मैं बचपन से ही बेहद नटखट थी व खाने की बेहद शौकीन। एक दिन पिताजी आए, उनके हाथों में कई पैकेट व एक हाथ में बड़ा सा बर्तन था। पिताजी ने माताजी को निर्देश दिए कि ये मिठाइयां व रसगुल्ले वे ननकू हलवाई के यहां से लाए हैं, जो देसी घी की स्वादिष्ट मिठाइयां बनाता था। रक्षाबंधन का दिन था व हम सभी मामा का इंतजार कर रहे थे, जिनकी फ्लाइट लेट थी, सो काफी समय हो गया, मेरे पेट में चूहे कूदने लगे और मैंने पूरे घर में मिठाइयां तलाशनी शुरू की। अचानक चीटों की एक लंबी लाइन रसोईघर से लगे कमरे में जा रही थी, मैं भी पीछे-पीछे हो ली और जल्द मुझे जगह पता चल गई। एक लंबी व ऊंची टेबल पर सारा सामान रखा हुआ था। मेरा दिमाग चलने लगा, एक लंबा स्टूल ले आई व उस पर किसी तरह से चढ़कर जैसे ही हाथों में सामने वाला बर्तन पकड़ना चाहा वो चिकना होने के कारण गिर कर टूट गया। चिकनाहट पॉटरी का वो बर्तन का ढक्कन ढीला होने से चीटें उसी में लगे हुए थे, उसी में रसगुल्ले थे, जो सारे फर्श पर बिखर गए व बर्तन में भी एक-दो रसगुल्ले रह गए थे, यानी बर्तन का टूटा हुआ हिस्सा। मैं रसगुल्ले निकाल कर मजे से खाकर टेलीविजन देने लगी। बाद में पता चलने पर सभी को मेरे ऊपर शक हुआ पर मैं मामा की लाडली भांजी थी, सो मामा ने ही आकर माज़रा जानकर मुझे बचा लिया, वरना वो पिटाई होती कि बस पूछे मत।
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