Khoharmaha
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Hindi Immortal Story: बांग्लादेश और मेघालय की सीमा पर एक विशाल पत्थर रखा हुआ है। यह पत्थर एक बड़े टोकरे के आकार का है। पर गौर से देखने पर पता चलेगा कि इस पत्थर पर वीरता की एक अमिट कथा लिखी हुई है, बड़ी ही अचरजभरी कथा। इसलिए कि इसमें गाँव के लोगों ने बड़े अनोखे ढंग से राक्षस जैसे विशाल मिज्जूला से मुक्ति पा ली थी।

बहुत पुरानी बात है, चेरापूँजी के एक गाँव में लोग बड़े सुख-चैन से रहते थे। एक बार वहाँ एक विशालकाय और बली मिज्जूला आया और वह घरों से खाना माँगने लगा। मिज्जूला पूरा राक्षस था। उसकी लंबी-चौड़ी काया को देखकर लोग अपने घर में बना सारा का सारा खाना उसे दे देते। उन्हें डर था कि अगर वे ऐसा नहीं करेंगे तो मिज्जूला मनुष्यों को भी खा जाएगा।

एक-दो घरों के खाने से तो मिज्जूला का पेट भरता नहीं था। अतः आसपास के पंद्रह-बीस घर जल्दी अपने घर में बने खाने का ढेर मिज्जूला के आगे लगा देते। वह खूब पेट भर खाना और बचा-खुचा खाना अपनी पीठ से बँधी टोकरी में डालकर चला जाता। उस दिन उन पंद्रह-बीस घरों के लोगों को बिना खाए ही रहना पड़ता। बड़ों के साथ-साथ बच्चे भी भूखे रह जाते और बिलखते रहते। देख-देखकर सभी की आँखों में आँसू आ जाते। पर मिज्जूला के आगे वे सब लाचार थे। मिज्जूला कभी भी गाँव में आ जाता था और जिस गली में आता, समझो उस दिन उस गली के लोगों का सारा खाना खत्म हो जाता। उन्हें भूखे ही रहना पड़ता था।

पूरे गाँव के लोग मिज्जूला से बड़े दुखी थे। वह गाँव वालों के लिए सचमुच पहाड़ जैसी मुसीबत था। गाँव के सरपंच ने इसी समस्या के समाधान के लिए एक दिन पंचायत बुलाई। उसमें गाँव के प्रमुख लोगों ने मिज्जूला से छुटकारे के लिए अपने-अपने विचार प्रस्तुत किए।

लोगों को डर भी लग रहा था कि कहीं ऐसा न हो कि इसी समय मिज्जूला आ जाए और सबको मार डाले।

आखिर में एक बूढ़ी स्त्री घेलीबाई ने एक बात सुझाई। सुनकर सबके चेहरे खिल उठे। सबके मुँह से एक साथ निकला, “दादी, तुमने बिल्कुल ठीक कहा। अब हम यही करेंगे।”

अगले दिन गाँव की सीमा पर ही बड़े-बड़े कड़ाहों में भोजन बनाया गया। उसकी सुगंध दूर-दूर तक फैल रही थी। जब वह तैयार होने लगा तो उन सब कड़ाहों में पिसा हुआ काँच मिला दिया गया।

भोजन की सुगंध दूर-दूर तक उठ रही थी। ऐसे में वह विशालकाय मिज्जूला कैसे न आता? वह अपने बड़े-बड़े पैरों से धप-धप की आवाज करते हुए गाँव की सीमा पर पहुँच गया, जहाँ भोजन तैयार हो रहा था।

मिज्जूला को देखते ही गाँव वालों ने भोजन के कड़ाहे चूल्हे से नीचे उतारकर रख दिए और खुद थोड़ी दूर जाकर खड़े हो गए।

मिज्जूला उन कड़ाहों के पास आया और बड़े-बड़े कलछों से हिलाकर उसे ठंडा करने लगा। थोड़ी देर में जब वह खाने लायक हो गया, तो मिज्जूला ने दोनों हाथों से खाना शुरू किया।

वह खाता जा रहा था और खुशी से भरकर चिल्लाता भी जा रहा था, “आहा-हा, भोजन तो बहुत अच्छा है। बहुत अच्छा। बल्कि बहुत ही अच्छा। मैंने ऐसा बढ़िया खाना आज तक नहीं खाया। मजा आ गया, ह:ह:ह:, वाकई मजा आ गया। ह:ह:ह:, ह:ह:ह:… ह:ह:ह:!” उसने आसपास के खड़े लोगों के भूखे चेहरों की ओर एक बार भी नहीं देखा और न उनकी मुसीबत के बारे में सोचा। पर गाँव के लोग सोच रहे थे, “ठीक है, यह मिज्जूला की आखिरी दावत है। खा लेने दो, जितना भी वह खाता है। इसके बाद तो वह वहीं पहुँच जाएगा, जहाँ इसे बहुत पहले पहुँच जाना चाहिए था।”

थोड़ी ही देर में जब उसका पेट भर गया तो उसने बाकी बचा भोजन अपनी बड़ी सी टोकरी में भरकर लिया और अपने ठिकाने की ओर चल दिया। अभी वह थोड़ी ही दूर गया था कि उसके पेट में दर्द और जलन शुरू हो गई। पिसे हुए काँच ने अपना काम शुरू कर दिया था। कुछ ही देर में दर्द और जलन असहनीय होने लगा। फिर भी घिसटते-घिसटते वह बांग्लादेश की सीमा तक पहुँच ही गया। पर वहाँ से आगे वह अब एक कदम भी आगे न बढ़ सका और वहाँ वह पत्थर हो गया।

जब राजा को यह पता चला कि गाँव के लोगों ने कितनी बहादुरी से मिज्जूला का सफाया कर दिया है, तो उसने गाँव के हर आदमी को सौ-सौ मुद्राएँ इनाम में दीं। साथ ही बूढ़ी दादी घेलीबाई को वीरता का पदक दिया, जिसकी बढ़िया सलाह से गाँव वालों ने उस दुष्ट और विकराल मिज्जूला को खेल-खेल में मार गिराया। आज भी सीमा पर एक बड़ी सी टोकरी के आकार का पत्थर उस दुष्ट और महा भक्खड़ मिज्जूला की याद दिलाता है। इसी कारण उस जगह का नाम भी खोहरमहा पड़ गया है।

ये कहानी ‘शौर्य और बलिदान की अमर कहानियाँ’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानी पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं Shaurya Aur Balidan Ki Amar Kahaniya(शौर्य और बलिदान की अमर कहानियाँ)