Hindi Katha: प्राचीन समय की बात है, ब्रह्मगिरि पर करुष नामक एक व्याध (शिकारी) रहता था। वह बड़ा क्रूर, असत्यवादी और पाप में संलग्न रहने वाला प्राणी था। एक बार वह वन में शिकार करने गया । वहाँ उसने अनेक पक्षियों को पकड़कर पिंजरे में बंद कर लिया। अनेक मृगों का वध किया। इस प्रकार सारा दिन बीत गया। संध्या के समय जब वह घर लौटने लगा तो आकाश में काले-काले बादल उमड़ आए। क्षण भर में मूसलाधार वर्षा आरम्भ हो गई। तब करुष एक विशाल वृक्ष के नीचे बैठ गया।
उस वृक्ष पर कपोत-कपोती (कबूतर – कबूतरी) का एक जोड़ा रहता था। प्रतिदिन की भाँति उस दिन भी वे दोनों दाना चुगने वन में गए हुए थे, किंतु अब तक केवल कपोत ही अपने घोंसले में लौटा था। कपोती को वहाँ न देख वह दुखी होकर विलाप करने लगा। दैववश कपोती करुष के पिंजरे में थी। उसने उसे पकड़ लिया था। पति का विलाप सुनकर वह बोली – “खगश्रेष्ठ ! मैं यहाँ पिंजरे में कैद हूँ।
कपोती का स्वर सुनकर कपोत शीघ्र ही पिंजरे के पास गया और उसे बाहर निकालने का प्रयत्न करने लगा। तब कपोती बोली ” स्वामी ! संसार में कोई भी संबंध स्थायी नहीं रहता। अतः आप मुझे इस बंधन से छुड़वाने का विचार त्याग दें। यह सब विधि के विधान के अनुसार है। इसमें किसी का दोष नही है । खगश्रेष्ठ ! अतिथि साक्षात् भगवान् का स्वरूप होता है। इस समय यह व्याध हमारा अतिथि है। ठण्ड और भूख से इसके प्राण निकले जा रहे हैं। आप किसी भी प्रकार से इसका सत्कार करें। “
कपोती की बात सुनकर कपोत शीघ्र ही जलती हुई एक लकड़ी अपनी चोंच में दबाकर ले आया और करुष के सामने रखकर उसमें सूखे पत्ते, लकड़ी और तिनके डालने लगा। देखते-ही-देखते प्रचंड आग प्रज्वलित हो उठी। यह देख करुष हैरान रह गया।
तभी कपोत बोला – “हे व्याध ! तुम हमारे अतिथि हो और इस समय भूख से पीड़ित हो। इसलिए मैं इस अग्नि में प्रवेश कर रहा हूँ। तुम मेरे मांस से अपनी भूख शांत करो।” यह कहकर कपोत अग्नि में कूद गया। यह देखकर करुष का हृदय करुणा से भर आया। तभी कपोती बोली ” हे व्याध ! कृपया मुझे छोड़ दीजिए। देखिए, मेरे पति मुझसे दूर जा रहे हैं। ” करुष ने कपोती को मुक्त कर दिया। तब वह भी अग्नि में प्रविष्ट हो गई। तभी देखते-ही-देखते आकाश से एक दिव्य विमान उतरा और वे दोनों दम्पति दिव्य शरीर धारण कर उसमें विराजमान हो गए।
तब करुष ने उनसे स्वयं के उद्धार का उपाय पूछा। वे बोले – ” हे व्याध ! गौतमी गंगा (गोदावरी) के जल में स्नान करने से तुम्हारे सभी पाप नष्ट हो जाएँगे और तुम्हें अश्वमेध यज्ञ जैसा फल प्राप्त होगा । ‘
उनके परामर्शानुसार करुष ने गौतमी गंगा में स्नान किया, जिससे उसके समस्त पाप नष्ट हो गए और वह पुण्यवान होकर स्वर्ग चला गया। तभी से यह स्थान कपोत तीर्थ नाम से प्रसिद्ध हो गया। यह तीर्थ भक्तों को श्रेष्ठ फल प्रदान करने वाला है।
