Bhagwan Vishnu Katha: पूर्वजन्म में देवर्षि नारद ब्राह्मणों की एक दासी के पुत्र थे। उस जन्म में उनका नाम नन्द था। नन्द को बचपन से ही ब्राह्मणों की सेवा में नियुक्त कर दिया गया। वह निष्ठापूर्वक उनकी सेवा करता था। उसके सेवा-भाव और स्वभाव से प्रसन्न होकर वे उसे जूठा भोजन खाने को दे देते थे। इस प्रकार उनका जूठा भोजन खाने और निरंतर उनकी सेवा करते-करते नन्द के सभी पाप नष्ट हो गए। उसका मन पवित्र और शुद्ध हो गया। धीरे-धीरे उसका मन पूजा-उपासना की ओर प्रेरित होने लगा। वे ब्राह्मण प्रतिदिन भगवान् की लीलाओं का गान करते थे। नन्द भी लीला-गान को ध्यानपूर्वक सुनकर उसका जप करता था। इस प्रकार अनेक महीने बीत गए। कुछ समय बाद वे ब्राह्मण वहां से जाने लगे। तब नन्द ने भी उनके साथ चलने की प्रार्थना की।
वे ब्राह्मण नन्द को समझाते हुए बोले – “वत्स नन्द ! जीवन में आना-जाना तो लगा ही रहता है। जो आया है उसे एक दिन अवश्य जाना है। मनुष्य को इस मोह माया के बंधन में नहीं फंसना चाहिए। हम तुम्हें ऐसा दिव्य-ज्ञान प्रदान करेंगे, जिससे कि तुम प्रभु-भक्ति को सहज ही प्राप्त कर सकोगे।”
यह कहकर उन्होंने नन्द को वह दिव्य-ज्ञान प्रदान किया, जिसे स्वयं भगवान् श्रीकृष्ण ने गीता में अपनी प्राप्ति का मुख्य उपाय बताया है। इस ज्ञान से नन्द के मन में दिव्य-प्रकाश ढल गया। ब्राह्मणों के जाने के बाद नन्द अपनी माता के पास रहकर प्रभु का स्मरण करने लगा।
एक दिन एक सांप के डसने से नन्द की माता की मृत्यु हो गई। तब वह घर छोड़कर वन में चला गया। वहां भगवान् श्रीकृष्ण के चरण-कमलों का ध्यान करके वह कठोर तपस्या करने लगा। तपस्या के प्रभाव से उसे अपने हृदय में ही भगवान् श्रीकृष्ण के साक्षात् दर्शन प्राप्त हुए। उनके मनोहारी स्वरूप को देखकर बालक नन्द आत्मविभोर हो गया।
तभी एक दिव्य आकाशवाणी हुई – “वत्स ! तुम्हारा मन पवित्र और निष्पाप है, इसलिए तुम्हें मेरे दिव्य दर्शन प्राप्त हुए हैं। तुम्हारे मन में मुझे प्राप्त करने की जो दृढ़-इच्छा है, उसके फलस्वरूप अगले जन्म में तुम्हें मेरा प्रिय भक्त होने का गौरव प्राप्त होगा। अपनी भक्ति के कारण जगत् में तुम सदा के लिए अमर हो जाओगे।” यह सुनकर नन्द ने भगवान् की स्तुति की और प्रभु-नाम का जप करते हुए पृथ्वी पर भ्रमण करने लगा।
सृष्टि के अंत में ब्रह्माजी और सारी सृष्टि के साथ वह भी भगवान् विष्णु में विलीन हो गया। हजारों युग बीतने के बाद भगवान् विष्णु के नाभि-कमल से ब्रह्माजी उत्पन्न हुए और सृष्टि की इच्छा से उन्होंने मरीचि, दक्ष आदि मानस-पुत्रों की उत्पत्ति की। भगवान् विष्णु के वरदान से नन्द ब्रह्माजी के मानस पुत्र देवर्षि नारद के रूप में उत्पन्न हुआ।
देवर्षि नारद के मन में भगवान् विष्णु के प्रति असीम भक्ति थी, अतः वे वीणा लेकर समस्त लोकों में उनकी लीलाओं का गान करने लगे। तभी से वे भगवान् विष्णु के प्रिय भक्त के रूप में प्रसिद्ध हुए।
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