कुल्हड़ उठा कर पूरा मुंह पर उलट लेता, एक या दो बूंद चाय उसके मुंह में टपक जाती और वो खुश हो जाता। तभी वहां चाय पी रहे एक सज्जन की ट्रेन आ गयी, वो आधी चाय छोड़कर चले गए। वो बच्चा खुशी से उस बची चाय पर झपट पड़ा और चाय पीने लगा। तभी चाय वाले की नजर उस पर गयी और वह बोला,’भाग यहां से…बड़ा आया इन बड़े लोगों के बीच बैठने वाला, कितनी बार कहा कि इस स्टूल पर मत बैठा करो’ तभी सफाई कर रही उसकी मां ने कहा, ‘हे हमार लरका को डांटत हो, जब हम इहां सफाई करत हैं, तब तुम्हार का काउनो छूत न लागत है।’

मेरे पापा वहीं आदिवासी स्कूल में टीचर थे। जब मैं वहां गई तो देखा कि वहीं लड़का स्कूल के पीछे वाले दरवाजे पर बैठा था और उसकी मां स्कूल की सफाई कर रही थी। देखा कि वो लड़का तेज़ी से उठा और मैदान में पड़ी एक किताब उठा ली और अपनी मां से बोला, ‘ये किताब तुम अपने पल्लू में छुपा लो, इसमें बहुत अच्छी बातें लिखी है, मैं तुमको घर जाकर सुनाऊंगा।’

मां ने वो किताब चुपचाप रख ली। मैं ये सब देख रही थी और सोच रही थी कि ये दोनों यहां से इसी तरह कितना कीमती सामान चुरा लेते होंगे। मां ने सफाई ख़त्म करने के बाद बेटे को अपनी गोद में बैठाते हुए उससे कहा, ‘चोरी करना, झूठ बोलना गलत बात है, तुम रोज सुनते हो कि मास्टर जी यही कहते है।’ इस पर लड़का बोला, ‘माँ … गलती हो गयी’

  मां ने पल्लू से किताब निकालकर वापस रख दी और लड़का टीले के पीछे चला गया। उत्सुकता वश मैं भी उसके पीछे-पीछे गयी और देखा कि वो कोयले से दीवार पर लिखता और फिर मिटाता ……उस कोने में खड़ी मां को देखकर  मुझे अपनी सोच पर शर्म आने लगी।उस सफाई करने वाली मां ने कैसे प्यार से बेटे के मन और दिमाग को साफ़ कर उसे जिन्दगी का सबसे महत्वपूर्ण सबक सिखा दिया।

अंततः आज मैं समझ गई कि मां के प्यार से मिली सीख का ऊंचे समाज और बड़ी डिग्रियों से कोई ताल्लुक नही है। 

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