मेरे जीवन का पहला यादगार उपहार-गृहलक्ष्मी की कहानियां
Mere Jeewan ka Pehla Uphaar

Story in Hindi: जिंदगी है तो लम्हे आते जाते हैं। उपहार का सिलसिला लगा रहता है।
बर्थडे, मैरेज डे..कभी होली कभी दीवाली
अपनों से मिला हुआ बेहतरीन तोहफा भी अपना नहीं लगता। वह खानापूर्ति जैसा लगता है।
लेकिन कुछ ऐसे तोहफे होते हैं,जो पूरी जिंदगी के लिए एक यादगार पल बन जाते हैं।
ऐस ही एक उपहार मुझे मिला था वह भी गृहलक्ष्मी पत्रिका की तरफ से ही।

यह बात तब की है जब मेरी नई-नई शादी हुई थी और मैं अपने पति के साथ उनके नौकरी पर दिल्ली आई हुई थी।
अभी कुछ दिन रहते हुए थे। उसी समय कई डरावनी घटनाएँ घटने लगीं। जैसे पति की बीमारी, उनका हॉस्पिटलाइज होना… उसके बाद मेरी सड़क दुर्घटना!
सड़क पर अंधेरे में चलते हुए मेरा पर एक गड्ढे में पड़ गया था जिसके बाद में चलने फिरने से लाचार हो गई थी। लगभग 2 महीने तक बिस्तर में पड़ी रही।
कुछ डॉक्टर की लापरवाही, एंटीबायोटिक्स का ओवरडोज और फिर मुश्किल से ठीक हो पाई।
उसके बाद मेरे अंदर इतनी डिप्रेशन और इतने अवसाद आ गया था कि उसे शब्दों में लिखना संभव नहीं।

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उन्हीं दिनों मेरी प्रिय पत्रिका गृहलक्ष्मी मैं हॉकर से मंगवानी लगी। उन दिनों उसमें ‘सरोकार’ नामक स्तंभ आता था, जिसमें एक शीर्षक गृह लक्ष्मी टीम की तरफ से दिया जाता था।
उसके बारे में लेखकों को अपनी टिप्पणियां करनी होती थी जिसमें 200 से 300 शब्द लिखने होते थे।
लिखना और पढ़ना यह मेरा शुरू से शौक रहा है।
एक तो इतनी बड़ी पत्रिका जिसके पूरे देश और दुनिया भर के पाठक और लेखक हैं दूसरा मैं उन दिनों गहरी अवसाद से जूझ रही थी फिर भी मैंने हिम्मत कर पत्रिका में अपनी रचना भेज दी।
मुझे बड़ा ही आश्चर्य हुआ कि गृहलक्ष्मी पत्रिका ने मुझे प्रथम स्थान देकर मुझे सम्मानित किया था।
यह तोहफा मेरे और मेरी जिंदगी के लिए एक प्रेरणा स्तंभ बन गया।
इतनी बड़ी पत्रिका में जब मेरा एक लेख प्रथम स्थान पा सकता है तो

मुझे लगा मैं लिख सकती हूं और यही मेरी जिंदगी का प्रेरणा स्रोत भी बन गया।
जब गृहलक्ष्मी परिवार से तोहफे के रूप में एक नॉन स्टिक पैन मेरे पते पर मुझे गिफ्ट में मिला तो मैं बता नहीं सकती कि मैं कितनी खुश थी..!
अगर उस समय स्मार्टफोन होता तो मैं सच में अपनी सेल्फी आप सबके साथ शेयर करती लेकिन उस समय बटन फोन चलते थे।
यह मेरी जिंदगी का एक टर्निंग पॉइंट भी था। गृहलक्ष्मी पत्रिका के साथ कई और जगह भी लिखना शुरू किया।
ऐसे ही कई प्रतियोगिताओं और विभिन्न स्तंभों में लिखने के साथ मेरे अंदर हिम्मत आई और फिर मैं ने पत्रकारिता का भी डिप्लोमा कोर्स किया और लेखन क्षेत्र में आप को आजमाना शुरू किया।
और आज बस सिर्फ यही मेरा शौक, मेरी जिंदगी बन गया है।
मैं लेखन की बारीकियों को सीखना, समझना और लिखना चाहती हूं और उनके गहराइयों में डूब जाना चाहती हूं।