भारत कथा माला
उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़ साधुओं और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं
hindi Lokkatha – एक गांव में एक ब्राह्मण रहता था। उसके पांच भाई थे। पांच भाइयों की पांच पत्नियां थी। उनके बच्चे भी थे। खूब भरा पूरा परिवार था।
सहसा गांव में एक राक्षस आया और वह एक-एक कर सबको खाने लगा। एक दिन एक की बारी आती थी, दूसरे दिन दूसरे की। इस प्रकार वह कुछ ही दिनों में सारा गांव चौपट कर गया। ब्राह्मण परिवार भी न बच सका। उसने पांचों भाईयों को खा लिया। उनकी बहुओं और बच्चों को भी न छोड़ा। केवल सबसे छोटी बहू बच गयी। वह मायके गई हुई थी। उसके पेट में बच्चा था। जब उसने सुना कि उसका सारा परिवार राक्षस ने खा लिया तो वह वापस नहीं आई। मायके में ही रहने लगी। आती भी कैसे, ससुराल का घर उजड़ चुका था। उसमें अब राक्षस ने डेरा डाल दिया था।
छोटी बहू के मायके में ही एक लड़का हुआ। वह बड़ा होनहार था। जैसे और लड़के महीनों में बढ़ते हैं, वैसे वह दिनों में बढ़ने लगा। ननिहाल के लड़के उसे बहुत प्यार करते थे। वह उनके साथ-साथ भईयों की तरह खेला करता था। एक दिन न जाने किस बात पर झगड़ा हुआ कि एक लड़के ने ताना दिया ‘अपना तो तेरा कोई घर नहीं, यहां दूसरों के घर पर पड़ा है।’ उसके हृदय में ठेस लगी। रोता-सिसकता वह मां के पास गया और बोला, ‘हमारा घर कहां है मां? मां अवाक् रह गई। बेटे ने फिर वही प्रश्न दुहराया मां क्या कहती है? यही तो है’ उसने कहा, लड़के ने जिद की, यह तो मामा का घर है। मां के लिए अब बात को छिपाना संभव न था। उसने राक्षस की बात कह दी। लड़का उत्तेजित हो गया। उसने हठ की, मां, मैं अपने घर जाऊंगा। मां ने मना किया, पर वह न माना। शेर को कौन रोक सकता है? वीर का उठा पांव कहां रूक पाता है? उसका खून खौल रहा था। वह मां को समझा-बुझाकर अकेला चल दिया।
लड़का अपने घर के द्वार पर पहुंचा। राक्षस अन्दर लेटा था। लड़के ने द्वार खटखटाया और बाहर से ही नमस्कार किया। राक्षस चौंका। उसने बाहर झांका, देखा, एक सुन्दर छोटा बालक बाहर खड़ा था। उसके मुंह में पानी भर आया। उसका आहार आज घर में ही आ गया है। वह मन ही मन खुश हुआ। उसने लड़के को अन्दर बुलाया। उसकी खूब आवभगत की। खिलाया-पिलाया। लड़के ने कहा. ‘तम कितने अच्छे हो. राक्षस दादा। अब मझे अपने ही पास रख लो। पर मुझे अभी मत खाना, जब कुछ मोटा हो जाऊं तब खा लेना। तब तक मैं तुम्हारे पैर दाबूंगा, तुम्हारे लिए खाना पकाऊंगा।
राक्षस ने सोचा लड़का ठीक कहता है, यह मेरी सेवा कर लेगा। जब बड़ा हो जायेगा तो मैं इसे खा लूंगा। वे दोनों साथ-साथ रहने लगे। राक्षस रोज सुबह बाहर चला जाता और खाने-पीने की चीजें जुटाता। लड़का उसके लिए खाना बनाता। इसी तरह दिन कटने लगे। राक्षस और लड़के में कभी झगड़ा नहीं हुआ।
एक दिन जब राक्षस सोने लगा तो लड़के ने पूछा, ‘दादा, तुम रोज सबेरे-सबेरे कहां जाया करते हो?’ राक्षस ने कहा, ‘ब्रह्मा के यहां।’ लड़के को विस्मय हुआ और फिर कुछ सोचने लगा। राक्षस ने कहा, ‘क्या सोच रहा है?’ लड़के ने कहा, ‘तुम दादा, ब्रह्मा के यहां जाते ही हो। दादा, मेरा भी एक काम करोगे? राक्षस ने स्वीकृति के लिये गर्दन हिलाई। लड़के ने अपनी बात कही, ‘ब्रह्मा से पूछना, मेरी उम्र कितनी है?’ राक्षस ने कहा, ‘अच्छा’।
सवेरा हुआ, राक्षस ने खाना खाया और जाने लगा। लड़के ने फिर याद दिलाई, ‘दादा, मेरी बात न भूलना।’ राक्षस ने कहा, ‘अच्छा’ और ब्रह्मा के पास चल दिया। दिनभर उसने ब्रह्मा की सेवा की। संध्या हुई तो घर आते हुए उसने बात छेड़ी, ‘ब्रह्माजी, मेरे घर में एक लड़का रहता है। उसने पूछा है कि उसकी उम्र कितनी है। ‘ब्रह्मा ने आंखें मूंदी और कहा, ‘सौ बरस’।
राक्षस घर लौटा। लड़के ने खाना-पीना खिलाया और जब सोने का समय हुआ तो कहा, ‘मेरी बात का क्या हुआ? ‘राक्षस ने कहा, ‘बताता हूं।’ लड़के ने कहा, ‘कहो न।’ राक्षस ने कहा, ‘सौ बरस।’ लड़का रोने लगा। राक्षस असमंजस में पड़ गया। बोला, ‘क्या हुआ?’ लड़के ने कहा, ‘दादा ब्रह्मा से कह देना, मैं इतने बरस जीना नहीं चाहता। मेरी आयु में से या तो एक बरस घटा दो या बढ़ा दो।’ राक्षस ने ‘हां’ कहा और सो गया।
सुबह हुई। राक्षस खा-पी कर चलने को हुआ। लड़के ने कहा, ‘दादा, मेरी बात न भूलना।’ राक्षस ने हां की और ब्रह्मलोक को चल दिया। दिनभर उसने ब्रह्मा की सेवा की। संध्या होने लगी तो उसको लड़के की बात याद आई। उसने ब्रह्मा से कहा, ‘उस लड़के ने कहा है कि उसकी आयु में या तो एक बरस बढ़ा दो या एक बरस घटा दो। ब्रह्मा मुस्कराते बोले, ‘वह लडका मूर्ख है। उसमें से तिल भर न घट सकता है. न माशा बढ़ सकता है।
राक्षस घर लौटा। लड़का प्रतीक्षा में था ही। उसने बड़े प्रेम से उसको खाना खिलाया और जब सोने का समय हुआ तो पूछा ‘दादा मेरी बात का क्या हुआ?’ राक्षस ने कहा, ‘मैं क्या करूं? ब्रह्मा ने कहा है, तुम्हारी उम्र न तिल भर घट सकती है, न बढ़ सकती है।
लड़का अब की बार जोर से हंसा। चिल्लाया, मेरी आयु न घट सकती है, न बढ़ सकती है। ठीक है न, राक्षस दादा। अंगारे के समान जलती आंखों से उसने लड़के को देखा। लड़के ने ताना दिया, ‘खाओगे राक्षस दादा’ राक्षस गरजा। लड़का हंसा, ‘तुम मुझे नहीं खा सकते। मेरी आयु सौ बरस है अब तुम मेरे घर से निकल जाओ, नहीं तो मैं तुम्हें मार डालूंगा’ राक्षस हक्का-बक्का रह गया। बेचारा क्या करता? गुर्राया, गिड़गिड़ाया, पर लड़के ने उसे निकाल ही दिया।
राक्षस के जाते ही उस गांव के लोग फिर से बसने लगे। लड़के ने भी अपनी मां को वहीं बुला लिया और दोनों वहां रहने लगे।
भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’