भारत कथा माला
उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़ साधुओं और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं
एक गाँव में एक परित्यक्ता थी। गर्भवती थी। वहीं पर एक कुतिया भी थी। वो भी गर्भवती थी। वो कुतिया हमेशा उस स्त्री के इर्द-गिर्द घूमती रहती। कभी-कभी वो कुतिया उस स्त्री के पास कुछ खाने के लिए माँगने जाती। लेकिन वो स्त्री उसे भागा देती। एक दिन उस कुतिया को उसने एक डंडे से मारकर भगाया। वो कुतिया बहुत दुखी हुई और उस स्त्री को शाप देते हुए कहा, “हे पापी! मैं भी गर्भवती और तुम भी गर्भवती। जितना भी दे देती पेट भर लेती। लेकिन सिर्फ इतने के लिए तुमने मुझे मारा। मेरे पेट में जो बच्चे हैं वो तुम्हारी कोख में आएं और तुम्हारी कोख से बच्चे मेरी कोख में।” कुछ दिनों बाद उस कुतिया की कोख से जुड़वां लड़कियों ने जन्म लिया और उस औरत की कोख से दो कुत्तों ने। उसने उन पिल्लों को फेंक दिया। कुतिया में उन बच्चियों को दूध पिलाने की क्षमता नहीं थी। गाँव के बाहर, घास का एक ढेर था। उसमें से थोड़ा घास फैलाकर उन बच्चियों को उस पर सुलाया। प्रति दिन वो कुतिया प्रातः 10 बजे को गाँव जाती। घरों के दरवाजे पर लेटी रहती। जब उस घर की औरत झूठे बर्तन धोने घर से बाहर आती तब वो कुतिया जल्दी से उस घर की रसोई में घुसकर दूध का बरतन मुंह में दबाकर भाग जाती।
इसी तरह तीन महीने बीत गए। वो बच्चियां बड़ी हुई और अब चावल खाने का समय आ गया। वो कुतिया अब घरों से चावल का बन्दोबस्त करती थी। इसी तरह बच्चियां तीन वर्ष की हो गई। “मां हमें कपडे चाहिए, गहने चाहिए” उन बच्चियों ने अपनी कुतिया मां से मांगा। वो कुतिया इसी तरह से कपड़ों का बन्दोबस्त कर उनकी इच्छा पूरी करती। वो जो भी मांगते इसी तरह करती। आवश्यक घी-तेल आदि सब कुछ लाकर उनका पालन किया। एक दिन बच्चियों ने अपनी माँ से कहा, “तुम हर रोज हमें छोडकर गाँव की ओर चली जाती हो। हम कहाँ पर खेलें?” कुतिया ने कहा, “यहां से बाहर नहीं निकलना। तुम दोनों इसी घास की ढेर के पास खेलते रहो।” जैसे-तैसे वो बच्चियां बडी हई। उनका नामकरण भी नहीं किया था। दोडक्का और चिक्कक्का पुकारने की आदत पड़ गई।
दोनों वहीं पर, घास की ढेर पर, खेलते रहते। ईश्वर के वरदान से उनका जन्म हुआ था। सूरज और चाँद के सामान थे। एक दिन भद्रावती से राजा का बेटा और मंत्री का बेटा, घोड़े पर सवार होकर, उधर आए। उन्होंने दोडक्का और चिक्कक्का को उधर खेलते देखा तो बिजली की चमक जैसी आई। उस बिजली को ढूंढते हुए उस घास की ढेर के पास आये। इतने में दोडक्का और चिक्कक्का दोनों उस घास के ढेर में छुप गईं। उन लड़कों ने उनको आवाज लगाते हुए पूछा, “देवियों, आप किसकी संतान हैं? बाहर आइए।”
दोडक्का और चिक्कक्का ने कहा, “हम चाहे कोई भी हों, आप यहां से चले जाइए। हमारी मां अभी इधर आएगी। हम मानव की संतान नहीं हैं। कुतिया हमारी मां है। हमने कुतिया की कोख से जन्म लिया है। अभी मां शहर से फल-सब्जी लेकर आएगी।”
राजकुमार ने कहा, “ठीक है, तुम सूरज-चांद की तरह दिखती हो; मैं राजा का पुत्र हूं और ये मंत्री का पुत्र है, क्या आप हमसे विवाह करेंगी?” उन लड़कियों ने कहा, “मां से पूछेगे और वो जैसा कहेगी हम करेंगे।” राजकुमार और मंत्री का बेटा, दोनों कुतिया की प्रतीक्षा में पेड़ के नीचे बैठ गए। इतने में कुतिया शहर से खाने-पीने की चीजें लेकर आई और बच्चियों को दिया। दोडक्का ने कुतिया से कहा, “मां वो राजा और मंत्री के पुत्र हैं। क्या तुम उनके साथ हमारा विवाह करोगी?”
कुतिया ने कहा, “जरूर, उसमें क्या है?”
इतने में राजकुमार ने पूछा, “आज इनको हमारे साथ भेज दो। हम इन्हें अपने साथ ले जाकर इनके साथ विवाह करेंगे।”
कुतिया ने कोई उत्तर नहीं दिया। लेकिन दोडक्का ने कहा, “स्वामी, ईश्वर के वरदान से हमारा जन्म हुआ है। हम अभी तुरंत नहीं आ सकते। कपड़ा-लत्ता देकर मां हमें भेजेगी। आप आठ दिनों बाद आइए।” वो दोनों उसकी बात मानकर चले गए।
कुतिया ने चोरी करके ही बच्चियों को कपड़ा-लत्ता लाकर दिया। वो दोनों युवक ठीक आठ दिन बाद आए और उन्हें घोड़े पर बिठाकर ले गये।
कुतिया मां दोनों को बहुत याद करती थी। शिवरात्रि का त्योहार; बच्चियों को देखने के लिए तंबिट्ट (चावल के आटे और गुड़ की मिठाई) फल आदि लेकर वो निकली।
पहले बड़ी बेटी के घर गई। खाद्य पदार्थों को आधा छोटी बेटी के लिए रखा। दोडक्का ने गर्म पानी दिया, सोने के लिए बिस्तर बिछाया और चांदी की थाली में खाना दिया। उसने कहा, “चिक्कक्का के घर न जाओ। कुतिया कहकर वो तुम्हें भगा सकती है।” लेकिन मां का हृदय है! बेटी की याद में तरस रही थी। दूसरे दिन खाने की पोटली को मुँह में दबाकर छुटकी के घर गयी।
चिक्कक्का ने दूर से कुतिया को आते हुई देखा। उसके मन में आया, “ये दुष्ट कुतिया यहां पर भी आ गई, मेरा अपमान करवाने?” कहते हुए उसने उसके सर पर दे मारा। रिरियाते हुए उस कुतिया ने वहीं घर के सामने तीन चक्कर काटे और ढेर हो गयी। दोडक्का ने यह सब देखा, दौड़ कर आई और तुरंत कुतिया को अपने कन्धों पर उठाकर अपने घर ले गयी। पानी से खून साफ किया। अपने पति से कहा, “कुतिया की कोख से जन्म लो तो वही माँ है, मनुष्य की कोख से जन्म लो तो वही माँ है। मैं इसे शहर से बाहर कैसे फेंक दूं? मुझे एक बांस की टोकरी ला कर दीजिये। पति ने बांस की टोकरी ला कर दी। उस पर एक सफेद कपड़ा बिछाया, फूल बिखेरे और घर में एक खूटे से लटका दिया। उसने निश्चय किया की दिन-रात उसकी पूजा करेगी। हर रोज मां के सामने धूप जलाती और प्रणाम करती।
3 महीने हुए। तीसरे महीने के शास्त्रार्थ के लिए पति से कहा, “उस टोकरी को नीचे उतार कर दीजिए।” स्नान कर, पूजा कर उसने उसे नीचे उतारा। उसे खोला। उस कुतिया का शरीर सोने का ‘होम्बाले’ (नारियल का फूल) बनकर चमक रहा था। तब पति ने पत्नी से कहा, “तुम झूठ बोलती हो। इतनी पतिव्रता हो पर तुम्हारा कोई चाचा, ताऊ या ननिहाल नहीं है? जब तक तुम उसे नहीं दिखाओगी, मैं खाना नहीं खाऊंगा” कहकर जिद करके बैठ गया। उसने कहा, “हाँ स्वामी मैं जितना भी कहूँ आप मेरा विशवास नहीं करेंगे। चलिए ननिहाल चलते हैं।” पति-पत्नी दोनों घोड़े पर सवार होकर चल पड़े।
रास्ते में बीहड जंगल। पति से कहा, “आप यहीं बैठिए, मैं अभी आई।” ऐसा कहकर वो एक सांप के टीले के पास गई। फिर भगवान को याद कर, “हे भगवान! तुम अंधे हो क्या? मुझे एक कुतिया की कोख में डालकर कष्ट दिए। अब मैं इस सांप के टीले में अपना हाथ डालूंगी। सांप मुझे काटे और मैं मर जाऊं तो अच्छा होगा। मैं अपना ननिहाल कैसे दिखाऊं?” दुखी होकर वो वहीं सो गई। उस टीले में एक बडा फणधर रहता था। उसके कान में एक बड़ी-सी फुसी हो गई थी। लड़की ने जब उस टीले में अपना हाथ डाला वो उस फुसी पर लगा और वो फुसी फट गई; उसका दर्द कम हो गया। “ये कोई पतिव्रता है!” कहते हुए वो नाग बाहर आया। दोडक्का धूप की ओर मुंह कर के सोई थी। तब उसने वहां खड़े होकर अपने फन से उसे छांव दी!
इधर राजकुमार अपनी पत्नी को ढूंढ रहा था। दोडक्का को जगाने के लिए सांप ने अपनी पूंछ से मारा। उसके सभी तकलीफों को सुना। अंत में, “ये कोई बड़ी बात है क्या? पेड़ के नीचे विश्राम करो, मैं जाकर सब तैयारी करता हूँ” कहकर चला गया। वहां से तीन मील की दूरी पर एक बहुत बड़े शहर को खड़ा किया। जहां देखो ऐश्वर्य ही ऐश्वर्य। दोडक्का ने अपने पति को अपना ननिहाल दिखाया। पति-पत्नी उधर आए। बड़े भैया, छोटा भाई, दीदी, बहना पूरी संपत्ति वहां थी। बेटी को एक महीने तक घर पर रखा। अंत में एक दिन दोडक्का सर्पराज के पास जाकर बोली, “पिताजी हमें यहां आए एक महीना हो गया। भेजने का मन नहीं कर रहा है क्या?” पिताजी ने कहा, “क्या हम भेज सकते हैं? एक महीना और रुक जाओ।”
“हम कल चले जाएंगे” दोडक्का ने कहा।
“फिर आना” कहकर सर्पराज ने मंजरी दी।
“आज हम बहुत संतुष्ट होकर जाएंगे अगर फिर से ननिहाल जाने की बात कहेंगे तो क्या करूं?” दोडक्का ने कहा। उसके लिए सर्पराज ने एक उपाय सुझाया। “तीन मील जाओ। आप जहां बैठे थे वहां पहुंचकर मुड़कर देखो, पति को दिखाओ “ओ हो पूरा शहर जल रहा है, आज मेरा ननिहाल जल गया, कहकर रोते हुए जाओ फिर क्यों तुम्हारा पति आएगा!” उसने कहा। सर्पराज ने जैसा कहा उसने वैसा ही किया। ननिहाल में दहकती हुई आग लग गयी और वो जल गया। बहुत ही दुखी होकर ये अपने पति के साथ वापस लौट गई।
चिक्कक्का और उसके पति ने, अपार संपत्ति के साथ, पति-पत्नी को आते हुए देखा। दीदी के पास दौड़कर पूछा, ‘ये सब कहाँ से लाई? कहाँ जा कर आ रही हो?’ दोडक्का ने पूरी कहानी विस्तार के साथ सुनाई। पति-पत्नी दोनों घोड़े पर सवार होकर उसी सांप के टीले के पास गए जिसके बारे में दोडक्का ने बताया था। दोडक्का की भांति चिक्कक्का भी उस सांप के टीले के अंदर हाथ डालकर सो गयी। सर्पराज के काटने पर वो मर गयी। पति ने आकर देखा। ‘वो मां महापतिव्रता है, कुतिया की कोख से जन्म लिया, कुतिया की पूजा की इसलिए सभी भगवानों के दर्शन हुए। इसने कुतिया की हत्या की इसलिए सांप ने काटा और वहीं मर गयी’ ऐसा कहकर वो लौट गया। दूसरा विवाह कर सुखी रहा।
भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’
