़े हुए पेड़ों ने बहुत दुखी स्वर में कहा- मेरी दुर्दशा का हाल सबको पता है। कभी हमारे हरे-भरे जंगलों से धरती आबाद थी। तुम सब मेरी गोद में कुलांचे भरते थे। मनुष्य ने कितनी शालीनता से मुझसे उधार मांगना शुरू किया कि रहने के लिए घर बनाना है। मुझसे लकड़ी लेकर घर बनवाया। आज उन्हीं घरों में रहकर वह हम पर राज करने लगा और हमें दर बदर कर दिया। आज हमें काटकर गगनचुम्बी अट्टालिकाएं बनाकर हरे भरे वृक्षों की जगह कंक्रीट के जंगल सजा लिए। मेरे पहाड़ भाई जिनकी मैं शोभा था, जिनका मैं वस्त्र था, गहना था वह बेचारे आज नग्नावस्था में खड़े हैं। बंजर और वीरान हो चुके हैं।

अगर वृक्षों के काटने का यही हाल रहा तो पृथ्वी से हरियाली मिट जाएगी। प्रदूषण और शोर इतना बढ़ रहा है कि मनुष्य को सांस लेना मुश्किल हो जाएगा। उनकी प्राण वायु जिससे वह सांस लेकर जीवित हैं वह मेरे ही वृक्ष भाइयों की देन ऑक्सीजन के कारण है। पहले के लोग मेरे रिश्तेदारों- बरगद, नीम, पीपल, तुलसी, नारियल की पूजा करते थे। उनका काटना अशुभ मानते थे। दिन की शुरूआत तुलसी पीपल की जडों में जल चढ़ाकर करते थे। आज वह संस्कार जल्दी दिखाई नहीं देते। यदि यही हाल रहा तो हमारा अस्तित्व मिट जाएगा।

इसी प्रकार सभी ने अपनी-अपनी व्यथा कही। सबकी व्यथा भीषण थी। सबकी व्यथा सुनकर संघर्ष समिति ने अंत में फैसला लिया कि मनुष्य को तुरन्त एक चेतावनी दी जाए कि-

यदि मनुष्य ने अत्याचार बन्द नहीं किए तो वह दिन दूर नहीं कि वह सब मिलकर एक दिन मनुष्य का विनाश कर देगें तथा उस प्रलय की जिम्मेदारी स्वयं मनुष्य पर होगी।

सृष्टि ने मनुष्य से कहा कि अभी समय है। तुम प्रकृति से खिलवाड़ न करो।

प्राकृतिक परिवेश ने तुम्हें सुरक्षा प्रदान की है। तुम इसके रक्षक बनो तो ठीक है, वरना प्रकृति स्वयं बहुत शक्तिशाली है। वह स्वयं तुमसे अपना बदला ले लेगी जिसकी जिम्मेदारी तुम्हारा प्रकृति पर अत्याधिक अत्याचार तथा प्रकृति का अत्याधिक दोहन होगी।

भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’