Hindi Love Story: “मुझे अब लगता है; हमें अलग हो जाना चाहिए।” बामुश्किल उससे कह पाया। दरअसल पिछले कुछ दिनों से मैं उससे ना तो वह अटैचमेन्ट महसूस कर पाता था, ना ही कोई बेचैनी, जिसे मोहब्बत कहा जा सके।
“तुम्हें लगता है, अलग होने के लिए कुछ बचा है?” मेरी उम्मीद के ख़िलाफ़ उसने सादे भाव से कहा।
“नहीं। कुछ नहीं बचा। एक डिनर रह गया है शायद, इसे आज पूरा कर लेते हैं।” मैंने भी हल्का महसूस करने और कराने की पूरी कोशिश की।
रेस्टोरेंट, मैं और वह हमारे आख़िरी डिनर के गवाह होने वाले थे। अपनी पूरी मुर्दानगी के साथ वह वैसे ही बैठी हुई थी। मैंने ख़ुद से ही बातें करना सही पाया। उम्मीदों का पिटारा भरने की बाज़ीगरी मेरे पास नहीं है, अब कितनी बेहूदगी और। हर दिन स्पेशल फील कराने और कभी उसकी, कभी अपनी मुसीबतों के बारे में समझाते, अपनी कितनी ज़िंदगी बरबाद करूँगा। ना शरीर सो पाता, ना मोहब्बत जाग पाती। कम समय बात करने का मतलब इग्नोरेन्स जो होता है। लेकिन इस सच पर्दे पर कब तक लटकाए रखूँ कि, मुझे उसके शरीर से उस भीनी ख़ुशबू का आना बंद हो चुका है, जो मुझे किसी और दुनिया में ले जाती थी। अजब सा गंधाता है उसका मुँह और शरीर। जब तक कोई अच्छा परफ्यूम ना लगा ले, उसका चूमना भी ज़बरदस्ती लगता है। यह समझ नहीं आता कि मोहब्बत ख़त्म होने से ख़ुशबू ख़त्म हो गई या ख़ुशबू ख़त्म होने से मोहब्बत। कुछ रिश्ता गंधो का भी हुआ करता है, जो हर किसी के पास रहने से इंकार करता है। यह गंध चिढ़ की भी अलग होती है क्या? मुझे लगता तो नहीं कि कभी इसकी ग़ैर-मौजूदगी अखरेगी। अखरे या नहीं, इसके साथ रहने से अखरना ज़्यादा मुनासिब और ख़ूबसूरत है। कम से कम थोड़े से उस वक़्त की तो क़द्र कर पाऊँगा, जिसे मैंने इसके साथ सच्चाई से जिया है। मैं हमसफ़र की चाह का मोहरा नहीं बन जाना चाहता; ना ही किसी बासी प्यार को पसंद करने वाला बेशर्म आदमी।
ये कहानी ‘हंड्रेड डेट्स ‘ किताब से ली गई है, इसकी और कहानी पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं – Hundred dates (हंड्रेड डेट्स)
