रिश्तों का रफू होना निहायत जरूरी है-गृहलक्ष्मी की कविता: Life Poem
Rishton ka rafu hona nihayat jaruri hai

Life Poem: वक्त का आंधी किस कदर चल रहा है,
दूरियां बढ़ाने पर कितना पुरजोर हो रहा है..
टूटते बिखरते रिश्तों का बिखरा ये चादर,
कितनी नफरतों के छिद्र से बिखरा ये रिश्तों का चादर,
कभी किसी के कील भरी बातों से उधड़ गया,
कभी बेमतलब की बातों से ही छिद्र हो गया..
दूर करने के बजाए अच्छा है,
क्यूं न उसपर प्रेम के धागे से रफू किया जाए,
अपनी सोच को थोड़ा बदला जाए..
चार दिन की जिंदगानी है,
रिश्तों का रफू होना निहायत जरूरी है..
रफू ऐसा करें कि प्रेम के धागे से,
नफरत सारी छिप जाए,
रिश्ता बिल्कुल समतल सा हो जाए..
पहल हमने कर ली है,
पहल उसकी ओर से भी तो हो जाए..
जहां हरेक की मन की धरा पर हरियाली सी छा जाए..
अंतर्मन के कण कण पर प्रेम फुहार की तरह बरसे ऐसे,
थोड़ा मान मनुहार कर रिश्तों को सजा लें,

ज्योत आनंद की हर एक के मन में प्रज्जवलित कर लें…
श्वेत रंग सात रंगों से मिलकर बना हो जैसे..
सब रंगों को समाया है खुद में,
वैसे ही सब लोग सबको अपना लें.
क्यूं हम वक्त के बेरंग दौर में खुद को ढालें,
आत्ममंथन क्यूं न इस विषय पर करें..
हर समय हर लोग सही नहीं हो सकते,
हम भी गलत थे,ये सोच क्यूं नहीं सकते.
छोड़ दें हम भी अपना अभिमान, जिह्वा पर लगाएं थोड़ा लगाम,
ऐसा कुछ अगला भी कर जाए
बदलते रिश्तों पर लग जाएगा पूर्ण विराम !!!!

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