Khote Sikke by Mannu Bhandari
Khote Sikke by Mannu Bhandari

Hindi Story: ‘जी, इन्हें कहाँ रक्खूँ?’एक सहमी-सी आवाज़ पर सब घूम पड़े। देखा, एक छोटा लड़का थैली हाथ में लिए भयभीत-सा खड़ा है।‘क्या है इसमें?’ कड़ककर मि. खन्ना ने पूछा। आवाज़ में ऊँचे पद का गर्व बोल रहा था।
‘जी, खोटे सिक्के हैं। वहाँ मेरा बाबा खोटे सिक्के चुन रहा है, उसी ने भेजे हैं।’ डर के मारे लड़के के गले से पूरी तरह आवाज़ भी नहीं निकल रही थी।‘तो, इन्हें यहाँ क्यों लाया है, जा, उधर ले जा।’ झिड़ककर खन्ना साहब ने लड़के को भगा दिया है। हर बात को जानने के लिए बेहद उत्सुक छात्राओं के दल में एक ने पूछा-‘टकसाल में खोटे सिक्के कैसे आए?’ स्वर काफी मीठा था। निरंतर बड़ी-बड़ी मशीनों की कर्कश आवाज़ सुनने के आदी खन्ना साहब को लगा जैसे किसी ने मिसरी घोलकर कानों में उँडेल दी हो। क्रोध और रौब को एक ओर हटाकर, होंठों पर मधुर मुस्कान और आवाज़ में स्निग्धता लाकर बोले-‘देखिए, बहुत सावधानी के बावजूद कभी-कभी बहुत सारे सिक्के बिगड़ ही जाते हैं। जहाँ सिक्के ढलते हैं, अगर उस मशीन में ज़रा-सी भी खराबी हो जाती है, तो सारे सिक्कों की शेप बिगड़ जाती है और फिर उनकी गिनती खोटे सिक्कों में होने लगती है।’‘टकसालवाले करते क्या हैं इन खोटे सिक्कों का?’ एक ओर से प्रश्न आया।

‘चला देते होंगे, और क्या देखती नहीं, बाज़ार में कितने खोटे सिक्के चलते हैं।’ बड़े ही शोख़ ढंग से दूसरी ओर से शंका का समाधान हुआ।‘जी नहीं, खोटे सिक्कों को हम चला नहीं देते, वापस टकसाल में ही खपाते हैं। जो चीज़ हमारी टकसाल में खोटी होती है, उसकी जिम्मेदारी तो हमारी है। उसे बाहर क्यों भेजेंगे भला?’ खन्ना साहब ने इस ढंग से कहा, मानो बता रहे हों, देखो हमारी नैतिकता को। हमें क्या इतना गया-गुज़रा समझा है कि अपनी गलती को दूसरों के सिर मढ़ दें?