दो दिन से काफी बारिश थी । रात भर बारिश होने के कारण , मौसम काफी बदल गया था। मौसम के अचानक बदलने के कारण तबीयत कुछ ख़राब थी।
आज भी मौसम खुला नहीं था। इस वजह से समय का पता ही नहीं चला ।चौंक कर घड़ी की तरफ देखा,” अरे 7:00 बज गए ” और जल्दी से रसोई घर की तरफ चाय बनाने के लिए भागी। तभी…. अचानक एक जोर का धमाका हुआ और बिजली गायब हो गयी। धमाके की आवाज सुनते ही मेरे मुंह से निकला,” लगता है कोई पक्षी फिर से इन नंगी तारों की भेंट चढ़ गया”!
अभी मुंह से शब्द निकले ही थे कि फोन की घंटी बजी। मेरी पड़ोसन की काॅल थी । मेरी आवाज सुनते ही पड़ोसन बोली ,”सुन पड़ोस वाले शर्मा अंकल नहीं रहे “।
“कब हुआ”?
” रात में “।
“अच्छा “,कहकर मैंने काॅल डिस्कनैक्ट कर दी और वापस किचन में आ गयी। किचन की खिड़की से बाहर देखा ,नंगी तारों से एक कबूतर चिपका हुआ था । यह देख मन बहुत दुखी हो गया। फटाफट चाय नाश्ता- निपटाकर तैयार हुई, शर्मा अंकल के घर शोक के लिए जो जाना था।
घर से बाहर निकली देखा आज वातावरण में अजीब सा शोर था ।हो भी क्यों ना !एक बेजुबान सुबह-सुबह बे मौत जो मारा गया था। सारे ही कबूतर छतों की मुंडेरों पर इकट्ठे हो गए थे ।सब मिलकर गुटर गू ,गुटर गू कर रहे थे। उन्हें शोर करता देख और भी सारे पक्षी, यहां तक कि बंदर भी वहां इकट्ठे हो चुके थे ।खैर मैं शर्मा जी के घर पहुंची। लेकिन माहौल देख एक बार तो असमंजस में पड़ गई कि, खबर सच्ची है या झूठी?
फिर भी ……अंदर पहुंची .तो ….!
शर्मा अंकल जी का पार्थिव शरीर फर्श पर रखा था ।एक पंडित जी बैठे हुए जो भी औपचारिक कार्य थे कर रहे थे ।इक्के दुक्के लोगों को छोड़कर घर का कोई सदस्य नहीं दिख रहा था। पहलम पहल तो समझ ही नहीं आया, “बैठूं? रुकूं ?या क्या करूं”? फिर पता नहीं क्यों !शर्मा अंकल की छोटी बहू के कमरे की तरफ बढ़ गई।
छोटी भाभी अपने कमरे में ही थी। TV चल रहा था और वह किसी पत्रिका को पढ़ने में व्यस्त थी। मुझे देख चौंकी ,”अरे रीना तुम ?आओ बैठो! देखो ना बाबू जी हम सबको छोड़कर कितनी जल्दी चले गए न”!
मैंने भी ,”हां “,में गर्दन हिलाई ।
वह आगे बोली,” कब तक बैठी रहती बाहर ?जाने वाला तो चला गया। क्रिया क्रम में अभी तो वक्त है। पंडित जी के कार्य करने का है तो वह कर रहे हैं ।जब सब कार्य पूरे हो जाएंगे, तो मैं बाहर आ जाऊंगी। शामिल ही तो होना है ।वैसे भी अभी तक तो बड़े भैया भाभी भी नहीं आए हैं। सुबह ही उन्हें खबर कर दी थी ।सब जानती हूं! वह अपना पूरा काम करके ही आएंगे”। कुछ बोलना चाहा लेकिन शब्द होंठों के बीच ही अटके रहे ।एक अजीब-सी नज़र से मैंने उनका निरीक्षण किया।
थोड़ी देर रुक कर फिर बोली ,,”चाय पियोगी क्या”?
मैंने नहीं में सर हिलाया और फिर ,”अच्छा रुक कर आती हूं” और वहां से आ गई।
पक्षी अभी भी शोर कर रहे थे ।यह शोर, रोज के शोर से अलग था। उसमें एक करुणा थी ,एक दर्द था ।कहने को तो ये सिर्फ पक्षी या पशु हैं ।पर हम इंसानो से ज्यादा आत्मीयता थी।
एक पक्षी की मौत पर सब इकट्ठे हो गए और इंसान उसे तो अपनों के लिए ही समय नहीं ।घर पहुंची तो पति देव मुस्कुराते हुए बोले,” क्या हुआ”?
लेकिन मुस्कुराहट के पीछे छिपा व्यंग समझ गई थी मैं ।
मैंने कहा , “कुछ नहीं !जब दाह संस्कार को ले जा रहे होंगे, तो चली जाऊंगी”।
मैं फटाफट अपने रोज के कार्य करने लगी ,पर मन बहुत बेचैन था।
कुछ समय बाद पति भी वहां अपनी उपस्थिति दर्ज करा आफिस निकल गये। मैंने भी अपने और काम जल्दी जल्दी निपटाए और कामवाली को बाकी काम समझा कर शर्मा अंकल जी के घर की तरफ चल दी ।घर के बाहर अटरिया पर नजर गई ।आज किसी भी पक्षी ने दाना नहीं चुगा था। हर दिन से ज्यादा पक्षी और बंदर बैठे थे। पर उन सब में रोज वाली चंचलता नहीं थी ।
शर्मा अंकल के घर भी आस पड़ोस के लोग इकट्ठे हो चुके थे ।पार्थिव शरीर को श्मशान ले जाने की तैयारी पूरी हो चुकी थी और सभी एकत्रित लोग अपनी-अपनी गुफ्तगू में व्यस्त थे ।किसी की गुफ्तगु का विषय था शर्मा अंकल की जायदाद। तो कोई बहू बेटों को कोस रहा था। यही नहीं उनके खुद के बेटे किसी वकील से ,वसीयत के लिए सलाह मशवरा में लगे थे । कम से कम शर्मा अंकल के लड़को से तो ऐसी उम्मीद नहीीं थी।एक मन तो हुआ उन्हें जाकर ख़ूब खरी-खोटी सुनाऊं, पर एक अर्थपूर्ण चुप्पी अर्थहीन वाद-विवाद से कहीं बेहतर है। बस यही सोचकर रूकने की बजाय मेरे कदम वापिस मुड़ गये।तभी मुड़ते वक्त पीछे कंधे पर किसी का हाथ महसूस हुआ। चौंक कर देखा, “अरे रीना ! भई तुम तो हमें भूल ही गई। जब से यहां से गये हैं , कभी याद ही नहीं करतीं “। यह बड़ी भाभी की ही आवाज थी । वे शायद इसी मौके की तलाश में थीं ।जब मैं ने भाभी की तरफ देखा तो वह मुझे देख मुस्कुराईं। पता नहीं क्यों उन का मुस्कुराना आज अंदर तक भेद गया।
“भाभी वो…….”कुछ बोलते हुए ही नहीं बना। वैसे भी शायद बड़ी भाभी को जवाब की जरूरत ही नहीं थी। वो फिर से बोलीं , “रीना मैं एक नयी किटी शुरू कर रही हूं। करोगी क्या”?
” भाभी !इस बारे में बाद में बात करते हैं न”!, मुझे उस समय ये बात करना बहुत खराब लगा।
“अरे बाद में क्यों ? बाद में क्या तुम से मिलना होगा? अच्छा है अभी ही तय हो जाये”।
“नहीं ! अभी बताना मेरे लिए बहुत मुश्किल है ।सोच कर बताऊंगी “। मैं उनका मंतव्य भली-भांति समझ रही थी, इसलिए न चाहते हुए भी मेरे स्वर में थोड़ी कड़वाहट उभर आई थी, जिसे भांपकर उन्होंने तुरंत टॉपिक बदल दिया।तभी
“अरे बड़ी बहू! इधर सुनना”, पंडित जी ने आवाज लगाई तो भाभी ,”अभी आयी”,कह चलीं गयीं ।और….कुछ ही क्षणों में दोनों भाभियों के रोने की आवाज सुनाई देने लगी . ..”बाबू जी! आप हमें छोड़ कर क्यों चले गए . …..”! मुझे इस दिखावटी महौल में घुटन महसूस होने लगी थी।मेरा मन खिन्न हो उठा था. ‘कितनी स्वार्थी सोच है!इधर अंकल के पार्थिव शरीर को लेकर श्मशान गये उधर मैं सबसे विदा ले वापिस आने लगी। बाहर आकर देखा उस तार पर अब वह निर्जीव कबूतर भी नहीं लटक रहा था।
“कहां गया ?कौन ले गया? पता नहीं कोई तो ले ही गया होगा”,खुद से सवाल और खुद से ही जवाब । अब बंदर भी नहीं दिख रहे थे। बस पक्षी बैठे थे ….शांत । ऐसा लगा जैसे शोक कर रहे थे जाने वाले के लिये। इंसान भी कितना बदल गया। पहले लोग भावुक थे, रिश्ते निभाते थे, फिर प्रैक्टिकल हुए, रिश्तों से फ़ायदा उठाने लगे. अब प्रोफेशनल हो गए हैं, फ़ायदा उठाया जा सके, ऐसे ही रिश्ते बनाते हैं.’ और निभाते हैं।लौटते हुए मेरा मन बहुत भारी था,
“हमसे अच्छे तो ये जानवर ही हैं । कम से कम संवेदनशील तो हैं ।यहां तो हरेक मुखौटों के साथ जी रहा है।बड़े बुजुर्ग कहते थे ,”एक बार को किसी के सुख में न जाओ पर दुख में जरूर जाना चाहिए “। छी! यहाँ अपनो के दुख में अपने ही शामिल नहीं । यह रिवाज, यह दस्तूर मात्र रस्म अदायगी ही बनकर ही रह गए ।
कितनी तारीफ करते थे ,शर्मा अंकल अपने परिवार की। कभी कभी तो लगता था ,ज्यादा ही गुणगान कर रहे हैं ।पर आज जाकर सच समझ में आया ।
बेचैन मन के साथ घर वापिस आ गयी। और मानसिक द्वंद्व था कि शांत होन का नाम ही नहीं ले रहा था । ” लोगों की भावनाएं एक दूसरे के प्रति खत्म हो चुकी हैं और संवेदनायें…….. ,”
“कौन मर गया ,भाबी जी”? कामवाली बाई के एकदम से किये गये, अनपेक्षित से सवाल से मैं वर्तमान में लौट आयी और मेरे मुँह से निकला , “संवेदना ” ।
