‘सच?’ आश्चर्य से बच्ची बोल पड़ी।’ ‘तब तो मासी, तुम ज़रूर ड्राइंग में फर्स्ट आती होओगी। मैं भी अपनी क्लास में फ़र्स्ट आती हूँ-तुम हमारे घर आओगी तो अपनी कॉपी दिखाऊँगी।’ बच्ची के स्वर में मुकाबले की भावना थी। चित्रा और करुणा इस बात पर हँस पड़ी।‘आप हमें सब तस्वीरें दिखाइए मासी, समझा-समझाकर।’ बच्चे ने फ़रमाइश की। चित्रा समझाती तो क्या, यों ही तस्वीरें दिखाने लगी। घूमते-घूमते वे उसी भिखारिन वाली तस्वीर के सामने आ पहुँचे। चित्रा ने कहा, ‘यही वह तस्वीर है रूनी, जिसने मुझे इतनी प्रसिद्धि दी।’
‘ये बच्चे रो क्यों रहे हैं मासी?’ तस्वीर को ध्यान से देखकर बालिका ने कहा।
‘इनकी माँ मर गई, देखती नहीं मरी पड़ी है। इतना भी नहीं समझती!’ बालक ने मौका पाते ही अपने बड़प्पन की छाप लगाई।ये सचमुच के बच्चे थे मासी?’ बालिका का स्वर करुण से करुणतर होता जा रहा था।
‘अरे, सचमुच के बच्चों को देखकर ही तो बनाई थी यह तस्वीर।’‘हाय राम! इनकी माँ मर गई तो फिर इन बच्चों का क्या हुआ?’ बालक ने पूछा।‘मासी, हमें ऐसी तस्वीर नहीं, अच्छी-अच्छी तस्वीरें दिखाओ, राजा-रानी की, परियों की-‘उस तस्वीर को और अधिक देर तक देखना बच्ची के लिए असह्य हो उठा था। तभी अरुणा के पति आ पहुँचे। परिचय हुआ। साधारण बातचीत के पश्चात् अरुणा ने दोनों बच्चों को उसके हवाले करते हुए कहा, ‘आप ज़रा बच्चों को प्रदर्शनी दिखाइए, मैं चित्रा को लेकर घर चलती हूँ।’
बच्चे इच्छा न रहते हुए भी पिता के साथ विदा हुए। चित्रा को दोनों बच्चे बड़े ही प्यारे लगे। वह उन्हें एकटक देखती रही। जैसे ही वे आँखों से ओझल हुए, उसने पूछा, ‘सच-सच बता, रूनी! ये प्यारे-प्यारे बच्चे किसके हैं?’‘कहा तो, मेरे।’ अरुणा ने हँसते हुए कहा।‘अरे, बताओ ना! मुझे ही बेवकूफ बनाने चली है।’
एक क्षण रुककर अरुणा ने कहा, ‘बता दूँ?’ और फिर उस भिखारिनवाले चित्र के दोनों बच्चों पर अंगुली रखकर बोली, ‘ये ही वे दोनों हैं।’‘क्याऽऽऽ!’ विस्मय से चित्रा की आँखें फैली-की-फैली रह गईं।
‘क्या सोच रही है, चित्रा?’‘कुछ नहीं-मैं…मैं सोच रही थी कि…’ पर शब्द शायद उसके विचारों में ही खो गए।
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