anath balak
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भारत कथा माला

उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़  साधुओं  और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं

एक गांव में एक अनाथ बालक था। अगर कोई भोजन करके पत्तलों को फेंकते तो जूठन खाकर पेट भर लेता था। कहीं भी सोकर, बैठकर जीवन बिता रहा था। उसी नगर के राजा की एक बेटी थी। गरीब को पाले तो पुण्य मिलता है इसीलिए उसने बालक को पालने के लिए अपने पिता से कहा। राजा ने कहा- “तुम्हारा प्रेम ही तुम्हारा धैर्य है” तुम पाल लो। उस लड़के को लाकर अच्छी तरह देखभाल करने लगी। राजकुमारी को कहीं भी अच्छा वर नहीं मिला। पिताजी बहुत सोचने लगे थे। उसने कहा- “पिताजी मत सोचिए, बेटे की तरह काम करके जीवन बिताऊंगी।” कुछ दिन बीत गए। राजा चिंतित और दुखी रहने लगे। किसी भी लड़के को राजकुमारी पसंद नहीं करती थी। उसे क्रोध आया, उसने कहा- “एक ही तो बेटी है, शादी करके खुश होना चाहता हूं, पर तुम सुनती ही नहीं। तुम कपडे से मुँह ढककर यहाँ से चली जाओ।”

राजकुमारी ने बहुत सोचा-“मैंने जन्म लेकर माता-पिता को बहुत दुख दिए, अब यहां रहने से अच्छा है मैं कहीं चली जाऊं।” फिर उसने अपने लिए कौन-कौन सी वस्तुएं चाहिए, वह सब घोड़े पर लादकर घर के सामने आई। फिर उसे अनाथ लड़के की याद आई- “मैंने बहुत कष्ट सहन करके इस लड़के को पाला है, अगर मैं इसे यहां छोड़ कर चली गई तो ये लोग उसे यहां से भगा देंगे। मैं जहां रहती हूं, वह भी मेरे साथ ही रहे”। कहते हुए उस लड़के को घोड़े के ऊपर बिठाकर वहां से चल पड़ी।

दोनों दूर बहुत दूर गए। फिर एक कुएं के पास भाई-बहन दोनों उतर गए। भाई ने कहा “दीदी मुझे भूख लग रही है, कहीं से कुछ अन्न की व्यवस्था करो।” राजकुमारी ने कहा- हाय! मेरा बेटा, बहुत भूख लगी है तुम्हें? मैं चूल्हा जला देती हूं, पानी लेकर आती हूं, तुम कुछ लकड़ियां लेकर आओ यहीं खाना पकाती हूं, फिर दोनों मिलकर भोजन करके आगे बढ़ेंगे।” बालक मेरी बहन खाना पकाती है सोचते हुए, कुएं से कुछ दूर लकड़ी चुनने के लिए गया। वहाँ बहुत सारा घास उगा हुआ था। उस घास पर बैठा एक वृद्ध, बड़बड़ाते हुए घास को गांठ डाल रहा था। वृद्ध पलट कर देखता है और पूछता है- तुम कौन हो? क्या ढूंढ रहे हो? तुम्हें क्या चाहिए?” दादा जी मेरी बहन किसी भी देश का राजा आये तो भी विवाह के लिए मना कर देती है। तो तुम उसे किसी राजा के बेटे से गांठ डालो, बालक ने पूछा। “जाओ तुम्हें और तुम्हारी बहन को गांठ डाला है।” वृद्ध ने कहा

बालक तीन-चार लकड़ियों को लेकर बहन के पास आया और उसे देख कर रोने लगा। क्यों बेटा किसी ने मारा? किसी ने डांटा? क्यों रो रहे हो? उसने पूछा। दीदी तुम्हें कहने से डर लग रहा है अगर तुमने मारा-पीटा तो? बालक ने कहा। नहीं कहो राजकुमारी ने कहा। बालक ने वृद्ध की सभी बातों को विस्तार से कहा। राजकुमारी को बहुत गुस्सा आया, उसने भोजन पकाना छोड़कर एक पत्थर से उस लड़के के सिर पर जोर से मारने लगी फिर उसे एक तालाब में फेंक कर घोड़ा ले कर चली गई।

एक जमींदार मुर्गी के कुकूड-कू बोलने के समय अपनी पूरी जमीन देखने के लिए आया। उसने देखा लड़के के प्राण तड़प रहे थे। समय जमींदार ने अपने सेवक को गाड़ी लाने के लिए भेज दिया। फिर गाड़ी पर उस लड़के को सुलाकर अपने गांव लेकर आया। पंडित जी से कहकर चिकित्सा करवाया और कहा- “स्वामी आपको भी आधा पुण्य मिले और मुझे भी आधा पुण्य, तुम इसे बहुत जल्द स्वस्थ करो, मैं इसे भोजन देता हूं उसका घर बसे। आपके बच्चों का भी भला होगा और मेरे बच्चों का भी भला होगा। लड़के को पंडित जी के घर में छोड़कर वह चला गया। कुछ दिन बाद बहुत सारा घी, मुर्गी के अंडे लेकर उससे मिलने आया। फिर उसे एक बूढ़ी औरत के पास छोडकर- “अम्मा मैं तुम्हें सब कुछ देता हूं, तुम इस लड़के को अपने घर में रख लो इसकी पूरी देखभाल करो और इसे तंदुरुस्त बनाओ। पंडित जी जैसा कहते हैं वैसा ही तुम करो, मैं तुम्हें काम के रुपए दे दूंगा।” फिर पंडित, जमींदार और बूढ़ी औरत तीनों मिलकर उस लड़के को बचा लेते हैं।

पंडित जी के घर छोड़ने के बाद लड़का जमींदार को कहने लगा। पिताजी आपने ही मुझे पाला-पोसा है, मेरा कोई अपना नहीं है, आप ही सब-कुछ हैं। आपके घर में आपकी सेवा करके आगे का जीवन बिताऊंगा। जमींदार की पत्नी को भी बच्चे नहीं थे, उसने सोचा- लड़का यहां पर रहा तो पति पूरी संपत्ति उसके नाम कर देगा। इस अनाथ बालक को अपने घर में रखना उचित नहीं है। यही सोचकर अपने भाई के बच्चों को बुलाने के लिए पति से कहती है, और अनाथ लड़के को भगा दे, नहीं तो वह मर जायेगी।” पति कहता है “पापिन तुम इतनी स्वार्थी हो, एक अनाथ बालक को अपनी संपत्ति कैसे दे सकता हूं? जब तक वह यहां है उसे भोजन दे दो बस।” पत्नी ने उसकी बातें नहीं सुनी। अंत में जमींदार उस बच्चे पर तरस खाकर उसके हाथ मे दस रुपये थमाते हुए- “बेटा तुम यहां से चले जाओ, कहीं भी काम करके अपना जीवन बिता लो।” कहते हुए घर से बाहर निकाल देता है।

उसी गांव में कोमटी जाति का गोविंदप्पा नामक व्यक्ति रहता था। वह बड़ा घर बनाने के लिए जमीन खुदवा रहा था। लड़का वहां जाकर “मैं अनाथ बालक हूं मुझे काम दे दीजिए” कहता है। पहले से ही उस व्यक्ति के पास दस मजदूर थे। उसी समय गोविंदप्पा का एक मजदूर “स्वामी हम दस मजदूर जब भोजन के लिए जाते हैं तो सामान की रखवाली के लिए कोई तो चाहिए इसीलिए आप इस बच्चे को काम के लिए रख लीजिए कहते हुए गोविंदप्पा को मना लेता है।

ठीक बारह बजे वे सभी खाने के लिए जाते हैं। क्योंकि लडका अभी बालक था। मजदूरों की तरह जमीन खोदने लगता है। कुछ देर बाद उसे जमीन मे धन से भरा घड़ा मिलता है। वह पहले उसे छिपा देता है फिर गोविंदप्पा के पास जाकर अपनी मजदूरी मांगता है। जमींदार के दिए हुए दस रूपये के साथ गोविंदप्पा के दस रुपये भी जोड़ लेता है और गांव में आता है। फिर गांव के दलाल के पास जाकर कहता है- “स्वामी मैं कितने दिन ऐसे ही रहूं, मेरे लिए एक घर चाहिए। एक बडा घर दिखाते हुए उसे ही दिलाने के लिए कहता है।” बसप्पा को आश्चर्य हो जाता है “इतना बड़ा घर लेने के लिए तुम्हारे पास रुपये हैं? तुम तो गोविंदप्पा के घर में मजदूरी करते थे ना?” लड़के ने कहा- “पहले इसे दिला दो, मैं किसी के घर काम करके तुम्हें रुपए दे दूंगा” फिर बसप्पा उसे घर दिला देता है। लड़का छुपाया हुआ घड़ा लाकर उसे चार हजार रुपए देता है। बाद में बसप्पा कहता है “बाकी बचे रुपए से तुम अपना घर बसा लेना और जो भी घर परिवार के लिए चाहिए उसे खरीद लेना।” लड़का कहता है- “चाचा जी इतनी छोटी उम्र में शादी क्यों? कहते हुए घर के काम के लिए तीन बूढी औरतों को रख लेता है। एक खाना पकाने के लिए, दूसरी पानी लाने के लिए, तीसरी सेवा करने के लिए। इस तरह लड़का बहुत बड़ा जमींदार बनता है।

इस ओर राजकुमारी पूरा विश्व घूमकर एक पीपल के पेड से घोड़े को बांधकर बैठ जाती है। तभी तीनों बूढी औरतें घर का काम खत्म करके पानी लेने आती हैं, राजकुमारी को देखकर वहीं ठहर जाती हैं और “बेटी तुम्हारा कौन-सा शहर है? किस राजा की बेटी हो? तुम्हारा चेहरा कितना सुंदर है। तुम्हारे कपड़े कितने गंदे हो गए हैं, तुम कौन हो?” पूछते हैं।

मैं जो कोई भी हूं, आपको क्या करना है चाची जी? मैं एक अनाथ हूं। बूढ़ी औरतें चुप नहीं होती। “बेटी राजा के घर में हम तीनों मजदूरी करती हैं, क्या तुम भी काम के लिए आओगी?” पूछती हैं। चाची जी आप काम दिलाओ, मैं उसे कैसे मना कर दूंगी? “पहले आप अपने राजा को पूछ कर आइए।” कहती है।

पानी लेकर तीनों बूढी औरतें घर आती हैं। उन्हें देखकर इतनी देर क्यों हुई? लड़का पूछता है। स्वामी कोई बेचारी औरत आठ दिन से बिना खाना खाए बैठी है, पूछ रही थी मैं भी आपके साथ काम के लिए आऊँ? फिर कहा, आप अपने राजा को पूछकर आइए। हमने कहा- ठीक है पूछकर आते हैं। मां उसे लेकर आइए, जमींदार ने कहा। तीनों औरतें घोड़े को भगाकर उसे घर लेकर आती हैं। जमींदार उसे देखते ही, कोई पागल होगी, इसे पानी गर्म करके नहला दीजिए, पेट भर खाना दीजिए। अच्छे कपड़े दीजिए कहते हुए खुद दुकान से दो साड़ी लाकर देता है। उससे काम नहीं होगा इसलिए उसे ऊपर के कमरे में जगह दीजिए और उसका भी काम आप ही कर दीजिए। उसको समय पर खाना दीजिए, पानी दीजिए और बालों को तेल दीजिए। अपनी बेटी की तरह देखभाल कीजिए। कहकर वहां से चला जाता है। तीनों बूढ़ी औरतों को उसकी बातें सुनकर निराशा होती हैं और कहती हैं जो पेड़ के नीचे बैठी थी, हमने यहां लाकर महान पदवी दिलायी।

तीन-चार महीने ऐसे ही बीत जाते हैं। जमींदार उस लड़की के यहां काम करने वाली बड़ी अम्मा से कहता है- उसे जाकर पूछिए किस राजा की बेटी है? किस जमींदार की बेटी है? शादीशुदा है? पति ने छोड़ा है? तुम दिन-रात उसके साथ रहती हो उसे पूछकर मुझे बताइए। बड़ी अम्मा लड़की के पास आती है। उसे भोजन खिला कर पूछती है, हमेशा क्या सोचती रहती हो? अपना सुख-दुःख मेरे साथ बांट लो? तुम्हारे दु:ख-दर्द हमारे राजा समझेंगे, कुछ न कुछ हल निकालेंगे। फिर सब कुछ बड़ी अम्मा राजा को बता देती है। जमींदार कहता है आप शादी की तैयारी कर लीजिए। आठ दिन में सब तैयारियां हो जानी चाहिए। जमींदार सभी बंधु मित्रों को आमंत्रण पत्र लिखता है- “मैं गरीब, मेरा अपना कोई नहीं है, आप सब आकर मुझे आशीर्वाद दीजिए”। सभी बंधु मित्र मिलकर उसकी शादी कर देते हैं।

शादी के बाद पति-पत्नी दोनों बहुत खुश थे। एक दिन राजकुमारी पूछती है “आपने शादी के दिन तेल क्यों नहीं लगवा लिया? पानी क्यों नहीं डलवा लिया? आज तो मैं आपको तेल लगाती हूँ और पानी डालती हूं।” तो जमींदार कहता है- “नहीं हमारे शास्त्र में पत्नी के हाथ से तीन महीने तक पानी नहीं डलवाते हैं। तुम पानी गर्म करके वहां रखो और कटोरी में तेल गर्म करके रखो, मैं लगा लूंगा, तुम दरवाजा बंद करके चली जाओ।” राजकुमारी को आश्चर्य हुआ, यह क्या विचित्र बात है, परीक्षा करनी चाहिए सोचकर पानी गर्म करके रखती है, तेल रखकर दरवाजा बंद करके बाहर आती हैं। जमींदार सिर पर पानी डाल देता है। वह धीरे से दरवाजा खोल कर देखती है। उसके शरीर पर कूटे हुए घाव थे। वह दरवाजा बंद करके बाहर आता है। पत्नी के साथ बैठकर खाना खाता है फिर दोनों मिलकर पान खाते रहते हैं, तभी वह पूछती है “स्वामी आपको…आये थे? आपके शरीर पर बहुत सारे घाव हैं क्या हुआ था? अगर आपने नहीं बताया तो मैं विष पीकर जान दे दूंगी।” तब जमींदार अपनी पूरी कहानी उसे सुनाता है। राजकुमारी “ब्रह्मगाठ से कोई नहीं बच सकता”। उठकर आंखें, कान सब बंद कर लेती है। “ऐसे पुरुष को ऐसी नारी” बात याद आती है। फिर उसी घर में उसके साथ सुख से जीवन बिताने लगती है।

भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’