न घर की न घाट की-गृहलक्ष्मी की कहानियां: Hindi Kahani
Na Ghar ki Na Ghat Ki

Hindi Kahani: ये कहानी है नंदा की, नंदा जो देखने में सर्व साधारण थी। पर ऐसा तो नहीं कि वैवाहिक जीवन के लिए अद्वितीय सुंदरी होना जरूरी है। आम इंसान भी तो खुशी से जीते हैं। रूप सबकुछ तो नहीं होता और उसके अंदर तो गुण ही गुण थे। सबसे बड़ा गुण की वह किसी का प्रतिकार नहीं करती बस चुपचाप अपने काम करती रहती और इस बात का उसे वो खामियाजा भुगतना पड़ा जो भगवान सात घर के दुश्मन को भी ना दे। दो साल पहले की बात है जब मृत्यु शय्या पर लेटी कृषकाय सास हाथ जोड़े क्षमा मांग रही थी।
“मुझे माफ कर दो बेटी! मैंने तुम्हारे साथ बहुत ज्यादती की!” यह सुनते ही जैसे उसे काठ मार गया था। सारी उम्र कड़वी जुबान और तेज निगाहों से शासित करती आई उसकी सास का आखिरी घड़ी में ये बदला हुआ रूप कुछ समझ में नही आया तो उनके जोड़े हुए हाथ को अपनी हथेलियों में थाम कर कहा ,
“ये आप क्या कह रही हैं मां जी! बड़ी होकर छोटे से माफ़ी मांगेगी? पाप न चढ़ाइए …इस वक्त बस भगवान का नाम लीजिए!”
“भगवान का नाम लूं..क्या वो मेरे किए को माफ कर देंगे? ना बेटी ना…जब तक तुम मुझे दोषमुक्त नहीं करोगी मुझे मुक्ति नहीं मिलेगी।”

“आप ये सब क्या कह रही हैं..मुझे तो कुछ भी समझ में नही आ रहा…”
“दरवाजा बंद कर मेरे नजदीक आओ नंदा..सब बताती हूं…”
नंदा जो आजतक उनके सामने कम ही खड़ी होती थी उनके पलंग के दूसरे सिरे पर सिमटकर बैठ गई।
उन्होंने कहना शुरू किया,
“तीस की उम्र में विधवा हो गई थी। तीनों लड़कों को प्राइवेट से ही पढ़ाया। बड़े दोनो नालायक ही निकले। एक तेजस ही मेरी बात सुनता था। उसने छोटी सी उम्र में ही पिता का कारोबार संभाल लिया और अपनी सारी उर्ज़ा परिवार की जरूरतों को पूरा करने में लगाया।”
“वो आपके आज्ञाकारी पुत्र हैं! इसमें भला कोई और क्या बोलेगा।”
“बस बेटी! तुम्हारे इन्हीं संस्कारों के कारण ही ब्याहकर घर लाई और तुम्हें रसोड़े में झोंक दिया। बाकी लोगों का तो तुम्हें पता ही है। दोस्तों में अय्याशी करने के अलावा उन्हें कुछ आता ही नहीं! तिस पर पत्नियां भी किट्टी पार्टी वाली बस पैसे बर्बाद करते हैं।”
“जो हुआ उसे भूल जाइए। राम का नाम लीजिए।”
“मुझे कह लेने दो! मैंने तेजस को तुमसे अलग रखने का जो पाप किया है उसके लिए भगवान भी क्षमा नहीं करेंगे।”
“कैसा पाप…?” उसकी आंखें फैल गईं तो सास ने बताया।
” मैंने तेजस को तुम्हारे नजदीक नहीं आने दिया। इसके लिए हमेशा अपने साथ ही बिठा लेती जब तक उसकी आंखें नींद से बोझिल न हो जाए।”
“और मुझे लगा कि मैं उन्हें पसंद नहीं हूं…बचपन से सांवली रंगत के कारण मुझमें आत्मविश्वास की कमी थी।”
“तुम्हारा सांवला रंग देखकर तुम्हें घर लाई। मुझे तो घर संभालने वाली बहू चाहिए थी न कि फैशन करने वाली….हां मैंने अपने स्वार्थ में तुम दोनो को काम में झोंका…मुझे डर था कि तुम दोनो और बेटे बहुओं की तरह गैर जिम्मेदार न हो जाओ।”
“मगर मां जी…क्या ये सब करना जरूरी था….?” पहली बार उसने जुबान खोला। उनकी ऐसी व्यवहारिक बातें सुनकर उसे चक्कर आने लगा था। पलंग पर न बैठी होती तो गश खाकर गिर गई होती।

कैसी महिला हैं ये जो एक स्त्री होकर स्त्री का दर्द न समझ सकीं। एक पत्नी को पत्नी न बनने दिया …मन कर रहा था कि वो चीख चीख कर रोए मगर दीवारों के भी कान होते हैं यही सोच कर मन मसोस कर रह गई। उसकी आंखों के सामने शादी के बीस साल पल में गुजर गए।

याद आया उसे जब उसके घरवालों ने शादी तय की थी तो आस पड़ोस वाली आंटी बस यही समझाती कि तुम्हारी सूरत नहीं सीरत देखेंगे। हो सके तो काम से सबका दिल जीतना। उसने भी इस बात को गांठ बांधकर रख लिया। उसका ससुराल व्यापारियों का परिवार था। आलीशान भव्य कोठी,ढेरों नौकर-चाकर,विधवा रोबीली सास और हर वक्त पैसों के जोड़-तंगड में जुटा पति!

हर लड़की की तरह उसके दिल में भी शादी के लिए हज़ारों अरमान थे। उन्हें नैनों में समाये, पति के साथ गठबंधन कर घर में कदम रखा। विवाह के रात ही पति ने यही कहा कि यह घर माँ का है, और उनके खिलाफ एक शब्द नहीं सुनूंगा ! इसके पास कहने सुनने के लिए कुछ रहा ही नहीं। विवाह में सम्मिलित मेहमानों के विदा लेते ही पता लग गया कि उन्हें पत्नी नहीं सेविका चाहिए थी वो भी माँ की। उसके सोने का कमरा अलग था। सासु अक्सर यही कहतीं कि तू खाकर सो जा! तेजस को मेरे पास ही नींद आती है। वो क्या कहती और किससे कहती? जब पति को उसकी जरूरत होती उसके पास आते फिर वापस अपनी माँ के पास चले जाते मगर उसकी भी जरूरतें हो सकती हैं इस बात को सोचने- समझने की कोई जरूरत समझी नहीं गई।

खैर !इन्हीं आने -जाने के क्रम में दो बच्चों की माँ बनी। कहते हैं गर्भवती महिला जिसका चेहरा ज्यादा देखती है बच्चे की शक्ल वैसी ही हो जाती है। उसके दोनों बच्चे उस जैसे हैं। अंधेरों में ही पति को देखा। उनकी दुनिया तो माँ से रौशन थी। हां! उसे किसी तरह की कोई कमी नहीं थी। रुपए -पैसे की आजादी थी। बस वही नहीं था जिसके अरमान पलकों में सजाये इस घर की चौखट में प्रवेश किया था। बाजुओं का सहारा,सांसों की गर्मी, एक -दूसरे में खो जाने की तड़प, स्वेच्छा से पति पर न्योछावर होने का अहसास,कौमार्य के सारे सपने कुंवारे ही रह गए। ऐसा नहीं था कि उसकी कोई चाहत नहीं थी। अक्सर सोचा करती कि उसकी सहेलियों को पति में प्रेमी, मित्र सबकुछ मिला पर उसे तो पति भी नहीं मिला।

वर्षों दो मीठे बोल के लिए तरसी…काश! तेजस ने कभी हीं हाथों में हाथ डालकर कुछ प्यार भरी बातें की होतीं। कुछ व्यक्तिगत पल होते जिनकी यादों से उसकी सुबहें व शामें हसीन हो उठतीं। पर नहीं उसके पास उसके लिए वक़्त ही नहीं था। उसने बच्चों में ही अपना मन लगा लिया। जब सब हायर स्टडी के लिए हॉस्टल चले गए तब उसे होश आया कि उसने क्या खोया और क्या पाया…!

इसी बीच जब सास ने बिस्तर पकड़ लिया तो उनकी सेवा ही उसका धर्म बना और उनके गुजर जाने के बाद जब नंदा ने नया ऑफिस दिखाने की जिद्द की जो शहर से कुछ दूर था। पहले तो तेजस उसे साथ ले जाने तैयार ही नहीं था मगर जब किसी स्टाफ के साथ वहां पहुंची तो ऐसा लगा जैसे तेजस ने घर से दूर एक घर बसा लिया था। क्या उसने मुंह खोलने में देर कर दी? क्या उसका सुहाग सलामत था?

वहां एक गोल मटोल सी लगभग पैंतालीस वर्षीय महिला को देख कर उसे कुछ अटपटा सा लगा। तेजस ने उससे आंगनबाड़ी में काम करने वाली बताकर मिलवाया जो उसकी दुकान में अपने साथ की महिलाओं का सामान बेचने आती है और उसके लिए खाना भी बनाती है। हावभाव से काम करने वाली नहीं बल्कि इस घर आंगन की मालकिन लग रही थी। एक महिला की ज्ञानेंद्रियों को झुठलाना तो वैसे भी संभव नहीं।

नंदा ने पूछताछ शुरू की तो बातों ही बातों में सारे राज खुलते चले गए। पति – पत्नी के बीच की खाई जो श्यामा की बदौलत गहरी हुई थी उसे यही महिला पाट रही थी। मतलब साफ था। स्त्री अपने को मशरूफ कर जीवन काट सकती है पर पुरुष नहीं!

नंदा एक झटके से उस घर व तेजस के जीवन से बाहर निकल आई। तेजस को कोई फ़र्क नहीं पड़ा। वह जब भी घर आया एक अजनबी की तरह मिला। नंदा ने कभी कोई पूछताछ नहीं की। उसने अपने-आपको ध्यान और पूजा में मशरूफ कर लिया।

बच्चे जब भी हॉस्टल से घर आते हैं,उन दिनों तेजस भी आ जाता है और वह खुशहाल दंपति होने का ढोंग करती है। उनके पसंद का खाना बनाती है। उनके साथ ही घूमती फिरती है। खाली वक्त में जब भी पीछे मुड़कर देखती है तो सोचती है कि अगर पति का प्रेम मिलता तो क्या होता? सास को उसके दुखों की समझ होती तो क्या होता? अगर घर में सब कुछ सामान्य होता तो क्या होता। आम पति – पत्नी की तरह दुख- सुख बांटते,लड़ते – झगड़ते जीवन कटता तो आज ये मन ऊसर न होता।

हकीकत तो यह है नंदा सचमुच बहुत उदास है। दर्द से आंखें नम हैं और कहने – सुनने के लिए कुछ भी शेष नहीं। आखिर क्या मिला उसे। कहते हैं अच्छे कर्म का फल अच्छा ही मिलता है यही सोचकर मोम की गुड़िया सी सब के काम आती रही मगर उसकी अच्छाइयों के बदले क्या हुआ? वह न घर की रही न घाट की।

जो कुछ उसके साथ हुआ यदि यह सब उसने किया होता तो वह पतिता कहलाती। पुरुष प्रेम करे या न करे, घरवाली से करे या बाहर वाली से करे, हर हाल में पत्नी दोषी मानी जाती है। तब सास भी कड़क कर कहती है कि पत्नी के तन -मन पर पति का पूरा अधिकार है और उसे पति को खुश करना ही होगा फिर यही अधिकार पत्नी का पति पर क्यों नहीं? जब पत्नी को सुख चाहिए तब पति को उसे खुश करना ही होगा ! क्या कभी कोई माँ अपने बेटे को ये कह सकेगी? जिस दिन यह संभव हो जायेगा सास मां बन जाएगी !