एक दिन देखा सुबह-सुबह इतवार के दिन खुशगवार दिन माताजी मुंह फुलाए बैठी थीं और पिताजी उन्हें मना रहे थे। मुझे समझ में आ गया कि वे फिल्म देखने जाने वाले हैं। मैं फटाफट गया, पिग्गी बैंक फोड़ा, अच्छे-खासे पैसे जमा हो गए थे, निकाला और उनके जाते ही दादा-दादी को व्यस्त देख निकल पड़ा। सिनेमा घर में माताजी व पिताजी टिकट खिड़की पर टिकट ले रहे थे, मैंने भी ले लिया और पापकॉर्न ले उन्हीं के पीछे बैठ गया। हूटिंग के समय मुझे बड़ा मजा आ रहा था और मैं माताजी-पिताजी पर पॉपकॉर्न डाल रहा था कि माताजी ने पिताजी को इशारा किया कि पीछे वाले शख्स यानी मैं उन्हें छेड़ रहा हूं, फिर क्या था पिताजी ने दो झापड़ मुझे मार दिए, मैं रोने लगा। फिल्म खत्म हो चुकी थी, लाइट में मुझे पहचानते ही माताजी का सारा गुस्सा काफूर हो चुका था। घर पहुंचने पर दादा जी ने मेरी अच्छी खबर ली और माताजी का फिल्म जाने वाला नाटक भी सामने आ गया, क्योंकि पिताजी उन्हें उनके मायके छोड़ने के बहाने घर से निकलते थे। मेरे ट््यूशन की मेम भी घर पर मेरा इंतजार कर रही थी। बाद में पिताजी ने सारे अरमान मुझे खूब पीटकर निकाले।
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