भारत कथा माला
उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़ साधुओं और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं
एक साहूकार के घर में एक नौकर था। वह घर का सारा काम करता था। एक दिन वह तालाब से पानी लाने के लिए जाता है। वहाँ स्वयं ब्रह्म वर-वधु के नाम के गाँठ को बाँधकर तालाब में फेंक रहे थे। यह सारा विवरण नौकर ने घर आकर अपने मालकिन के सामने सुनाते हुए कहा, “वहाँ एक वधु और एक वर का नाम ले-लेकर ब्रह्मगाँठ बाँध रहे थे और तालाब में फेंक रहे थे।” उसी समय मालिक की बेटी कहती है, “मेरे साथ ब्रह्म किसके नाम की गाँठ बाँधते हैं, वह तू जाकर देखकर आ।” नौकर फिर एक बार तालाब से पानी लाने के लिए जाता है और ब्रह्म से पछता है. “मेरे मालिक की बेटी ने पूछा है कि उसकी गाँठ आपने किस वर के साथ बांधी है?” ब्रह्म उत्तर देते हैं, “तुम ही उस लडकी के वर हो।”
इतना सुनकर नौकर घर की ओर लौटता है और मालिक की बेटी से कहता है, “ब्रह्म ने कहा है कि आपके साथ मेरी ही गाँठ बाँधकर तालाब में फेंक दी है।” यह सुनते ही मालिक की बेटी गुस्से में कहती है, “तू कहाँ और मैं कहाँ, हम दोनों के बीच कैसे विवाह हो सकता है?” और गुस्से से पानी से भरा हुआ घड़ा उसके माथे पर फेंक देती है। माथे से खून निकलने लगता है। उसी दिन नौकर घर छोड़कर चला जाता है। अपने माथे पर मरहमपट्टी करता है। कई दिनों के बाद मालिक की बेटी के लिए वर ढूँढने की तैयारियाँ चलती हैं। एक हाथी के सूंड में वरमाला डाली जाती है। वह हाथी जिसके गले में वरमाला पहनाएगा।
वही उस लड़की का वर होगा। उसी समय नौकर एक पेड के नीचे बैठकर यह सारा दश्य देख रहा था और यह विचार कर रहा था कि ब्रह्म ने जो गाँठ बाँधी थी वह सच साबित होगा या गलत। हाथी सभी की ओर जाता है, अंत में उस नौकर के गले में वरमाला डाल देता है। इस नौकर को ले जाकर मालिक की बेटी के साथ विवाह कर दिया जाता है। उसके बाद मालिक कहता है, “मेरी इकलौती बेटी है, इसलिए तुम ही इस जायदाद के मालिक बनकर अपना जीवन खुशी से यापन करो।” मालिक की बात मानकर वह उसी घर में रहने लगता है। एक दिन उसकी पत्नी पूछती है, “आपके माथे पर यह कैसा निशान है?” वह उसे पिछले दिनों की घटनाएँ याद दिलाते हुए कहता है, “मैं आपके घर का नौकर था, ब्रह्मगाँठ के बारे में बताने के बाद आपने मेरे माथे पर घड़ा फेंककर मारा था, उसके बाद मैं आपके घर से चला गया था, हाथी ने मेरे गले में वरमाला डाली और हम दोनों पति-पत्नी बने।” यह कहकर फिर आगे कहता है, “देखा, ब्रह्मगाँठ से कोई भी बच नहीं सकता।” पत्नी अपने पति से क्षमा याचना करती है। अंत में दोनों अपना जीवन बहुत ही खुशी से बिताने लगते हैं।
(मूल आधार : यह लोककथा ‘ब्रह्मगंटु’ नाम से कन्नड़ में डी. के. राजेंद्र की पुस्तक ‘बेदरू गोम्बे मत्तू इतर जनपद कथेगलु’ में संकलित है। डॉ. शंभू मेरवाड़े ने इसका हिंदी में अनुवाद किया है)
भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’
