chaakshush manu
chaakshush manu manu

Bhagwan Vishnu Katha: प्राचीन समय की बात है, पृथ्वी पर एक सदाचारी राजा अनमित्र का शासन था । उनकी पत्नी भद्रा ने एक दिन बालक को जन्म दिया । उस बालक को पूर्वजन्म की बातों का स्मरण था । एक बार पुत्र की किसी बात से क्रोधित होकर भद्रा ने उसे त्याग कर वन में छोड़ दिया । वन में एक भयंकर राक्षसी रहती थी । वह राक्षसी नवजात बच्चों को चुराकर, उनको आपस में बदलकर, तीसरे घर के बच्चे को खा जाती थी । राक्षसी ने भद्रा के बालक को विक्रांत नामक एक राजा की पत्नी हैमिनी के शयनकक्ष में सुला दिया । फिर रानी के नवजात पुत्र को ले जाकर एक ब्राह्मण के घर सुला दिया और उस ब्राह्मण के बालक को खा गई । इस प्रकार राक्षसी ने बच्चे बदल दिए ।

राजा विक्रांत ने उस बालक को अपना पुत्र जानकर उसका नाम आनंद रखा । युवा होने पर विक्रांत ने विद्याध्ययन के लिए उसे गुरु को सौंप दिया । गुरु ने उसे माता के चरण स्पर्श करने को कहा । तब आनन्द बोला – “गुरुदेव ! मैं जन्म देने वाली माता को प्रणाम करूँ अथवा पालन करने वाली माता को? मैंने राजा अनमित्र की पत्नी भ्रदा के गर्भ से जन्म लिया, किंतु एक दुष्टा मुझे इनके यहाँ छोड़कर, इनके पुत्र को एक ब्राह्मण के घर छोड़ आई । फिर उसने ब्राह्मण के पुत्र को खा लिया । रानी हैमिनी का पुत्र ब्राह्मण के घर पल रहा है और यहाँ आप मेरा संस्कार करा रहे हैं । मुझे आपकी आज्ञा का पालन करना है, अतः बताइए मैं किस माता को प्रणाम करूँ?“

आनन्द की बात सुनकर सभी आश्चर्यचकित रह गए । विक्रांत उससे अपने वास्तविक पुत्र के बारे में पूछने लगा । आनंद बोला – “राजन ! आपके राज्य के निकट ही विशाल नामक एक गाँव है । आपका पुत्र चैत्र नाम से वहीं के एक ब्राह्मण के पास पल रहा है ।”

विक्रांत ने उसी समय सैनिकों को भेजकर चैत्र को बुलवा लिया और जिस ब्राह्मण ने उसके पुत्र का पालन किया था, उसका उचित सम्मान किया । राजा विक्रांत को अपना पुत्र मिल गया था, यह जानकर आनन्द वन में चला गया और कठोर तप करने लगा । एक दिन ब्रह्माजी ने प्रकट होकर उससे अभिलषित वरदान माँगने को कहा । आनन्द ने मुक्ति प्रदान करने की प्रार्थना की ।

तब ब्रह्माजी बोले – “वत्स ! जिसके कर्म पूरे हो जाते हैं, वही प्राणी मुक्ति का अधिकारी होता है । तुम्हारे पास कर्मों का संचय है, फिर तुम मुक्ति कैसे पा सकते हो? पूर्व जन्म में तुम मेरे चक्षु से उत्पन्न हुए थे इसलिए तुम मेरे अंशस्वरूप हो । मैं तुम्हें मनु बनने का वरदान देता हूँ । संसार में तुम चाक्षुष के नाम से विख्यात होगे ।”

यह कहकर ब्रह्माजी अन्तर्धान हो गए । बाद में आनन्द ने अपने बल-पौरुष से सम्पूर्ण पृथ्वी पर अधिकार कर लिया और छठे मन्वंतर का स्वामी बनकर चाक्षुष मनु के नाम से प्रसिद्ध हुआ । इस मन्वंतर में मनोजव नामक इन्द्र थे । सुधामा, विवस्वान, अतिनामा, विरजा, भृगु, सहिष्णु और नभ – ये इस मन्वंतर के सप्तर्षि थे । इस मन्वंतर में भगवान् विष्णु ने वैराज की पत्नी सम्मति के गर्भ से अजित नाम से अवतार धारण किया । उन्होंने ही समुद्र मंथन के समय देवताओं के लिए अमृत निकाला था तथा वे ही कच्छप रूप धारण कर मथानी का आधार बने थे ।

ये कथा ‘पुराणों की कथाएं’ किताब से ली गई है, इसकी और कथाएं पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं Purano Ki Kathayen(पुराणों की कथाएं)