हम अब सुधर जाएंगे-गृहलक्ष्मी की कहानियां
Hum Ab Sudhar Jaege

Hindi Kahaniya: दिन के साढ़े बारह बज रहें हैं रसोई घर के बाहर लगी घड़ी की तरफ देखते हुए रमा बुदबुदाईं…
” लंच टाइम होने को है और अब तक ना तो अंशु वंशु ने और ना ही उनके पापा ने नाश्ता किया है। हर इतवार को व्रत ही रख लें तो कम से कम मन को तसल्ली रहेगी कि इनके लिए खाना नहीं बनाना है पर नहीं… यह तो बस थोड़ी देर बाद… खाएंगे यही बात बार— बार दोहराएंगे। अभी एक डेढ़ बजे इनका नाश्ता होगा और साढ़े चार पांच बजे दोपहर का खाना यानी दिनभर किचन में लगी रह रमा, तेरी अपनी जिंदगी तो है ही नहीं और ना ही तेरे पास कोई दूसरा ही काम करने को है।”
चेहरे पर आए बालों को एक तरफ करके अपने बालों को खोल फिर से जूड़े में कसती हैं और उसका बुदबुदाना चालू है…”अभी जरा सा किचन से निकल कर नहाने जाऊंगी या कोई दूसरा काम करना शुरू करूंगी तभी इन तीनों को भूख प्यास लगेगी। फिर रमा रमा और मम्मी मम्मी चिल्लाएंगे तीनों। मेरी परेशानी को समझने वाला कोई है इस घर में, सब अपने में ही व्यस्त रहते हैं।”
“अकेले में किससे बाते कर रही हो रमा।” रजत ने अखबार से अपना चेहरा उठाते हुए रसोई घर की खिड़की की तरफ देखते हुए रमा से पूछा।
“सुनिए ना नाश्ता लेती आती हूंँ।” रमा साड़ी का आंचल कमर में खोंसती हुई रजत के पास गई जो आंगन में बैठकर अखबार पढ़ रहे थे।
” नहीं अभी नहीं… तुमको कौन चीज की हड़बड़ी है, अभी भूख नहीं है। जब लगेगी तो बोल देंगे। अच्छा जाओ तुम परोसकर ही रख दो वरना रसोईघर के बर्तनों और चूल्हे से बतियाती रहोगी। मैंने तो अभी मुंँह भी नहीं धोया है।”
” ठीक है।”
इतना कहकर रमा जाने को हुई कि तभी रजत बोले, ” अच्छा सुनो रमा एक कप कड़क मीठी अपनी स्पेशल वाली चाय बनाकर लाओ ना और साथ में अपनी भी लाना। दिन भर काम में लगी रहती हो थोड़ा बैठो धूप में।”

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” चाय अभी बनाती हूंँ,पर अभी आपके दोनों पुत्रों ने भी अन्न ग्रहण नहीं किया है तो मैं कैसे आराम से बैठूं।”
रमा किचन में आ चाय का पतीला चढ़ाते हुए खुद से कहती है..
बताओ दोपहर हो रही है और जनाब बिना मुंह धोए चाय पर चाय पिए जा रहें हैं। खाली पेट चाय कितनी नुकसान करेगी। डॉक्टर ने साफ बोला है सुबह नाश्ता करने के बाद बिना चीनी की चाय पीने को, पर इन्हें सुननी ही नहीं है किसी की बात। बस एक दिन बिना चीनी की चाय पीए । अब इन्हें मीठी चाय ही चाहिए ‌।
रमा के बेटे अंशु और वंशु दोनों अपने अपने मोबाइल में गेम खेल रहे थे उनके कमरे में आकर रमा कहती है, “आओ तुम दोनों डायनिंग टेबल पर नाश्ता तैयार है।”
“मम्मा आज छुट्टी के दिन भी आप क्यों परेशान रहती हो हमारे खाने के लिए। आज तो बाहर से ही कुछ ऑडर कर लेंगे।”
” सुनो तो तुम दोनों की पसंद के पनीर और आलू के परांठे और टमाटर की चटनी बनाई हैं। आओ ना खा लो, अभी गरम गरम हैं ठंडे हो जाएंगे तो अच्छे नहीं लगेंगे और बाहर का खाना बिल्कुल नहीं खाना है तुम दोनों ने समझे। भूल गए पिछले हफ्ते ही कैसे उल्टी कर रहे थे वही आॅनलाइन कुछ मंगवाकर जो खाया था।”
“हमें नहीं खाना वही बोरिंग खाना हर संडे को भी, आप खा लो। हम पिज्जा मंगवा रहे हैं। अब मत डिस्टर्ब करने आना, गेम खेल रहें हैं और हांँ जाते वक्त कमरे का दरवाजा लगा देना मम्मा।”
रजत जो अखबार पढ़ते समय रमा और बच्चों की बातें सुन रहा था, अखबार मोड़ कर एक तरफ़ रखता है और कुर्सी से उठकर वहां आता है। रमा के कंधे पर हाथ रखते हुए कहता है
“क्यों परेशान होती हो रमा तुम… बच्चों के पीछे। जब भूख लगेगी खा लेंगे और अभी दोनों ने पैसे लिए हैं मुझसे, मंगवा लेंगे कुछ। कभी तो किचन से खुद को छुट्टी दो।”
रमा सोच रही है… उन्हें क्या पता यह परेशानी नहीं है उसके लिए। उसे तो अपने बच्चों और पति के लिए खाना बनाने और उन्हें खिलाने में ही परम सुख की अनुभूति होती है। बस उसे चिंता सताती है कि छुट्टी वाले दिन बच्चे और पति समय पर खाते नहीं और बाहर का अनाप-शनाप खाने से तो कहीं उनकी तबियत ना खराब हो जाए। इसलिए हमेशा कोशिश करती है कि उनकी पसंद का ही कुछ बनाए।
आज सुबह से उसके सिर में भी दर्द हो रहा था और ठंड भी लग रही थी। रजत को बताकर उन्हें परेशान नहीं करना चाहती थी वैसे भी पूरे सप्ताह में बस एक रविवार ही तो होता है जब वो आराम से सोकर देर से उठते हैं और उठते ही अख़बार लेकर बैठ जाएंगे। पूरे सप्ताह की थकान मिटाने के लिए मात्र एक दिन तो उनके पास रहता है। वैसे रमा के नसीब में तो यह रविवार भी कहां लिखा है, इस दिन तो उसे और ज्यादा ही काम करना होता है।
रमा ने अपनी साड़ी का आंचल कमर में कस लिया और किचन में आकर चाय के खौलते पानी में पत्ती दूध और चीनी डाल गैस की आंच कम कर दी और जैसे ही आलू के परांठे और टमाटर की चटनी को दोनों थाली में रख, आम का आचार निकालने के लिए कदम बढ़ाए ही थे कि उसका पैर फिसल गया।
उसने मन में ठान लिया था कि कुछ भी हो अब बच्चों की मनमानी नहीं चलने देगी और उन्हें घर का ही खाना खिलाएगी।
उसका जहां पैर फिसला वहां पहले से पानी और बटर गिर गया था जिसे उसने सोचा था कि तीनों बाप बेटा को नाश्ता देने के बाद साफ कर देगी पर आज कुछ और ही होना था उसके साथ। जमीन पर गिरने से उसके सिर पर काफी चोट लगी जिस कारण वो बेहोश हो गई।
उसे जब होश आया, उसने खुद को अस्पताल के बिस्तर पर पाया। उसके एक हाथ और पैर में प्लास्टर और दूसरे हाथ में पाइप से होते हुए ग्लुकोज़ की बोतल सामने खड़ी उसे जैसे मुंह चिढ़ा रही थी…
देखा आखिर बिस्तर पर ला ही दिया ना तुझको…
उसका सिर भारी भारी लग रहा था, उसने उठ कर बैठने की कोशिश की तो पति रजत ने उसे तकिए का सहारा देकर बिठाया।
पति को अपने पास बैठा देखकर रमा ने पूछा “आपने खाना खाया।”
दोनों बेटे मुस्कुरा दिए और उनकी आंखों से झलकते आंसू रमा से छुप ना पाए।
“तुम दोनों ने कुछ खाया।”
“हां मम्मा आप चिंता मत कीजिए, हम तीनों ने खा लिया है और देखिए आज मैंने आपके लिए मटर वाली खिचड़ी बनाई है।” रमा के छोटे बेटे वंशु ने कहा और उसे खिलाने लगा।
“वाह खिचड़ी तो बहुत अच्छी बनाई है। “
“मां आप हमारे लिए हमेशा कुछ ना कुछ बनाती रहती हो और हमारा कितना ध्यान रखती हो अब हमारी बारी है। आप बिल्कुल आराम करोगी।” अंशु भी उसके पास बैठ गया।
“बिस्तर पर कब तक पड़ी रहूंगी, बहुत सारा काम बाकी है अभी। घर भी गंदा है लोग आएंगे तो क्या कहेंगे। “
“कुछ नहीं कहेंगे रमा। तुम बिल्कुल टेंशन नहीं लोगी अब।
हम तीनों तुमसे माफी मांगते हैं जो तुम्हें इतना परेशान करते थे।”
“हां मां माफ कर दो हमें। अब हम कभी तुमको तंग नहीं करेंगे। इस एक दिन में ही समझ गए हैं कि खाना बनाना और घर संभालना आसान नहीं होता।”
“चलो कुछ तो अच्छा हुआ मेरे गिरने से।” रमा ने मुस्कुराकर कहा।
रमा दो दिन के बाद घर आ गई उसके दाएं हाथ की कलाई की हड्डी चकनाचूर हो गई थी जिसे ठीक होने में काफी समय लगेगा, ऐसा डॉक्टर ने कहा था। उसके सिर में भी चोट लगी थी जिसके कारण सिर के उस हिस्से के बालों को काटना पड़ा स्टिच लगाने के लिए।
वो तीन दिन में ही काफी कमजोर हो गई थी, बिस्तर पर ही तकिए के सहारे उसे रजत बिठा देते और अपने हाथों से खाना खिलाते । उन्होंने हफ्ते भर की छुट्टी ली पर जब बार बार ऑफिस से फोन आने लगा तो उन्हें जाना पड़ा। अब वो कुछ घंटों के लिए ही जाते और घर का सारा काम अब रजत को संभालना पड़ता जिसमें उसके दोनों बेटे उसकी मदद करते। बाहर से खाना मंगवाना भी तीनों ने बिल्कुल बंद कर दिया था क्योंकि वो जानते थे रमा को बिल्कुल पसंद नहीं था।
अंशु और वंशु अब ऐसा कुछ नहीं करते जिससे रमा को गुस्सा आए या जो उसे पसंद नहीं है। वो हर हाल में अब अपनी मम्मी को खुश देखना चाहते थे।
मोबाइल पर गेम खेलना भी दोनों ने बिल्कुल छोड़ दिया था वो रमा के पास बैठकर अपना होमवर्क बनाते और कहानी की किताब से कहानियां पढ़कर सुनाते।
रमा अपने शरीर से लाचार हो गई थी, वो अपना दायां हाथ बिल्कुल नहीं उठा पातीं थी। पैर में भी चोट लगने से हड्डी खिसक गई थी अपनी जगह से , प्लास्टर लगने के कारण वो बिना सहारे के खड़ी नहीं हो पाती थी।
कमजोरी के कारण थोड़ी देर बैठने पर ही चक्कर आने लगते।
,, पर वो खुश थी अपने बच्चों और रजत के व्यवहार में आए परिवर्तन को देखकर। उसे बुरा लगता था यह देखकर कि रजत पर काम का बोझ बढ़ गया था, ऑफिस घर हॉस्पिटल और मेहमानों की आवभगत… जबसे वो गिरी और बीमार पड़ी अड़ोस-पड़ोस के लोग उसे देखने आते तो चाय नाश्ता करके ही जाते।
कभी कभी रमा को बड़ा गुस्सा आता उन पर कैसे पड़ोसी हैं जो मेरी ऐसी हालत में भी सिर्फ चाय नाश्ते के लिए यहां आते हैं। किसी से यह तो नहीं हुआ कभी कि एक समय का खाना बनाकर ही मेरे बच्चों के लिए लेतीं आएं।
“मम्मी आप परेशान मत रहा करो, चाय बनानी सीख ली है और चावल दाल भी बनाना आ गया है। अब हम बाहर का पिज्जा बर्गर कभी नहीं खाएंगे आपका हाथ ठीक हो जाएगा तो हम आपके बनाए आलू परांठे खाएंगे। पापा को बनाने नहीं आते, कल बनाया था तो पता ही नहीं चल रहा था क्या खा रहें हैं, आधे जले हुए और आधे कच्चे।” अंशु बोला तो रमा ने उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरा।

रजत रमा के बालों में हल्के हाथों से तेल लगाकर बाल बांधते हुए मन ही मन रमा से बार बार माफी मांगता। बच्चों को छूट मैंने ही दी थी जिस कारण वो मम्मी की कोई बात नहीं मानते थे। आज रमा की इस हालत का जिम्मेदार मैं ही हूं। कभी घर के किसी काम में मदद नहीं करवाता था बेचारी अकेली दोनों बच्चों को संभालती, हम सबके लिए खाना बनाती, राशन सब्जी लेने भी वो खुद ही जाती। जब कभी कहती भी थी तो मैं टाल दिया करता था। कई बार कहा भी करती थी एक मेड रखवा दीजिए, अब झाड़ू पोंछा करने से सांस फूल जाती है।
मैं मजाक में हर बार उसकी बात टाल जाता, अरे! तुम तो मोटी हो रही हो देखो तोंद बाहर आ रही है। झाड़ू पोंछा लगाने से मोटापा दूर रहेगा।

मेरे रिश्तेदारों के आने पर भी रमा के चेहरे पर कभी शिकन नहीं देखी, मन से हमेशा सबका स्वागत करती। सबकी पसंद नापसंद का हमेशा ध्यान रखती।
किचन तो उसकी सबसे पसंदीदा जगह थी, कितना सजा संवरा रहता था, बस उस दिन हमारे कारण ही तो वो परेशान थी तभी तो उसे फर्श की फिसलन नहीं दिखी।
अब तो लगता ही नहीं कि यह वही रमा की रसोई घर है।
कितनी भी कोशिश करता हूं वैसा रख ही नहीं पाता।
काम वाली से भी बात की है कल से ही आना शुरू कर देगी, एक दिन की साफ सफाई और दो समय का खाना बनाने के आठ सो रुपए के हिसाब से बोल रही थी। रमा को पता चलेगा महीने के चौबीस हजार… देने होंगे तो किसी हालत में काम वाली नहीं लगवाएगी।
सच सालों से उसने मेरे हर महीने के कितने पैसों की बचत की, यह आज जान रहा हूं। पहले उसके काम की ना तो कभी तारीफ की और ना ही उसकी वैल्यू ही समझी। परिवार को संभालने के लिए उसने अपनी नौकरी छोड़ दी अपने सारे शौक छोड़ दिए । दिन रात वो सिर्फ हमारी चिंता करती रही।
अब पश्चाताप हो रहा है। बस भगवान करे वो जल्दी ठीक हो जाए पर अब खुद से वादा करता हूं उसको कभी परेशान नहीं होने दूंगा।
कल उसके जन्मदिन पर कुछ ऐसा करना होगा जिससे वो खुश हो और हमें माफ कर दे।
ऑफिस से लौटते वक्त फल और सब्जियों के साथ रजत प्रेमचंद की कहानियों की किताब मानसरोवर का पूरा सेट ले आया और रमा के जन्मदिन पर उसको उपहार देने के लिए। उसने दोनों बच्चों की मदद से रात को जब रमा सो रही थी तब उसका कमरा सजाया। बच्चों ने अपने हाथ से बहुत सारे कार्ड्स बनाए। हर कार्ड में सॉरी मम्मा लिखा था। अंशु की ड्राइंग बहुत अच्छी थी और वंशु की हैंडराइटिंग बहुत ही सुंदर।
तीनों ने मिलकर यूट्यूब से सीखकर एक केक बनाया और उसे सजाया।
रमा की सुबह जब आंख खुली तो अपने कमरे की सजावट और रजत के साथ बच्चों को जन्मदिन की शुभकामनाएं पाने के बाद उनके कान पकड़ कर उठक बैठक कर माफी मांगने के उपक्रम में भावविभोर हो गई और उसकी आंखें झलक उठी।
हर साल किसी को याद ही नहीं रहता था उसका जन्मदिन और इस साल जब वो खुद भूल गई थी तब पति और बच्चों ने सरप्राइज दिया। हम अब सुधर जाएंगे मां, आपको अब कभी परेशान नहीं करेंगे।
रमा ने दोनों बच्चों के माथे को चूमा और रजत की तरफ प्यार भरी नजरों से देखा। तुम तीनों में ही मेरा पूरा संसार है, तुम सबकी इस दुर्घटना में कोई ग़लती है ही नहीं । यह तो मात्र संजोग था, ये अनहोनी होनी थी सो हो गई इसके लिए तुम तीनों को माफी मांगने की कोई जरूरत नहीं। पर यह देखकर अच्छा लग रहा है कि तुम तीनों सुधर गए । एक मुस्कान के साथ रमा ने अपने बाएं हाथ से केक काटा और पहले रजत फिर दोनों बच्चों को खिलाया।