Hindi Story
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Hindi Story: सत्तर साल की कमलेश अपने कांपते हाथों में एक भूरे रंग का लिफाफा पकड़े हुए थी जिसमें वर्षों पहले वाली वो पहले प्यार की खुशबू आज भी महसूस कर रही थी।
यह पत्र उसे जब मिला था तब वो चौदह साल की ही तो थी।
उन दिनों विवाह छोटी उम्र में ही हो जाया करता था। गौना पांच साल या सात साल बाद होता। उसकी बहनों की शादी भी तो ग्यारह से तेरह साल के बीच ही हो गई थी। वो सबकी लाडली जो थी तो घरवालों को भी उसके लाड प्यार में उसकी शादी के बारे में इतनी चिंता नहीं सताती थी उनका बस चलता तो वो उसे हमेशा अपने पास ही रखते, शादी करके किसी दूसरे घर में भेजते ही नहीं।

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“दादी ये तो दादाजी की हैंडराइटिंग है ना।”
दिखा सोनू मुझे भी… सोनू के हाथ से लगभग झपटते हुए मोनू देखने लगा..
“यह तो इंग्लिश में लिखा है, दादाजी ने दादी आपके लिए। आपको इंग्लिश आती थी?”
“तुम लोग भी कितने सवाल पूछते हो। लाओ मुझे दो।” आंखों से लाचार कमलेश हाथों से टटोलने लगी।
“दादी दादाजी ने आपको लव-लेटर लिखा था ?”
“धत्त!! कुछ भी बोलते हो।”
शर्माती हुई दादी के झुर्रियों वाले चेहरे पर और झुर्रियां बढ़ गई पर आंखों में चमक वो पहले प्रेम की झलक रही थी।
दादी जी दादाजी आपसे बहुत प्यार करते थे ये तो हमें भी पता है। वो तो हमेशा कहते थे तुम्हारी दादी के बिना मैं एक पल नहीं रह सकता हां वो भले खुद को सैकड़ों कामों में उलझाए रहती है और मेरे लिए समय भी नहीं निकाल
पाती।”
कमलेश के पोते पोतियां उसके पास बैठे हुए थे। उसके हाथ में वह लेफ्ट प्रेम पत्र था जो उसके प्रेमी ने उसकी उसके लिए पहली बार लिखा था।
“दादी जी प्लीज अपनी लव स्टोरी सुनाइए ना हमें भी। आप पहली बार दादाजी से कब और कैसे मिलीं। उस समय आप दोनों की लव मैरिज हुई थी या अरेंज मैरिज।”
“भागो… तुम लोग यहां से मुझे कुछ नहीं बताना। लाओ दो मेरी चिट्ठियां… ये कहां से तुम लोगों के हाथ में लग गई। मेरी आंखें खराब होने का फायदा उठा रहे हो तुम लोग।”
कमलेश जी की आंखों की रोशनी चली गई थी। वो उन अक्षरों को पढ़ तो नहीं सकती थी पर उसे दिल से महसूस कर रही थी।
उनके पति को गुजरे करीब दस साल हो गया था। इन दस सालों में उसने अपने पोते पोतियों को पालने पोसने में ही लगा दिया। पति का देहांत हुए साल भर भी तो नहीं हुआ था कि बहु भी अपने तीन बच्चों को कमलेश को सौंप दुनिया से विदा हो गई।
पति की फोटो के पास बैठकर अक्सर उनसे बातें किया करती।
“क्यों छोड़ गए मुझे… मुझे भी साथ ले चलते।”
फिर खुद के अंतर्मन की आवाज सुनती… “तेरे पोते पोतियों को कौन संभालेगा उनकी मां भी तो नहीं है बेटे ने दूसरी शादी भी नहीं की। तू ही तो उन बच्चों की मां दादी बाबा सब है।”
एक के बाद एक सदमा फिर जिम्मेदारी का बोझ… आंसुओं को रोके रखती पर सबसे ज्यादा असर उसकी आंखों पर ही पड़ा। भले उसकी आंखों की रोशनी हमेशा के लिए चली गई पर अपने प्रेमी अपने पति को वो मन की आंखों से हमेशा हंसते मुस्कुराते हुए देखती।
बच्चों ने जिद कर दी थी तो उसे बताना ही पड़ा सभी बच्चे उसे घेरे बैठे थे।
वो अतीत की परतें खोल उसमें से एक सुंदर सी प्रेम-कहानी निकाल अपने पोते पोतियों को सुना रही थी। वो पहला प्रेम पत्र उसके हाथों में था।
“जानते हो तुम्हारे दादा जी ने तो अनशन कर दिया था कि वह शादी करेंगे तो मुझ से ही करेंगे। असल में वह हमारे घर हमेशा आते थे क्योंकि मेरी बड़ी बहन के छोटे देवर जो थे। जब भी बड़ी दीदी अपने ससुराल से मायके आती तो उनके पीछे-पीछे वह भी आ जाया करते और हम दोनों साथ खेला करते थे। वह मुझे पढ़ना लिखना भी सिखाते थे। उस समय स्कूल कॉलेज तो लड़कियां जाती नहीं थी लेकिन वो चाहते थे कि मैं लिखना पढ़ना सीख जाऊं।
बचपन के गुड्डे-गुड़ियों के खेल खेल में कब हम दोनों को प्यार हो गया इसका एहसास तब हुआ जब दोनों परिवारों के बीच मनमुटाव के कारण उनका हमारे घर आना बंद करवा दिया गया।
मेरी शादी दूसरी जगह तय करवा दी गई तो मेरा रोते रोते इतना बुरा हाल हुआ कि तबियत बहुत ज्यादा खराब हो गई। साल भर से ऊपर बिस्तर पर ही पड़ी रही।
उस समय लड़कियों को बोलने की आजादी नहीं थी फिर भी मैंने अपनी मां को बताया कि मैं शादी करूंगी तो सिर्फ दीदी के देवर से ही करूंगी तब मेरी मां मेरी यह बात सुनकर कांपते हुए बोली थीं…
क्या बोल रही है बिटिया तेरे बाबूजी इस बात को कभी नहीं मानेंगे पहले की बात और थी लेकिन अब जब से दोनों परिवारों में झगड़ा हुआ है वह किसी हालत में तेरी शादी वहां नहीं होने देंगे।
जब पूरे साल पर हम दोनों नहीं मिल पाए तब एक दिन उन्होंने यह चिट्ठी अपने दोस्त की बहन जो कि हमारी दूर की रिश्तेदारी में थी उनके हाथों यह मुझ तक पहुंचाई।”
“तो दादी आपने पढ़ी थी यह चिट्ठी फिर इसका जवाब भेजा था क्या?”
“उस समय तक मैंने इतना लिखना पढ़ना तो सीख ही लिया था कि इस पत्र को आसानी से पढ़ पाई और जवाब भी लिख कर भेजा था।”
“दादी बुरा ना मानना… हमने भी पढ़ लिया आपका यह प्रेम पत्र। इसमें तो दादा जी ने अपने प्यार का इजहार किया है और अपने दिल का हाल बताया है कैसे उनका मन पढ़ाई में बिल्कुल नहीं लगता था उन्हें हमेशा आपकी याद आती थी वह आपसे मिलना चाहते थे।”
“हां जानते हो इस पत्र के बाद वह हमारे घर एक चूड़ी वाली के साथ आए। उन्होंने साड़ी पहनी हुई थी और घूंघट किया हुआ था। घर में सबको लगा की चूड़ी वाली की बहू है। वो कुछ बोले नहीं , पर जब सब चूड़ियां पहन रहे थे और मां ने मुझे भी कहा तब उनके स्पर्श से ही मैं समझ गई थी कि वो अपना वेश बदलकर आए हैं।उन्होंने घूंघट हटाकर अपना चेहरा दिखाया था तो एक पल के लिए मैं डर ही गई कि अगर वह पकड़े गए तो बहुत मार पड़ेगी उन्हें और जब यह पता चलेगा कि वह सिर्फ मुझसे मिलने के लिए आए हैं तो हम दोनों ही को परिवार वाले जान से मार डालेंगे।”
“तो उसे दिन किसी को कुछ पता चला या नहीं? चूड़ीवाली के साथ उनकी बहू नहीं आपकी बहन के देवर आए हैं।”
“नहीं किसी को शक भी नहीं हुआ। बहुत अच्छे अदाकारी करती तेरे दादाजी बिल्कुल मुंह से आवाज नहीं निकाले इतनी देर सिर्फ गर्दन हिलाकर हां ना में बता रहे थे जब कोई कुछ पूछता। एकदम लड़कियों की तरह ही चल रहे थे। उन्होंने सिर्फ मेरे हाथों में चूड़ियां पहनाई बाकी तो चूड़ी वाली ही सबको पहना रही थी।”
“वाओ! सो रोमांटिक!!”
“जाते समय एक और खत मेरे हाथ में पकड़ा दिया था और मुझे भी इस पत्र का जवाब मांगा था जो मैंने रुमाल में छुपा कर उन्हें दे दिया था।”
“यानी की वह पत्र भी दादाजी ने जरूर संभाल के रखा होगा जो आपने लिखा था।”
“हां तुम्हारे दादाजी को चिट्ठी और पुरानी फोटो संभाल के रखने की आदत थी।”
” इतने सालों तक संभाल कर रखा इस पहले प्रेम पत्र को आप दोनों ने।”
” अच्छा! तो हर साल दिवाली की सफाई के समय उस अटैची को हमें छूने से भी आप मना करती थीं। इस बार तो हमने ठान ही लिया था कि जरूर इसमें कुछ ऐसा छुपा होगा जो कुछ खास होगा।”
अब बच्चे अपने दादाजी की उस काली अटैची को खंगालने लगे जिसमें उन्हें दादाजी का लिखा पहला प्रेम पत्र मिला था।
थोड़ी ही देर बाद उन्हें एक गुलाबी रुमाल में लिपटा एक पत्र मिला। वो भी इंग्लिश में ही लिखा हुआ था जिसके नीचे योर कमलेश लिखा था। उनकी दादी बिना कभी स्कूल गए भी इतनी बढ़िया इंग्लिश लिख सकतीं हैं इस बात का उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा था।
ये प्रेम सबकुछ सिखा देता है। कमलेश अपने पति रमेश के पहले प्रेम पत्र की खुशबू से एक एक अक्षर पर उंगली रख उसे महसूस कर रही थी। शब्द-ब-शब्द उसे उस पत्र में लिखा सब याद आ रहा था। बच्चे दादी का लिखा पहला प्रेम पत्र पढ़ रहे थे जो उन्होंने उनके दादाजी को लिखा था।
कमलेश अपने दीदी के देवर के उस पत्र को बिना आंखों की रोशनी पढ़ रही थी… जो उसका बचपन का सखा था और फिर प्रेमी से पति बन गया।