Bhagwan Vishnu Katha: किसी समय पृथ्वी पर उत्तानपांद नामक राजा राज्य करते थे । उनका उत्तम नामक एक सुंदर, वीर और पराक्रमी पुत्र था । वह धर्म का ज्ञाता था । युवा होने पर उत्तानपाद ने उसका विवाह राजकुमारी बहुला के साथ कर दिया । उत्तम सदा बहुला की इच्छानुसार कार्य करता था, किंतु फिर भी वह उत्तम के विचारों से अनुकूल नहीं होती थी । अतः उत्तम ने रुष्ट होकर उसे त्याग दिया ।
एक दिन एक ब्राह्मण का अपनी कुरूप और कर्कश पत्नी के प्रति अगाध प्रेम देखकर उत्तम को बहुला के त्यागने का बड़ा दुःख हुआ । तब उसने अपने कुलगुरु से योगविद्या द्वारा बहुला का पता लगाने की प्रार्थना की ।
कुलगुरु बोले – “वत्स ! एक दिन कपोत नामक एक नाग-वन में भटकती तुम्हारी पत्नी पर मोहित हो गया और उसे अपने लोक में ले गया । उसकी मनोरमा नामक पत्नी और नन्दा नाम की एक पुत्री है । बहुला को देखकर नन्दा ने उसे अपनी माता की शत्रु समझा और उसे अपने महल में छिपा दिया । कपोत ने जब नन्दा से बहुला को माँगा तो उसने कोई उत्तर नहीं दिया । तब उसने कुपित होकर नन्दा को गूंगी होने का शाप दे दिया । इस प्रकार तुम्हारी पत्नी बहुला अभी जीवित है और नन्दा के साथ रहती है । उसका चरित्र आज भी निर्मल है । वत्स ! तुम्हारे और बहुला के ग्रह-नक्षत्र एक समान न होने के कारण तुम्हारे बीच सदा प्रतिकूलता रही । इस प्रतिकूलता को समाप्त करने के लिए तुम मित्रविन्दा नामक यज्ञ करो । जिन स्त्री-पुरुष में परस्पर प्रेम न हो, यह यज्ञ उनमें प्रेम उत्पन्न करता है ।”
उत्तम की आज्ञा से ब्राह्मणों ने मित्रविन्दा यज्ञ आरम्भ कर दिया । बहुला के मन में उत्तम के प्रति प्रेम उत्पन्न करने के लिए एक-एक करके सात यज्ञ किए गए । तत्पश्चात् उन्होंने बहुला को लाने के लिए कहा । उत्तम ने बलाक नामक दैत्य सेवक को पाताल-लोक जाकर बहुला को लाने की आज्ञा दी । दैत्य बलाक कुछ ही समय में बहुला को ले आया । एक-दूसरे को देखकर बहुला और उत्तम बड़े प्रसन्न हुए । तब बहुला बोली – “स्वामी ! मेरे कारण कपोत ने अपनी पुत्री नन्दा को दूंगी होने का शाप दे दिया है । आप यदि उसके संकट का निवारण कर सकें तो मुझे बहुत खुशी होगी ।”
उत्तम के कहने पर ब्राह्मणों ने सरस्वती माता को प्रसन्न करने के लिए यज्ञ किया । यज्ञ पूर्ण होते ही नाग-कन्या नन्दा पुन: बोलने लगी ।’ सखी बहुला और उत्तम की कृपा से मैं पुन: बोलने लगी हूँ ।’ यह जानकर नन्दा उनके समक्ष प्रकट हुई और उन्हें वर देते हुए बोली – “राजन! आपकी कृपा से मेरा मन बड़ा प्रसन्न है । इसलिए मैं आपको वरदान देती हूँ कि शीघ्र ही आपके घर एक पराक्रमी पुत्र जन्म लेगा । वह बालक तीसरे मन्वंतर का स्वामी होगा ।”
नन्दा के वरदान से उत्तम के घर एक सुंदर बालक ने जन्म लिया । विद्वानों ने उसका नाम औत्तम रखा । औत्तम मनु-पद पर आसीन होकर तीसरे मन्वंतर का स्वामी बना । तीसरे मन्वंतर में सुशांति नामक इन्द्र और महर्षि वसिष्ठ के सात पुत्र सप्तर्षि हुए । इस मन्वंतर में श्रीहरि ने धर्म की पत्नी सूनृता के गर्भ से सत्यसेन नाम से अवतार लेकर पापी राक्षसों का संहार किया ।
ये कथा ‘पुराणों की कथाएं’ किताब से ली गई है, इसकी और कथाएं पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं – Purano Ki Kathayen(पुराणों की कथाएं)
