sahansheelta
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जापान के सम्राट् यामातो का एक राज्यमंत्री था। ओ-चो सान। उसका परिवार सौहार्द्रता के लिए बड़ा प्रसिद्ध था। यद्यपि उसके परिवार में लगभग एक हजार सदस्य थे, पर उनके बीच एकता का अटूट सम्बन्ध स्थापित था। सभी सदस्य साथ-साथ रहते और साथ-साथ ही खाना खाते थे। फिर उनमें द्वेष-कलह की बात ही क्या?

ओ-चो-सान के परिवार की सौहार्द्रता की बात यामातो के कानों तक पहुँची। सत्यता की जाँच करने के लिए एक दिन वे स्वयं उस वृद्ध मन्त्री के घर तक आ पहुँचे।

स्वागत-सत्कार और शिष्टाचार की साधारण रस्में समाप्त हो जाने पर उन्होंने पूछा, “महाशय! मैंने आपके परिवार की एकता और मिलनसारिता की कई कहानियाँ सुनी हैं। क्या आप बतलाएँगे कि एक हजार से भी अधिक व्यक्तियों वाले आपके परिवार में यह सौहार्द्रता और स्नेह- सम्बन्ध किस तरह बना हुआ है?”

ओ-चो-सान वृद्धावस्था के कारण अधिक देर तक बातें नहीं कर सकता था। अतः उसने अपने पौत्र को संकेत से कलम-दावात और कागज लाने के लिए कहा। उन चीजों के आ जाने पर उसने अपने काँपते हाथों से कोई सौ शब्द लिखकर वह कागज सम्राट यामातो की ओर बढ़ा दिया। सम्राट ने उत्सुकतावश कागज पर नजर डाली, तो वे चकित रह गये। कागज में एक ही शब्द को सौ बार लिखा गया था। सहनशीलता, सहनशीलता, सहनशीलता…”

सम्राट् को चकित और अवाक् देखकर ओ-चो-सान ने अपनी काँपती हुई आवाज में कहा, “महाराज! मेरे परिवार की सौहार्द्रता का रहस्य बस इसी एक शब्द में निहित है। ‘सहनशीलता’ का यह महामन्त्र ही हमारे बीच एकता का धागा अब तक पिरोये हुए है। इस महामन्त्र को जितनी बार दुहराया जाए, कम ही है!”

ये कहानी ‘ अनमोल प्रेरक प्रसंग’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएंAnmol Prerak Prasang(अनमोल प्रेरक प्रसंग)