गृहलक्ष्मी की कहानियां : जब मेरी बारी आई तो हैडमास्टर ने मेरे से पूछा, ‘सबसे ज्यादा खजूर के पेड़ कहां पाए जाते हैं?’ मैंने बिना सोचे समझे तपाक से उत्तर दिया, ‘जी, डालडा घी के डिब्बे पर।’ मेरा यह उत्तर सुनकर हॉल में बैठे सभी अध्यापक, हैडमास्टर और सभी बच्चे जोर-जोर से हंसन लगे और मेरे चेहरे को निहारने लगे। अब यह वाक्य जब भी याद आता है तो मुझे हंसी आ जाती है।

आई चर–चर की आवाज
बात तब की है जब मेरी उम्र 5 साल की रही होगी। दीवाली से एक रोज पहले मां पकवान बना रही थीं। आखिर में उन्होंने पापड़ तले, फिर उन्हें एक खाट पर अखबार बिछाकर सूखने के लिए रखा ताकि तेल हट जाए। मुझे उनका ध्यान रखने का कहकर वे कपड़े बदलने चली गईं। इस दौरान तेज हवा चलने से पापड़ हिलने लगे तो मैंने उन पर चद्दर डाल दी ताकि वे उड़े नहीं। इसके बाद मैं खेलने में लग गई। इतने में मम्मी थकान की वजह से बिछी हुई खाट पर जैसे ही लेटी, चद्दर के नीचे दबे पापड़ों का चूरा बन गया और ‘चर-चर’ की आवाज सुनकर वो घबरा गईं। जब उन्हें मेरी हरकत का पता चला तो मुझे डांट लगाई। आज भी उस घटना को याद करती हूं तो हंसी छूट जाती है।

नाशकर्ता
यह घटना तब की है जब मेरी बहन की लड़की चार वर्ष की थी। मेरे पिताजी अपने लिए ऊनी दस्ताने खरीद कर लाए थे। बच्ची यह सब देख-सुन रही थी। अचानक वह बोली, ‘नानाजी आप मेरे लिए भी नाशकर्ता (दस्ताना) खरीद दोगे? पिताजी हंसकर बोले, ‘अपनी मां की नजर में मैं तो एक नाशकर्ता पहले से ही हूं। तू अब नाशकर्ती क्यों बनना चाहती है।’ बाल-सुलभ हरकत और तोतली बोली से वहां मौजूद हम सब हंस पड़े। दरअसल बाबूजी के खर्चीले स्वभाव के कारण दादी उन्हें अक्सर ही नाशकर्ता कहती थी।
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