miyaan ki badi
miyaan ki badi

भारत कथा माला

उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़  साधुओं  और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं

वह भरी-पूरी उम्र की बूढ़ी औरत थी। सभी उन्हें रानी बुआ कहा करते थे। वे पूरे गांव की रानो बुआ थीं। शादी भी हुई थी पर कोई तीन महीने बाद ही पति के मर जाने के कारण उन्हें मायके लौट आना पड़ा था। फिर वे यहीं रह गई। ससुराल में किसी ने एक बार भी नहीं पूछा। मायके में अकेले बापू को छोड़कर वे कहीं नहीं गई। मां तो बचपन में ही स्वर्ग सिधार गई थी। उनके बारे में यह एक बड़ी साधारण-सी कहानी थी, जिसे सभी जानते थे।

इस गांव के सबसे ऊंचे स्थान पर बनी मियों की हवेली के साथ लगा एक कमरा बना हुआ था, उसमें रहती थीं रानो बुआ। इस छोटे-से कमरे को सभी बुआ की कोठी कहते थे। वहां सुख-सुविधा की सभी चीजें न के बराबर थीं। हवेली बहुत बड़ी थी। सभी के लिए अलग-अलग कमरे बने थे। इसमें से एक में बड़ी-बड़ी मूंछों वाले बड़े ठाकुर साहब रहते थे, जिन्हें सब बड़े मियां जी कहते थे। उनकी पत्नी को सभी बड़ी बोबो जी कहते थे। यूं तो सारे घर में चहल-पहल थी पर हर बात को यहां परदे में रखा जाता था। हवेली की बातें बाहर गांव तक कम ही पहुंच पाती थीं। गांव के सभी लोग इस हवेली की जी-हुजूरी करते थे। वे यहां के जमींदार जो थे। उस पर राजपूती शान थी. .. खानदानी लोग थे वे। इनके पूर्वज यहां के राजा के खासमखास थे।

पुराने रस्मों-रिवाज सिर ऊंचा किए सारी हवेली को घेरे रहते थे। बड़ी बोबो के एक के बाद एक पांच बेटे हुए, इसलिए बड़ी बोबो का मान बहुत ऊंचा हो गया था। मियां जी खुश थे कि बड़ी बोबो ने उनके खानदान की लाज रख ली।

समय बीतता गया और इसके साथ-साथ हवेली की दीवारें पुरानी पड़ती गई। गांव में होते हुए भी मियां जी के पांचों बेटों ने पढ़ाई के लिए बड़े-बड़े शहरों का रुख किया। बड़े-बड़े ओहदों पर पहुंचे। फिर उनकी शादियां हुई, सभी के घर बसे पर गांव से बाहर अलग-अलग शहरों में।

रानो बुआ के पिताजी पद्मनाथ बचपन से मियां जी के नौकर थे। रानो बुआ मियां जी और बड़ी बोबो की भी बड़ी ही लाडली थीं।

बड़े मियां के खेत-खलिहान गांव में चारों तरफ फैले हुए थे। हवेली की बाई तरफ एक जगह एक हद-सी बाधा दी गई थी और उसे घेर कर बड़ी मजबूत बाड़ लगा दी थी। पत्थरों और कांटेदार झाड़ियों से इसे बड़ा पक्का कर दिया गया था। कोई भी आसानी से इसके अंदर दाखिल नहीं हो सकता था। जहां यह हद खत्म होती थी, वहां कंटीली झाड़ियों से भरी ढलान थी। अंदर जाने का सवाल ही नहीं पैदा होता था। इस जगह का नाम था ‘मियां की बाड़ी।’

कभी-कभी खास दिए पर, रानी बुआ यहां एक दीपक जलता देखा करती थीं। वे दूर से ही दीये की लौ को माथ टेकती और सोचती कि वह कोई पवित्र जगह होगी तभी तो यहां दीपक जलता है। उन्हें कभी किसी ने इस बारे में नहीं बताया, न कभी उन्होंने ही इसका राज जानने की कोशिश की क्योंकि हवेली की हर बात मालूम हो, यह जरूरी नहीं। पर हां, एक बार उन्होंने अपने बाप को कहते हए सना था-

“हे परमेश्वर, यहां दीया एक ही रहे। दूसरा दीया दिखाने से पहले परमेश्वर मुझे अपने पास बुला ले। दूसरा दीपक संभालने की हिम्मत अब मुझमें नहीं है। अब मैं बहुत बूढ़ा हो गया हूं। यह एक दीया भी किसी का भ्रम है। इस पर परदा पड़ा है, पड़ा ही रहे। मेरे अनन्दाता ढंके ही रहें।”

बहुत पूछने पर भी बापू जी ने और कुछ नहीं बताया। वे चुप ही रहीं। फिर दोबारा उन्होंने कुछ नहीं पूछा। क्या पता हवेली की कोई दबी-ढकी बात हो, कोई राज हो?

समय को उड़ान भरते पता ही नहीं चला। धीरे-धीरे सब बदल गया। अब बड़े मियां और बड़ी बोबो इस दुनिया में नहीं हैं। सारी हवेली सांय-सांय करती है। सन्नाटे के इस शोर में इसके सारे रीति-रिवाज उड़ गए लगते हैं। कभी-कभी मियां जी का सबसे छोटा बेटा कुलदीप सिंह अपनी पत्नी के साथ गांव आ जाया करता था। रानो बुआ उनकी बड़ी खातिरदारी करतीं। पर अब रानो बुआ उम्र की इतनी मार खा चुकी थीं कि उनसे काम किया ही नहीं जाता था।

परमेश्वर की करनी देखिए, उसका बापू पद्मनाभ भी बीमार पड़ गया। बीमारी बढ़ती चली गई। खाली हवेली और रानो बुआ के अलावा पास कोई नहीं था। बड़ी हिम्मत करके पद्मनाभ ने बुआ को पास बुलाया और सिर पर हाथ फेरते हुए कहने लगा-

“रानो मेरे वक्त का पता नहीं। पता नहीं कब आखिरी सांस आ जाए। मियां जी और बडी बोबो अब रही नहीं। बाकी सब तो तेरे भाई हैं. पर वे हैं कहां? तू अकेली है। खुद को संभालना, अब तेरी भी उम्र ढलने लगी है। यह सब कहने का वक्त तो नहीं है पर दिल पर मानो भारी बोझ लदा पड़ा है। आज मैं बड़े मियां का कसूरवार हो गया हूं, उनका विश्वास तोड़ने लगा हूं। बरस बीत गए हैं। जैसे युग ही बदल गया है। जितनी तुम्हारी उम्र है, कभी ऊंचा बोल भी नहीं बोला। पर आज मरने से पहले मैं अपना मन हल्का कर लेना चाहता हूं। जीते जी मेरा मन, कभी मेरा हुआ ही नहीं। वह इस भार तले दबा ही रहा। किससे कहूं, किससे माफी मांगू? मियां जी अब हैं नहीं, बोबो का तो खैर पता ही कुछ नहीं था।”

आखिर पदमनाभ बोला-“रानो, तू मेरी बेटी नहीं है। बड़े मियां और बोबो जी की सबसे पहली संतान है। पर जन्मते ही जैसे बड़े मियां को पता चला कि तू लड़का नहीं, लड़की है, उन्होंने मुझे अपने साथ लेकर, तुम्हें उसी समय एक गूदड़ी में लपेटा, हाथ में लालटेन ली और मियां की बाड़ी की तरफ चल पड़े। तेरी मां को तो पता ही नहीं था। उन्हें उस समय होश ही नहीं आया था। वहां जाकर उन्होंने एक गड्ढा खुदवाया और तुझे जिंदा बच्ची को ही उसमें गाड़ दिया। मुझे तुझ पर मिट्टी डालने और गड्ढे को भरने का आदेश देकर वे चले गए।”

“तू यहीं बैठना। रखवाली करना कि कोई जंगली जानवर न आए जाए। तू बाड़ पक्की कर, इसके ऊपर ईंट-पत्थर रखने के बाद ही लौटना।

उन्होंने मुझसे वादा लिए कि यह राज, राज ही रहे। नहीं तो मैं बरबाद हो जाऊंगा। मैं कच्ची उम्र का नासमझ नौजवान हक्का-बक्का सा यह सब देख रहा था। मेरे अन्नदाता मुझसे कुछ मांग रहे थे। मैंने कसम दे दी। पता नहीं डरते हुए या हमदर्दी में, आज तक नहीं समझ सका वह क्या था? पर घबराहट में मैंने तुम्हें झट से गड्ढे से निकाला। गड्ढा वापस भरा, उसे ईट-पत्थरों से ढका और रातों-रात अपने गांव चला गया। तुझे अपनी पत्नी को सौंप कर मुंह अंधेरे ही में वापस लौट आया। मियां की बाड़ी असल में जिंदा बेटियों को दफनाने वाली बाड़ी थी, यह मैंने उसी दिन समझा। यह बड़े मियां जी ने बनवाई था। पुराने बुजुर्गों की बनवाई बाड़ियां शायद तब तक भर गई थीं, तभी तो उन्हें कुल में जन्म लेने वाली और बेटियों के लिए यह नई बाड़ी बनवानी पड़ी। हो सकता है यह हवेली वालों की शान हो। मियां की बाड़ी में एक दीया रानी बेटी तेरे नाम का जलता है। सच्चाई मैं जानता हूं और कोई नहीं। यह मियां जी का एक भ्रम था, जिस मैंने हमेशा बनाए रखा एक धर्म था, जो मैं आज तक निभाता रहा।”

रानो बुआ पत्थर बनी सब सुन रही थीं। उसे ऐसा लग रहा था कि जैसे यह सब किसी और की कहानी है, उसकी नहीं। सारे जिस्म के तार एक-एक कर टूट रहे थे पर किसी का स्वर सुनाई नहीं दे रहा था। महसूस करने का पैमाना, जो उम्र के साथ पहले से ही भर चुका था आखिर आंख से छलक ही पड़ा। रानो बुआ की आंखों से ढलके दो आंसू उनके गालों की झुर्रियों पर आकर ठहर गए थे, जैसे झुरियों में रास्ता भटक गए हों कि किस तरफ है- पद्मनाभ की तरफ या हवेली की तरफ?

सब कछ बीत गया। वह सोचती…सनी हई कहानियां क्या उसी की जिंदगी में घटती थीं? सुना था कि पुराने जमाने में कुछ लोग बेटी को जन्मते ही धरती में गाड़ देते थे। मां को पता भी नहीं लगता था और अगर लगता भी था, तो उसकी आवाज को दबा दिया जाता था। आज वे सोचती हैं…. ‘काश कि बड़ी बोबो जी जिंदा होती। वह उनके पेट पर हाथ रखकर अपनी जननी को महसूस करती। उम्र लगाकर इकट्ठा किया वजूद, कैसे पल भर में ही बिखर गया।’ वे धीमी पड़ रही आंखों की रोशन से हवेली के चारों ओर देखने लगीं। उन्हें पहली बार ऐसा लगा कि बड़े मियां जी उसका हाथ पकड़कर हवेली से बाहर धकेल रहे हों। उन्होंने घृणा भरी नजरों को वहां से हटा लिए।

वक्त बीतता रहा, बीतता रहा। आज पद्मनाभ को गुजरे हुए भी कई बरस बीत गए हैं। अपने बुढ़ापे को संभाल कर, वे अकेली बस दिन काट रही हैं। न उन्होंने किसी को इस बारे में कुछ बताया, न ही किसी को पता चलने दिया। सब कुछ अपने भीतर दफन कर, बड़े मियां का मान बनाए रखा।

आज मियां जी का छोटा बेटा कुलदीप सिंह अपनी बीवी के साथ गांव आया हुआ था। रानो बुआ को पता था कि इस बार भी उसके घर कोई नन्हा मेहमान आने वाला है। पिछले पंद्रह साल से उनके बस एक बेटा ही था। पिछली दो बारी उसे दिन चढ़े थे पर केस खराब हो गया। बुआ ने बहू से पूछा-

“बहू रानी एक ही बेटा और कोई नहीं?”

बहू बोली-‘बुआ जी जमाना बदल गया है। दोनों बारी टेस्ट करवाया, लड़कियां थीं, तो मैंने डॉक्टर के पास जाकर सफाई करवा दी। अब फिर टेस्ट करवाना है, अगर लड़की हुई तो सफाई करवानी पड़ेगी। आज के जमाने में लड़कियां, तौबा-तौबा।”

रानो बुआ हक्की-बक्की रह गई। इस बारे में उन्होंने सुना तो जरूर था पर यकीन नहीं किया था। पर आज देख भी लिया और सुन भी लिया। वे सोचने लगी, सचमुच जमाना बदल गया है। पहले यह सब तो नहीं था, पर हां कहीं-कहीं बच्ची को नौ महीने कोख में पालने-पोसने के बाद, मां की मर्जी के खिलाफ कुछ जालिम बाप नवजात बच्चियों को मिट्टी में गाड़ देते थे। मां के दोनों हाथ अपनी बच्ची को गोद में खिलाने को तरसते रह जाते थे। कारण कोई भी हो पर आज जमाना इतनी तरक्की कर गया है कि मां-बाप के साथ मिलकर बेटी के जन्म से पहले ही तीन महीने के अंदर ही उसकी हत्या कर दी जाती है। क्या धरती की गोद में दफनाई गई जिंदा लड़कियों की लाशें इतनी हो गई हैं कि वह सिकुड़ कर औरतों के गर्भ में आ बैठी हैं- जगह मांगने के लिए? आज भी वजह कोई भी हो पर निशान तो लड़की ही है। पहले चोरी-छुपे कहीं-कहीं होता था। पर अब खुलेआम मां-बाप हत्यारे से मिलते हैं, उसे फीस देते हैं और फिर अपनी बेटी की हंसते-हंसते हत्या कर देते हैं। सारा काम इतनी सफाई से होता है कि उसके बचने की कोई गुंजाइश ही नहीं रहती। ठीक ही है, कम से कम आज के बाद कोई रानो बुआ नहीं होगी। जो तड़प उसने झेली है, उसे कोई और औरत नहीं झेलेगी।

रानो बुआ हौले से फुसफुसाई- “जमाना सचमुच बदल गया है। तरक्की कर ली है।”

वे सोचने लगीं कि बहू से पूछे कि हमारे समय में 70-80 साल पहले एक बाप ने बेटी के लिए मियां की बाडी बनवाई थी। बह त ही बता तने क्या गर्भ के अंदर एक सांस लेता वजूद रेजा-रेजा टुकड़े-टुकड़े कर दिया? तूने उसे बेहद महीन कर बाहर संसार की गंदगी में मिला दिया। वह वजूद बिखर गया चारों ओर….वह जो बार-बार आवाज देकर कह रहा हो जैसे-

“जिंदगी नहीं दे सकते थे, तो कम से कम एक बाड़ी ही बनवा देते। चलो कभी-कभी कोई दीया तो जलाता। लोग कहते कि देखो बेटी की बाड़ी में भी रोशनी आ रही है। नए जमाने की बाड़ियां अंधेरी, घुप्प अंधेरी हैं। अब तो कोई पद्मनाभ भी नहीं है, जो अपनी कसम निभाए। अब नया जमाना है। बेटी की मौत की गवाह मां खुद है।”

सोचते-सोचते वे उठीं। आंखों की मद्धिम पड़ती रोशनी से मियां की बाड़ी की तरफ देखने लगीं पर उन्हें वहां कोई दीया जलता नहीं दिखा या शायद नजर न आया हो। आज उसके और बाड़ी के बीच का फासला बहुत बढ़ गया था। ठीक 70-80 बरस का फासला। दीये की लौ नए जमाने की मार नहीं झेल सकी और बुझ गई।

भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’