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गोपाल कृष्ण गोखले अत्यंत निर्धन छात्र थे। जब वे मिडिल क्लास के छात्र थे, तभी एक इंसपेक्टर उनके वर्ग निरीक्षण में आए और छात्रें से बारी-बारी से पूछा कि ‘अगर तुम्हे राह में गिरा हुआ करोड़ों का हीरा मिल जाए, तो तुम उसका क्या करोगे?’ कुछ छात्रें ने उससे घर-मकान बनाने, कुछ ने जमीन-जायदाद खरीदने, कुछ ने रेल, जहाज, मोटर खरीदने तो कुछ ने मील उद्योग आदि स्थापित करने की योजना बताई।

पर जब गोखले की बारी आई हो उन्होंने कहा- “सर, मैं सबसे पहले उसके मालिक को ढूंढकर उसके पास हीरा भिजवाने का उपाय करूंगा। अगर उसका हकदार नहीं मिला, तो उस हीरे की मूल्य राशि में से स्कूल, कॉलेज, अस्पताल और गरीब और अनाथों के लिए आश्रम आदि बनवा दूँगा।” इस उत्तर को सुनकर इंस्पेक्टर ने गोखले की पीठ थपथपाते हुए कहा कि श्यह बालक एक दिन अवश्य ही महापुरुष होगा!”

सारः होनहार का भविष्य प्रारंभ में ही दिखने लगता है।

ये कहानी ‘इंद्रधनुषी प्रेरक प्रसंग’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएंIndradhanushi Prerak Prasang (इंद्रधनुषी प्रेरक प्रसंग)