Gastroscopy and Colonoscopy Test: आपने गैस्ट्रोस्कोपी और कोलोनोस्कोपी जैसे प्रोसीजर्स के बारे में सुना तो कई बार होगा, लेकिन क्या आप जानते हैं, ये प्रोसीजर्स क्या होते हैं? गैस्ट्रोस्कोपी और कोलोनोस्कोपी क्यों की जाती है? ये प्रोसीजर्स कब किया जाता है और किन स्थितियों में किए जाते हैं? तो चलिए आज बात करते हैं गैस्ट्रोस्कॉपी और कोलोनोस्कोपी के प्रोसीजर्स बारे में। साथ ही जानेंगे, इन्हें कैसे किया जाता है।
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गैस्ट्रोस्कोपी

गैस्ट्रोस्कोपी आमतौर पर उन बीमारियों की पहचान के लिए की जाती है जिसका कोई स्पष्ट संकेत नहीं दिखाई देता, लेकिन लक्षण बेहद गंभीर होते हैं। कई बार लक्षण भी दिखाई नहीं देते लेकिन पेट में लंबे समय तक दर्द रहता है, तो भी गैस्ट्रोस्कोपी करवाई जाती है। गैस्ट्रोस्कोपी एक स्क्रीनिंग है जिसे एक प्रोसीजर के तहत किया जाता है। चलिए जानते हैं, किन स्थितियों में गैस्ट्रोस्कोपी करवाने की सलाह दी जाती है –
- 45 वर्ष या उसे अधिक आयु होने पर
- बिना वजह वजन घटना
- खून की उल्टियां होना
- मल में खून आना
- बार-बार दस्त लगना या कब्ज होना
- ब्लीडिंग होना या फिर पेट में बिना कारण या हर समय दर्द रहना
- पेट में लंबे समय से दर्द और सूजन होना
- पेट के कैंसर, कोलन कैंसर या कोलन पॉलिप्स का अगर परिवार में किसी का इतिहास है तो इस स्थिति में गैस्ट्रोस्कॉपी की सलाह दी जा सकती है।
कैसे की जाती है गैस्ट्रोस्कॉपी
गैस्ट्रोस्कॉपी के दौरान एक पतले और लचीले पाइप के ऊपर छोटा सा कैमरा लगाया जाता है जिसे मरीज के मुंह में डाला जाता है। ये प्रोसीजर 5 मिनट से 10 मिनट की हो सकती है लेकिन कई बार 15 मिनट तक का भी समय लग जाता है। गैस्ट्रोस्कॉपी को करने से पहले डॉक्टर एक लिक्विड स्प्रे से गले को सुन्न कर देते हैं जिससे मरीज को कम से कम दर्द हो।
गैस्ट्रोस्कॉपी को करने से पहले तैयारी
- गैस्ट्रोस्कॉपी से पहले डॉक्टर उन दवाओं को लेने से मना करते हैं जो की गैस्ट्रोस्कॉपी को प्रभावित कर सकती हैं।
- गैस्ट्रोस्कॉपी के लिए पहले से ही समय और तारीख निर्धारित किए जाते हैं।
- गैस्ट्रोस्कॉपी से पहले रोगी को किसी भी तरह के तरल पदार्थ और फूड को 8 से 10 घंटे पहले ही खाना बंद कर देना होता है।
- कुछ स्थितियों में गैस्ट्रोस्कॉपी के दौरान मरीज को बेहोश भी किया जा सकता है।
गैस्ट्रोस्कॉपी की प्रक्रिया

गैस्ट्रोस्कॉपी करने से पहले रोगी को गले में दो बार एनेस्थेटिक स्प्रे दिया जाता है और उसे बाई और लेटने के लिए कहा जाता है। उसके बाद डॉक्टर मरीज के मुंह में एक पाइप को फूडपाइप में डालता है और फिर वहां से कैमरे के जरिए दूसरी मशीन पर फिल्म निकाली जाती है। डॉक्टर इस पाइप के जरिए कुछ टिशूज को भी निकालते हैं और पेट में बैक्टीरिया की भी जांच करते हैं। यदि कोई असामान्यता या गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल के लक्षण पाए जाते हैं तो डॉक्टर बायोप्सी के लिए और अधिक टिशूज के सैंपल ले सकते हैं। इस प्रोसीजर के बाद मरीज को 1 से 2 घंटे के लिए रिकवरी रूम में भी रखा जा सकता है, जब तक कि वह पूरी तरह से ठीक ना हो जाए। जिस दिन गैस्ट्रोस्कॉपी की जाती है उस दिन मरीज को गाड़ी चलाने या किसी भी तरह के काम करने से मना किया जाता है।
कोलोनोस्कोपी
कोलोनोस्कोपी, कोलोन कैंसर और कोलन पॉलिप्स के कैंसर को जांचने के लिए की जाती है। कई बार कोलन की परत पर एक्सट्रा वृद्धि हो जाती है तो यह कभी भी कैंसर का कारण बन सकती है या ये कैंसर भी हो सकती है। कोलोनोस्कोपी से पहले कुछ लक्षणों को देखकर ही इसके करने की सलाह दी जाती है। गैस्ट्रोस्कॉपी की ही तरह कोलोनोस्कोपी भी एक स्क्रीनिंग है जिसे एक प्रोसीजर के तहत किया जाता है। चलिए जानते हैं, किन स्थितियों में कोलोनोस्कोपी करवाने की सलाह दी जाती है -जैसे –
- बिना वजह लंबे समय तक पेट में दर्द
- मल से खून आना
- मलाशय या रेक्टम से ब्लीडिंग होना
- मल से म्यूकस या बलगम बहुत ज्यादा आना
- लंबे समय तक पेट में दर्द रहना
- कोलोरेक्टल कैंसर की जांच और निगरानी के लिए
कैसे की जाती है कोलोनोस्कोपी
कोलोनोस्कोपी भी एक एंडोस्कोपी का उपयोग करके की जाती है। पाइप में कैमरा लगाकर रोगी के रेक्टम में किसी भी तरह की असामान्यता को डायग्नोज करने के लिए निचले हिस्से में कैमरे को डाला जाता है। इस प्रक्रिया में पाइप को आंतों में अंदर ले जाने के लिए रेक्टम के जरिए ही पेट में बीच-बीच में हवा भी भरी जाती है, जिससे पाइप आसानी से आंतों में जा सके। इस प्रक्रिया को करने में 20 से 30 मिनट का समय लगता है।
कोलोनोस्कोपी को करने से पहले तैयारी

कोलोनोस्कोपी के लिए भी पहले से तैयारी की जाती है। डॉक्टर ऐसी दवाई लेने से मना करते हैं जो कोलोनोस्कोपी को प्रभावित कर सकती हैं। साथ ही कोलोनोस्कोपी के लिए खासतौर पर अपॉइंटमेंट लिया जाता है, यदि मरीज को कोलोनोस्कोपी और गैस्ट्रोस्कॉपी दोनों की ही जरूरत होती है तो डॉक्टर एक ही समय में यह दोनों प्रोसीजर कर सकते हैं।
कोलोनोस्कोपी से दो दिन पहले से ही रोगी को किसी भी हार्ड डाइट और फल को खाने से मना किया जाता है। साथ ही फाइबर वाले फूड को खाने की अधिक सलाह दी जाती है।
कोलोनोस्कोपी की प्रक्रिया
- कोलोनोस्कोपी करने से एक दिन पहले डॉक्टर एक सॉल्यूशन पाउडर देते हैं जिसे रात से लेकर सुबह के बीच 2 लीटर पानी के साथ पीना होता है। इससे मरीज को दस्त लगते हैं। इस प्रक्रिया के जरिए मरीज की आंतों और पेट को साफ किया जाता है। जब तक दस्त के साथ मल जैसा पानी नहीं निकलने लगता तब तक इस लिक्विड को पीने की सलाह दी जाती है।
- कोलोनोस्कोपी से पहले भी 6 से 8 घंटे तक रोगी को कोई भी तरल पदार्थ या कुछ भी खाने की मनाई होती है।
- कोलोनोस्कोपी के समय मरीज को पहले बेहोश किया जाता है और इसके लिए साथ में एक केयर टेकर की भी जरूरत होती है ताकि मरीज को कोलोनोस्कोपी के बाद वह संभाल सके।
- कोलोनोस्कोपी करने के दौरान रोगी को भ्रूण की स्थिति में दाई ओर लेटाया जाता है और घुटने को छाती के करीब बंध रखने के लिए कहा जाता है। रोगी को बेहोश करने के लिए दर्द निवारक दवा दी जाती है फिर मरीज के एनस में एंडोस्कोप डाला जाता है और रेक्टम की जांच शुरू होती है। यदि गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल के लक्षण दिखाई देते हैं तो डॉक्टर बायोप्सी के लिए कुछ टिशूज भी निकाल सकते हैं और यदि कुछ छोटे टिशूज डैमेज होते हैं तो उनको भी हटाया जा सकता है। इस प्रक्रिया के बाद मरीज को 1 से 2 घंटे के लिए रिकवरी रूम में रखा जाता है और इस दिन मरीज को गाड़ी चलाने और काम करने से मना किया जाता है।
