kapot-uluk
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Hindi Katha: गंगा के उत्तरी तट पर अनुहाद नामक एक बलवान कपोत (कबूतर ) रहता था। वह मृत्यु का पौत्र था । उसका विवाह हेति नामक एक यक्षिणी के साथ हुआ था, जो इच्छानुसार रूप धारण कर सकती थी । वह मृत्यु की दौहित्र (पुत्री की पुत्री) थी। गौतमी के दक्षिणी तट पर एक भयंकर उलूक अपने परिवार के साथ रहता था। कपोत और उलूक दोनों एक-दूसरे के प्रबल विरोधी थे और सदा युद्ध में तत्पर रहते थे। किंतु किसी की भी विजय अथवा पराजय नहीं होती थी।

अंत में कपोत ने मृत्यु से याम्य नामक अस्त्र और उलूक ने अग्निदेव को प्रसन्न कर आग्नेय नामक अस्त्र प्राप्त किए। दिव्य अस्त्र पाकर दोनों ही परम शक्तिशाली हो गए और एक दिन पूरे आवेग से उन्होंने एक-दूसरे पर आक्रमण कर दिया। देखते-ही-देखते वहाँ भयंकर युद्ध छिड़ गया । उलूक ने कपोत पर आग्नेय अस्त्र से प्रहार किया। अस्त्र की अग्नि से कपोत जलने लगा । तब उसने उलूक पर यमपाश फेंका। यमपाश में फँसते ही उलूक के भी प्राण निकलने लगे।

हेति ने जब अपने पति को आग्नेयास्त्र से जलते देखा तो वह भगवान् अग्निदेव की शरण में गई । अग्नि देव बोले – “देवी ! मेरा यह अस्त्र अमोघ है। अतः यदि तुम अपने पति के प्राण बचाना चाहती हो तो जिस लक्ष्य को इससे बेधा जा सके, उसके विषय में बताओ। “

हेति बोली – ” प्रभु ! पत्नी के लिए पति से बढ़कर अन्य कोई प्रिय नहीं होता। इसलिए अपने पति के प्राण बचाने के लिए मैं स्वयं को प्रस्तुत करती हूँ। ” उसका प्रेम और निष्ठा देखकर अग्निदेव ने प्रसन्न होकर उसे और उसके पति को अभय प्रदान कर दिया।

इधर, उलूकी अपने पति को बचाने के लिए यमराज की शरण में गई और उनके यमपाश के लिए स्वयं को प्रस्तुत किया। यमदेव ने भी प्रसन्न होकर उलूकी और उलूक को अभय प्रदान किया। तत्पश्चात् दोनों देवों ने कपोत और उलूक को समझा-बुझाकर उनमें मित्रता करवा दी और उन्हें इच्छित वर माँगने के लिए कहा।

वे बोले- भगवन् ! हम पाप-योनि के पक्षी सदा वैरभाव में ही संलग्न रहे। फिर भी आप प्रसन्न होकर हमें वर देना चाहते हैं। इसलिए हम अपने लिए नहीं, बल्कि जगत्-कल्याण के लिए कुछ याचना करना चाहते हैं । प्रभु ! गौतमी के तट पर हमारे जो आश्रय-स्थल हैं, वे तीर्थ-रूप में परिणत हो जाएँ। वहाँ स्नान, दान, जप, हवन और पितृों का पूजन आदि करने से पापी मनुष्यों के समस्त पाप नष्ट हो जाएँ और वे पुण्यवान होकर मोक्ष के अधिकारी बनें। ” तथास्तु कहकर देवों ने उनकी इच्छाएँ पूर्ण कर दीं।

तभी से गौतमी गंगा का उत्तरी तट कपोत तीर्थ और यम तीर्थ, जबकि दक्षिण तट उलूक तीर्थ और अग्नि तीर्थ के नाम से प्रसिद्ध हुआ । यम तीर्थ पर स्नान और दान से मनुष्य पापरहित हो जाता है, जबकि अग्नि तीर्थ पर स्नान और दान करने से मनुष्य को अग्निष्टोम नामक यज्ञ का फल प्राप्त होता है।