'लाल गुलाब'-गृहलक्ष्मी की कहानियां
Laal Gulaab

Hindi Kahani: बरसों बरस बीत गए,बचपन कब का पीछे छूट गया।
स्कूल ही क्या वो शहर वो राज्य भी अब तो छूटे वर्षो गुज़र गए।
मेरे पिताजी सरकारी नौकरी में अधिकारी थे,अक्सर ही तबादले होते रहते थे और शहर के साथ ही हमारा स्कूल भी बदल जाता था।एक तो मैं बचपन से ही अत्यंत मृदुभाषी था थी,उस पर हमेशा स्कूल बदलते रहना…बस इसी वजह से कभी भी मैंने अपनी कक्षा के सहपाठियों से घनिष्ठता बढ़ाने की सोची तक नहीं।
स्कूल की शॉर्ट रिसेस में जब सब मिलजुल कर टिफिन खाते थे तो मैं चुपचाप एक कोने में बैठकर फ़टाफ़ट टिफिन समाप्त कर उठ कर क्लॉस में आ कर बैठ जाती थी!!
जब मैं नवमीं कक्षा में पहुँची,तब पिताजी का ट्रांसफर रायपुर में हो गया। रायपुर पहुँच के वहाँ जब मेरा एडमिशन हुआ तब अगस्त माह खत्म होने वाला था।
मैं जिस दिन पहली बार अपने स्कूल पहुँची…तो देख कर अच्छा लगा कि बहुत बड़ा स्कूल था वो गवर्नमेंट गर्ल्स हायर सेकंडरी स्कूल। मेरी क्लॉस में लगभग सभी लड़कियाँ आपस में एकदम मिलजुल के रहती थीं…लेक़िन मैं वहाँ नई होने और अपने अंतर्मुखी स्वभाव के कारण कभी किसी से घुल मिल नहीं पाती थी।
मैं अपनी क्लॉस का पता लगा कर बैग रखने गयी,तो वहां मौजूद लड़कियां मुझे अज़नबी नजरों से घूरने लगीं।पर तभी प्रार्थना की घँटी बज गयीऔर हम सब प्रार्थना करने चले गए।जब वापिस कक्षा में लौटे…तो कक्षा की मॉनिटर मुझसे बोली…’इस क्लॉस की तो सभी सीट फुल है,सब लड़कियों की जगह फिक्स है…अब तुम्हारे बैठने के लिए बेंच नहीं है।’

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तभी एक लड़की पीछे से बोली….’यहाँ तो मैं अकेली ही बैठती हूँ,ये मेरे पास बैठ जाएगी।’
मैंने नजर उठा कर उस लड़की की ओर देखा…वो आख़िरी बेंच पर अकेली ही बैठी थी।शक़्ल सूरत से ही समझ आ रहा था कि वो ग्रामीण परिवेश की है।मैं बड़ी उपेक्षा से अपना बैग लिए उसके पास तो बैठ गयी,पर उसकी मित्रता भरी मुस्कान को सिरे से नकार दिया और मौन बैठी रही।
जब हमारी क्लॉस टीचर आयीं तो उन्होंने मेरा परिचय पूरी क्लॉस से कराते हुए कहा…’ये मृणालिका तिवारी है,तुम सबकी नई सहेली…उम्मीद है तुम सब इसे अपनी सहेली बनाओगी।’
धीरे धीरे जब कक्षा की लड़कियों को पता लगा कि मेरे पिताजी उच्च अधिकारी हैं तो वो मेरी दोस्ती के लिए उत्सुक हो उठीं।मैंने एहसान दिखाते हुए कुछ लड़कियों के ग्रुप के साथ टिफिन खाना मंजूर कर लिया।पर जब भी मेरे बेंच में बैठने वाली वो सीधी सी लड़की मुझे अपने साथ टिफिन शेयर करने को कहती,तो मैं बड़ी उपेक्षा से उसकी दो सूखी रोटियों और अचार को देख मुँह बिचका कर अपना टिफिन लिए दूसरी लड़कियों के साथ चल देती।
बाद में जब मुझे पता चला कि वो लड़की सीमा बहुत ही निर्धन परिवार से थी और छात्रवृत्ति के बल पर स्कूल में पढ़ रही थी,तब से तो मैं उससे और भी दूर रहने लगी।
एक दिन सीमा बड़ी ही खुशी खुशी मुझसे बोली…’कल मेरा जन्मदिन है,कल मैं तुम्हारे लिए अपनी माँ के हाथ का बना मालपुआ लाऊंगी।’
मैंने बड़ी ही लापरवाही से कहा…’मैं मालपुआ वगैरह नहीं खाती,फ़ालतू तकलीफ मत करना।’
जब दूसरे दिन सीमा क्लास में आई तो हमारी क्लॉस टीचर ने सब लड़कियों को उसे जन्मदिन की बधाई देने के लिए कहा।सबने औपचारिक बधाई दे दी,और अपने मे मस्त हो गए।
जब शार्ट रिसेस हुई और सब लड़कियां बैग से अपना अपना टिफिन निकालने लगीं,तो सीमा बड़े ही अनुग्रह से बोली..’लो न,देखो तो जरा सा चख कर ये मालपुआ!तुम्हें जरूर अच्छा लगेगा।’
पर मुझे तो जाने किस बात की अकड़ थी,मैंने सीधे से कह दिया…देखो सीमा तुम्हारा जन्मदिन है,तुम्हीं खाओ..और हाँ ये मैंने तुम्हारे लिए उपहार लाया है।’
यह कहते हुए मैंने उसे अपने कम्पास से निकाल कर एक कीमती फाउंटेन पेन पकड़ा दिया!
पेन देख सीमा खुशी से झूम उठी,फिर बोली…’पर ये तो बहुत कीमती है।’
मैं बड़ी शान से बोली…’कोई ख़ास कीमती नहीं है,तुम रख लो इसे।’
फिर कुछ दिनों बाद ही संयोग से मेरा जन्मदिन आया।
मैंने अपने जन्मदिन पर बढ़िया सी ड्रेस पहनी और पूरी क्लास के लिए चॉकलेट ले कर गयी।जब सब लड़कियों को मैंने चॉकलेट दिया तो सबने मुझे बधाई दी।
जब मैं अपनी बेंच पर आ कर बैठी तो सीमा ने मुझे एक लाल गुलाब देते हुए कहा…’ये तुम्हारे लिए लाई हूँ,मैंने ये पौधा अपने हाथों से लगाया था..और ये उस पौधे पर खिला पहला गुलाब है।’
मैंने रूखे स्वर में थैंक्यू बोला और चुप हो बैठ गयी।
वो गुलाब मैंने यूँ ही एक पुस्तक के अंदर रख दिया, और भूल गयी।
कुछ दिन बाद ही मेरे स्कूल में इंस्पेक्शन था,सबको फुल ड्रेस में आने की सख़्त वार्निंग दी गयी थी।
मैं जब स्कूल पहुँची…तो अचानक याद आया कि मैंने जल्दी जल्दी में स्कूल बैज नहीं पिनअप किया था।
अब तो मेरी हालत खराब हो गयी,सबको जैसे ही इंस्पेक्शन के लिए हॉल में जाने के लिए कहा गया…मैं घबराहट में रोने लगी,सब लड़कियां ख़ुसूरफुसुर करती हुईं चल दीं..किसी ने भी मेरी तरफ़ न तो ध्यान दिया,और न ही रोने का कारण पूछा।
तभी सीमा दौड़कर मेरे पास आई और अपने शर्ट पर लगा बैज निकाल कर मेरे शर्ट पर लगा दिया।फ़िर धीरे से बोली…’तुम रोओ मत!इसे पहन लो और जाओ इंस्पेक्शन के लिए।’
मैं आश्चर्य से उसे देखने लगी!फ़िर बोली…’पर तुम??तुम्हें तो फ़िर पनिशमेंट मिलेगी न!’
तो वो मुस्कुरा कर कहने लगी…’अपनी सहेली के लिए पनिशमेंट भी मिले तो कोई बात नहीं!पर मैं तुम्हें हमेशा हँसते हुए देखना चाहती हूं…इसलिए अब जल्दी जाओ हॉल में।’
मैं स्तब्ध उसे देखती रह गयी!अपने ऊपर इतनी शर्म आ रही थी कि लग रहा था इसी वक़्त सीमा के गले से लिपट कर उससे माफ़ी माँग लूँ।
तभी मेरी क्लॉस टीचर आयी और बोली…’तुम्हारी मम्मी ने ये बैज भिजवाया है,तुम जल्दी में भूल गयी थी।’
मैंने वो बैज सीमा के शर्ट पर अपने हाँथों से लगा दिया और प्रसन्न मन हम दोनों हॉल की ओर चल पड़ीं।
उसके बाद से जाने कितने शहर बदले!पर आज तक वो लड़की सीमा मेरी बेस्ट फ्रेंड है,और उसका दिया उपहार वो लाल गुलाब भले ही कब से मुरझा चुका है…पर आज भी मैंने उसे मखमली डिबिया में सम्भाल कर रखा है….जो हर पल मुझे अपनी सच्ची सहेली सीमा और छत्तीसगढ़ की ममतामयी धरा की याद दिलाते रहता है।