लाल गुलाब-गृहलक्ष्मी की कहानियां: Hindi Love Story

Hindi Love Story: एक ऑनलाइन पत्रिका जिसके लिए में काम करता था उसमें लिखने का इस माह का शीर्षक था —
प्यार का लाल रंग!

इस शीर्षक को पढ़ते ही मेरे अंदर कुछ चटक सा गया ।
मन में कई ख्याल आ गए।

ना चाहते हुए भी एक बार फिर से जान्हवी का चेहरा मेरी आंखों के आगे तैर गया।

” इस पर क्या कहानी लिखूं?”
यह ऑनलाइन राइटिंग प्लेटफार्म मेरे रिटायर्ड लाइफ व्यतीत करने का एक बेहतरीन जरिया था ।

यहां लिखकर में अपना समय बेहतरीन तरीके से गुजारता हूं ,वरना मेरा अकेलापन …!

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मेरी पत्नी रीता को गुजरे चौथा साल है। मेरे दोनों बच्चे नौकरी में ।

कुछ दिन की छुट्टियों में दोनों बारी-बारी से आते हैं और अपना समय मेरे साथ व्यतीत करने की पूरी चेष्टा करते हैं लेकिन फिर भी मेरे अंदर का अकेलापन मुझे नहीं छोड़ता।

मैं कितना अकेला सा महसूस करता हूं यह सिर्फ मैं ही जानता हूँ।

आज का शीर्षक पढ़कर मेरा मन अतीत की गलियों में भटकने लगा।

अतीत की गलियारी में ,जहां सारी यादें धुंधली सी हो जाती हैं फिर भी ‘उसका’ चेहरा आज भी मेरे जेहन में कायम है।

गहरी काली आंखें ,लंबे बाल! दुबली पतली सी काया ।
शर्मीली सी जान्हवी ,ना जाने कब उसके ऊपर मेरा दिल आ गया ।

कॉलेज की कक्षाओं में जहां हम सभी स्टूडेंट शेक्सपियर ,वर्ड्सवर्थ और तमाम साहित्यकारों की रचनाओं पर आपस में खिंचाई करते रहते थे ,वहीं

जाह्नवी क्लास में टीचर की सारी बातें ध्यान से सुना करती ,उसे नोट्स में उतारा करती थी।

उससे बहुत कम बातें होती थी लेकिन जब भी बात होती थी वह बड़ी विनम्रता से बात करती थी।

जान्हवी की सादगी, उसका भोलापन और उसकी निश्छलता ,ना जाने कब मेरा दिल उस पर आ गया, मैं समझ ही नहीं पाया ।

कभी हिम्मत ही नहीं पड़ी कि मैं उससे अपने दिल की बात कहूं।

कॉलेज की अंतिम साल में मुझे टाइफाइड हो गया था और लगभग दो महीने तक मेरा कॉलेज छूढट गया ।

उसके बाद जब मैं वापस कॉलेज गया तो टीचर ने मुझे दोस्तों से ही नोट लेने को कहा ।

पर बहानों के अलावा किसी ने मुझे और कुछ नहीं दिया ।

जाह्नवी मेरे पास चल कर आई और उसने कहा “मधुकर,ये तुम्हारे लिए नोट्स !”

“थैंक यू !”मेरे मुंह से निकला।

मैंने उससे कहा
“मैं जल्दी से लिखकर तुम्हें वापस कर दूंगा ।”

वह हंसी ।बोली
“नहीं तुम्हें वापस करने की जरूरत नहीं है ।इसी से पढ़ाई करो ।
मैंने तुम्हारे लिए अलग से बनाया है।”

” सच में ! ,मैं आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा।

” मैं दिल से तुम्हें शुक्रिया करता हूं!”

” मधुकर ,इसकी आवश्यकता नहीं है। दो महीने तुम्हें मैंने बहुत मिस किया।
तुम अपनी बीमारी से जूझ रहे थे। अब तुम्हारे बदले मैंने मेहनत कर दिया।

बस तुम पढ़ाई करो और अच्छे नंबर ले आओ।”

उसका यह करना मेरे दिल को छू गया । उसे मेरी कितनी फिक्र थी ।

अंदर ही अंदर मेरे जज्बात पनप रहे थे पर मैं उससे कुछ कह नहीं पाता था।
कितनी बार मैं कोशिश किया यह बताने को — “जानू ,मैं पहले भी तुमसे प्यार करता था अब भी!”

परीक्षा से पहले फेयरवेल पार्टी के दिन मैंने अपने हाथों में लाल गुलाब लेकर उसे अपने दिल की बात बताना चाहता था ।

मैं कुछ कहता उससे पहले ही उसने मेरे पास आकर मुझे निमंत्रण पत्र देते हुए कहा
“मेरी शादी ठीक हो गई है ।परीक्षा के बाद मेरी शादी है।”

मेरी आंखों में आंसू आ गए। मैं अंधेरे में था ।
उसने एक दोस्त की तरह से मदद की थी और मैंने गलत ही समझ लिया था ।

मेरे दिल बात दिल में ही रह गई ।

उसने मुझे अपनी शादी में बुलाया था पर उसकी शादी और मेरी बर्बादी शुरू हो चुकी थी ।

एक ही शहर में कई बार मुलाकात होती रही।

उसका हंसता-बोलता चेहरा यह बताता था कि वह अपने पति के साथ वैवाहिक जीवन में कितनी खुश है।

मैं अपनी डायरी खोल कर बार-बार उस गुलाब को देखता जो सूखकर काला हो चुका था और उसकी पंखुड़ियां झड़ने लगी थीं पर मैंने उस गुलाब को वहीं रहने दिया।

वह मेरे प्यार की निशानी पहला गवाह था ।

गुजरे यादों को याद कर मेरी आंखें बहने लगीं थीं।

” बाबूजी आप क्यों रो रहे हैं?” सुधा ने मुझे चाय का कप पकड़ाया।

उसकी आवाज से मेरी तंद्रा टूटी ।वह काम पर आ चुकी थी।

तभी बेटे का फोन आया
” पापा आपने चाय पी ली?”

“हां बेटा!, जस्ट अभी ।”मैंने कहा। थोड़ी देर बर्तनों की खटपट की आवाज आती रही।

फिर सुधा आकर बोली
“बाबूजी ,आप नहा लेते तो मैं आपके कपड़े धो कर चली जाती।”

” ठीक है !”यह कहकर मैं बाथरूम में घुस गया।

स्नान के बाद मन काफी फ्रेश हो गया।

फिर से पुरानी यादें ताजा हो गई थी ।कितने साल हो गए जान्हवी से मिले हुए!

पता नहीं क्यों मैं उस कटा कटा सा रहता हूं ।
वह यहीं एक लाइब्रेरी में लाइब्रेरियन है।

सुधा के जाने के बाद आज ना जाने क्यों मेरे पैर उस तरफ उठ गए।

लाइब्रेरी में पहुंचकर मेरे पैर तो लगभग जम ही गए।

जाह्नवी को सफेद कपड़े में देखकर मेरी हिम्मत ही टूट गई।

” यह कैसे हो गया जाह्नवी!”

उसने मुझसे ही सवाल कर दिया
” अरे मधुकर ,तुम यहां?
इतने दिनों बाद। बड़े बीमार से लग रहे हो!”

” नहीं नहीं ऐसा कुछ भी नहीं है ।सब ठीक है।”

“रीता कैसी है?और बच्चे?”

” रीता को गुजरे तो 4 साल हो गए !”

“अरे ऐसा कैसे हो गया? कब हो गया और तुमने मुझे खबर भी नहीं किया !”

“तुमने भी तो मुझे खबर नहीं किया!”मैंने कहा।

“ओह…!, अचानक ही डिटेक्ट हुआ कि उन्हें कैंसर है और वह भी लास्ट स्टेज का।
बहुत मेहनत की लेकिन नहीं बचा पाई!

दो साल बीत गए।”

मैंने उसे उलाहना देते हुए कहा
” हम एक ही शहर में रहते हैं पर पता नहीं क्यों अजनबी बन गए!”

मैंने उसे घर आने का न्योता दिया और फिर थोड़ी देर बैठ कर मैं वापस आ गया।

अब कई बार हमारी मुलाकातें होने लगीं।

वह भी अपनी जिंदगी से थक गई थी और मेरी तरह अकेली भी।

थोड़ा खुलने पर उसने कहा
“मधुकर, मैं पढ़ना चाहती थी पर पापा ने मेरी शादी करवा दी। शादी के बाद घर गृहस्थी और बच्चों में उलझती चली गई ।

अपना होश ही नहीं रहा।
अचानक विशाल की जाने के बाद इतनी बड़ी वीरानी सी आ गई कि समझ में नहीं आया कि क्या करूं ।

ससुराल वालों ने एक फूटी कौड़ी तक नहीं दी ।
यह घर है जिस पर अभी भी केस चल रहा है।

मेरे दोनों बच्चे यहां रहते नहीं ..,विदेश में रहते हैं! अब मैं वहां जाना नहीं चाहती।

अपनी आजादी नहीं छोड़ना चाहती। जिसका फल है कि इस बुढ़ापे में मुझे अकेलेपन से गुजरना पड़ रहा है ।

मैंने एक लंबी सांस ली और कहा
” यह तो मेरी कहानी है। हां, पर मेरे घर पर मेरा अधिकार है।

वहां कोई केस नहीं चल रहा।”

उसकी आंखें डबडबा गई।
” पता नहीं अगर जो मैं यह केस हार गई तो मेरा क्या होगा? कहां जाऊंगी। बच्चों के पास गुजारा नहीं होता।”

” हम्म.., मैंने लंबी सांस ली।

फरवरी का महीना था। वैलेंटाइन डे आने वाला था
मैंने रात भर सो न सका।

मैंने जान्हवी को फोन किया और कहा
” जान्हवी,क्या तुम दो घंटे की छुट्टी लेकर महादेव मंदिर आ सकती हो?”

“भला क्यों?”

” मुझे तुमसे कुछ कहना है!”

” ठीक है!”

” मैं ठीक समय पर मंदिर पहुंच गया।”

थोड़ी देर बाद वह भी पर वहां पहुंच गई ।

“अरे मधु,मुझे यहां क्यों बुलाया है? “
उसने आते ही पूछा ।

“आओ बैठो तो सही ।भगवान का दरबार है ।यहां बुलाने में क्या प्रॉब्लम है।”

वह आकर बैठ गई।

बगैर किसी लाग लपेट के मैंने उससे कहा
” देखो जान्हवी, मुझे गलत मत समझना। बरसों पहले तुम्हारे लिए मैंने एक लाल गुलाब खरीदा था , तुम्हें देना चाहता था अपने दिल के जज्बात बताने के लिए लेकिन बोल नहीं पाया
जिसका नतीजा था कि तुम किसी और की हो गई!

अब आज हम दोनों को एक दूसरे की जरूरत है। आज देखो यह ताजा गुलाब तुम्हारे लिए लेकर आया हूँ, प्लीज मना मत करना।

इसे स्वीकार कर लो।”

थोड़ी देर तक जान्हवी मेरा चेहरा देखती रही फिर उसने कहा
” काश, तुमने उस दिन कहा होता तो मैं कोई बड़े कदम उठा ली होती पर कोई बात नहीं! होनी को कौन बदल सकता है!”

उसने मेरे हाथों से लाल गुलाब ले लिया। और मैंने उसके दोनों हाथ पकड़ लिए।

” आई लव यू जान्हवी!” हम दोनों मुस्कुरा दिए। गुलाब की खुशबू वहां फैल गई थी।


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