लाक्षागृह से बचकर पांडव और कुंती एकचक्रा नामक नगरी में पहुंचे और वहां एक ब्राह्मण के घर रहने लगे। कोई उन्हें पहचान न ले, इसलिए उन्होंने ब्राह्मणों का वेष धारण कर रखा था। वे प्रातः भिक्षा मांगने निकलते और संध्या के समय घर लौट आते। इस प्रकार अनेक दिन व्यतीत हो गए। एक दिन कुंती […]
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बलराम का विवाह – महाभारत
वैवस्वत मनु के पुत्र महाराजा शर्याति के वंश में रैवत नामक एक प्रसिद्ध राजा हुए। वे बडे वीर, धर्मात्मा, दानी, दयालु, पराक्रमी और प्रजाप्रिय राजा थे। उनका एक नाम ककुद्मी भी था। पिता के ज्येष्ठ पुत्र होने के कारण उन्हें कुशस्थली (द्वारिका) का राज्य मिला। वे धर्मपूर्वक राज्य-संचालन करने लगे। उनके राज्य में सदा सुख-समृद्धि […]
रुक्मिणी का हरण – महाभारत
भीष्मक नामक एक प्रतापी राजा विदर्भ देश के अधिपति थे। उनके रुक्मी, रुक्मरथ, रुक्मबाहु, रुक्मकेश, रुक्ममाली नामक पांच वीर पुत्र और रुक्मिणी नामक एक अत्यंत सुंदर कन्या थी। एक बार रुक्मिणी अपनी सखियों के साथ राज-उद्यान में विचरण कर रही थीं। तब उनकी एक सखी भगवान श्रीकृष्ण के रूप-सौंदर्य और पराक्रम का वर्णन करते हुए […]
राक्षसी हिडिम्बा – महाभारत
गंगा पार करके कुंती और पांडव एक घने वन में पहुंचे। चलते-चलते थक जाने के कारण वे वहीं एक वृक्ष के नीचे विश्राम करने लगे। लेटते ही उन्हें गहरी नींद ने आ घेरा, परंतु भीम चौकन्ने होकर पहरा दे रहे थे। वहीं निकट ही हिडिम्ब नामक एक भयंकर और विशालकाय राक्षस रहता था। उसकी एक […]
कंस-वध – महाभारत
जब भगवान श्रीकृष्ण और बलराम ने रंगभूमि में प्रवेश किया, उस समय कुवलयपीड़ के विशाल दांत शस्त्र-रूप में उनके हाथों में सुशोभित थे। उनके शरीर पर पसीने की बूंदें रत्नों की भांति प्रकाशित हो रही थी। उनका मुखमण्डल सूर्य के समान आभायुक्त था। कुछ ग्वाल-बाल उनके पीछे चल रहे थे। उन्हें इस प्रकार रंगभूमि में […]
कर्ण को शाप – महाभारत
कुंती-पुत्र कर्ण ने द्रोणाचार्य से शिक्षा-दीक्षा प्राप्त की थी। बाद में वे अस्त्र-विद्या सीखने के लिए भगवान परशुराम की शरण में चले गए। परशुराम केवल ब्राह्मण कुमारों को ही विद्या प्रदान करते थे। इसलिए कर्ण ने ब्राह्मण वेष बनाया और छलपूर्वक उनसे शस्त्र-विद्या प्राप्त करने लगे। परशुरामजी ने उन्हें ब्राह्मण कुमार ही समझा और उन्हें […]
दक्षिणा में अंगूठा – महाभारत
एक बार कृपाचार्य से भेंट करने के लिए द्रोणाचार्य अपनी पत्नी और पुत्र के साथ हस्तिनापुर पधारे। वे अनेक दिनों तक उनके पास रहे। किसी बाहरी व्यक्ति को उनके आगमन की खबर नहीं थी। एक दिन कौरव और पांडव गेंद से खेल रहे थे। खेलते-खेलते गेंद उछलकर निकट के एक कुएं में जा गिरी। राजकुमारों […]
कुबेर-पुत्रों को शाप – महाभारत
धनपति कुबेर के नलकूबर और मणिग्रीव नामक दो पुत्र थे। उनकी गिनती भगवान शिव के अनुचरों में होती थी। अतः देवगण भी उन दोनों का आदर-सम्मान करते हुए उनके छोटे-मोटे अपराधों को क्षमा कर देते थे। इससे धीरे-धीरे उनके मन में अहंकार उत्पन्न हो गया। वे अपने समक्ष देवगण को शक्तिहीन, तुच्छ और असहाय समझने […]
कौरवों का जन्म – महाभारत
एक बार महर्षि व्यास हस्तिनापुर पधारे तो गांधारी ने श्रद्धापूर्वक उनकी सेवा की। गांधारी के सेवाभाव को देखकर महर्षि व्यास अत्यंत प्रसन्न हुए और लौटते समय उन्होंने वर दिया‒ “गांधारी! शीघ्र ही तुम्हें सौ पुत्रों की प्राप्ति होगी। वे धृतराष्ट्र के समान परम बलशाली, पराक्रमी और वीर होंगे। इसके अतिरिक्त तुम्हें एक पुत्री भी प्राप्त […]
पांडवों का जन्म – महाभारत
विवाह के उपरांत राजा पांडु विशाल सेना लेकर विजय-अभियान पर निकले। उन्होंने आस-पास के सभी प्रदेशों को जीत लिया, जिससे उनका यश चारों ओर फैल गया। तत्पश्चात् अधीनस्थ शासकों से अपार धन एकत्रित कर वे हस्तिनापुर लौट आए। एक बार राजा पांडु के मन में वन-विहार की इच्छा जागृत हुई। तब वे हस्तिनापुर का राजकाज […]
