Teacher’s Day Special: शिक्षक हम सभी के जीवन को बेहतर बनाने में अहम भूमिका निभाते हैं। वे छात्रों को गढ़ कर सफलता के शीर्ष तक पहुंचने में सहायक होते हैं और राष्ट्र के निर्माण में अहम भूमिका निभाते हैं। हमारे देश में डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन, रवीन्द्रनाथ टैगोर जैसे कई शिक्षक हुए हैं जिन्होंने अध्यापन-क्षेत्र के साथ राष्ट्र निर्माण में मिसाल कायम की थी। इसी वजह से शिक्षकों के सम्मान में हमारे देश में हर वर्ष 5 सितंबर का दिन शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। जबकि यूनेस्को ने 5 अक्तूबर को वर्ल्ड टीचर्स डे घोषित किया था। जिसके तहत पाकिस्तान, मालदीव, कुवैत, मॉरीशस, ब्रिटेन, रूस जैसे देश 5 अक्तूबर को टीचर्स डे मनाते हैं। आइए इस मौके पर ऐसे ही कुछ शिक्षकों के बारे में जानें-
डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन
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देश के पहले उपराष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति रहे डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन महान शिक्षाविद थे। उन्हें 1954 में स्वतंत्रता सेनानी सी राजगोपालाचारी और भौतिकशास्त्री डॉ सीवी रमन के साथ सबसे पहले भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। 5 सितंबर 1888 को जन्मे राधाकृष्णन के पिता की ख्वाहिश थी कि उनका बेटा अंग्रेजी सीखे और शिक्षक बने। लेकिन राधाकृष्णन ने अपनी जिद से पढ़ाई जारी रखी। उन्होंने फिलॉसफी में एमएए किया और वर्ष 1916 में मद्रास रेजिडेंसी कॉलेज में फिलॉसफी के असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में पढ़ाना शुरू किया। कुछ साल बाद ही वे प्रोफेसर बन गए। 1949 से 1952 तक वे रूस में भारत के राजदूत पद पर भी रहे। वर्ष 1952 में उन्हें भारत का पहला उपराष्ट्रपति चुना गया और बाद में वे राष्ट्रपति बने। अध्यापक के रूप में सर्वपल्ली राधाकृष्णन छात्रों के बीच बहुत लोकप्रिय रहे। जब वे देश के राष्ट्रपति बने तो उनके कुछ छात्रों ने उनका जन्मदिन मनाने की इच्छा व्यक्त की। जबकि राधाकृष्णन ने उन्हें अपना जन्मदिन शिक्षक दिवस के रूप में मनाने की सलाह दी। उनका मानना था कि शिक्षक वह नहीं जो छात्र के दिमाग में तथ्यों को जबरन ठूंसे, बल्कि असल शिक्षाक वह है जो उसे आने वाले कल की चुनौतियों के लिए तैयार करे। तभी से उन्हें सम्मान देने के उद्देश्य से भारत में उनकेे जन्मदिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है।
गोपाल कृष्ण गोखले
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महात्मा गांधी गोपाल कृष्ण गोखले को अपना राजनीतिक गुरू मानते थे। गोखले एक महान समाज सुधारक और शिक्षाविद थे। उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को भी अनुकरणीय नेतृत्व प्रदान किया। उनका मानना था कि भारतीयों को पहले शिक्षित होना जरूरी है, तभी नागरिक के तौर पर वे आजादी हासिल कर पाएंगे। इसी वजह से स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल होने से पहले उन्होंने बतौर शिक्षक अपना जीवनयापन किया। वे पुणे के प्रतिष्ठित फर्ग्युसन कॉलेज के संस्थापक सदस्यों में से एक थे। बचपन में शिक्षा प्राप्त करने में उन्हें अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था। जिसकी वजह से वे शिक्षा की अनिवार्यता और उसे निःशुल्क शिक्षा व्यवस्था पर जोर देते थे। भारतीय शिक्षा के विस्तार के लिए गोखले ने वर्ष 1905 में उन्होंने सर्वेंट्स ऑॅफ इंडिया सोसाइटी और 1908 में रानाडे इंस्टीट्यूट ऑफ इकोनॉमिक्स की स्थापना की थी। दूर-दराज के इलाके तक पहुंचने के लिए उन्होंने मोबाइल लाइब्रेरीज़ और मोबाइल स्कूलो का चलन भी शुरू किया।
गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर
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सिर्फ कवि, गीतकार, लेखक के रूप में जाने जाने वाले टैगोर देशवासियों में स्वतंत्रता की अलख जगाने वाले सेनानी भी थे। अक्तूबर 1905 में जब लार्ड कर्जन ने बंगाल को 2 भागों में बांटने का प्रयास किया, तो इसके विरोध में रवींद्रनाथ टैगोर ने मोर्चा संभाला था। उन्होंने गांव के जीवन को बहुत करीब से देखा था। ग्रामीण जीवन में फैली अशिक्षाा को देखकर उन्होंने बंगाल में शांति निकेतन की स्थापना की। जहां गांव के बच्चों को पेड़ों के नीचे खुले वातावरण में व्यवहारिक शिक्षा देने का चलन शुरू किया। ऐसी शिक्षा देने वाला यह भारत का पहला स्कूल था। उनके मन में इच्छा थी कि यहां का माहौल ऐसा होना चाहिए जिसमें शिक्षक और विद्यार्थी के बीच कोई दीवार न हो। उम्र और पद को भूलकर सब एक साथ मिलकर काम कर सकें। जहां शिक्षा का मतलब किताबों तक ही सिमट कर न रह जाए। व्यवहारिक शिक्षा के प्रति टैगोर के मन में लगाव को देखकर महात्मा गांधी ने उन्हें ‘गुरूदेव‘ की उपाधि दी थी।
आचार्य कृपलानी
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जीवतराम भगवानदास कृपलानी को आचार्य कृपलानी के नाम से जाना जाता है। वे एक स्वतंत्रता सेनानी, भारतीय राजनीतिज्ञ होने के साथ एक शिक्षक भी थे। स्वतंत्रता आदोलन में शामिल होने से पहले 1912-1927 तक उन्होंने अध्यापन कार्य किया था। पहली बार वे मुजफ्फरपुर में प्रोफेसर बनें। 1917 में गांधी जी से प्रभावित होकर स्वतंत्रता आदोलन मे शामिल हो गए। माना जाता है कि उस समय बंगाल से भागकर आए क्रांतिकारियों को सुरक्षित स्थान मुहैया कराने से लेकर आर्थिक मदद तक की बंदोबस्त कराने में मदद करते थे। राष्ट्रहित के लिए वे अपनी तनख्वाह की आधी से ज्यादा राशि दे देते थे। 1922 में वे गांधीजी द्वारा स्थापित गुजरात विद्यापीठ में अध्यापन कार्य करने लगे जहां उन्हें ‘आचार्य‘ उपनाम प्राप्त हुआ।
सावित्रीबाई फुले
![Savitri Bai Phule](https://i0.wp.com/grehlakshmi.com/wp-content/uploads/2023/09/SIP-2023-09-04T162159.770.jpg?resize=780%2C439&ssl=1)
सावित्रीबाई फुले को वर्ष 1848 में लड़कियों और महिलाओं को शिक्षित करने की दिशा में सराहनीय कदम उठाए थे। उन्होंने अपने पति ज्योतिबा फुले और फातिमा शेख के साथ मिलकर देश के पहले कन्या विद्यालय की स्थापना की थी। उस स्कूल में पढ़ाने के लिए शिक्षित नहीं मिल रहे थे। 17 साल की उम्र में उन्होंने पढ़ाना शुरू किया। उनके अध्यापन कार्य के लिए हालांकि लोग उनका विरोध करते थे, लेकिन सावित्रीबाई ने हार नहीं मानी और देश की पहली महिला शिक्षिका होने का गौरव हासिल किया।
डॉ एपीजे अब्दुल कलाम
![Dr. APJ Abdul Kalaam](https://i0.wp.com/grehlakshmi.com/wp-content/uploads/2023/09/SIP-2023-09-04T162523.784.jpg?resize=780%2C439&ssl=1)
डॉ एपीजे अब्दुल कलाम को पूरी दुनिया एक बेमिसाल शिक्षक के रूप में याद करती है। मिसाइल मैन के नाम से जाने वाले भारत के पूर्व राष्ट्रपति और महान वैैज्ञानिक कलाम के जीवन से असल में यह सीख मिलती है कि किसी राष्ट्र के विकास में शिक्षक की भूमिका क्या होती है। वे देश के सर्वाेच्च स्थान राष्ट्रपति पद पर पहुंचने के बाद भी शिक्षक बने रहे। उनके भीतर एक शिक्षक हमेशा बसता था और छात्रों से विशेष लगाव था। राष्ट्रपति पद से सेवानिवृत्त होने बाद शिक्षण कार्य करने लगे थे। राष्ट्रपति पद पर होने के बावजूद अध्यापन कार्य जारी रखना उनके शिक्षक के प्रति सम्मान को दर्शाता है। वे शिक्षक को समाज का सर्वाधिक महत्वपूर्ण अंग मानते थे- शिक्षण एक महान पेशा है जो किसी व्यक्ति के चरित्र, क्षमता और भविष्य को आकार देता है। 1999 में वैज्ञानिक सलाहकार पद से सेवानिवृत होने के बाद उन्होंने एक लाख छात्रों खासकर हाई स्कूल के छात्रों से संवाद करने का लक्ष्य बनाया। उनका उद्देश्य बच्चों के मन में भारत के विकाास की भावना जगाना था।
विक्रम साराभाई
![Vikram Sarabhai](https://i0.wp.com/grehlakshmi.com/wp-content/uploads/2023/09/SIP-2023-09-04T162705.915.jpg?resize=780%2C439&ssl=1)
भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक होने के साथ-साथ एक बेहतरीन शिक्षक भी थे। उन्होंने अलग-अलग क्षेत्रों में कई शिक्षण संस्थाओं की स्थापना की जिनमें इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट, अहमदाबाद भी एक है। वे परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष भी रहे और भारतीय उपग्रहों के निर्माण के लिए परियोजना की शुरूआत की। जिसके परिणामस्वरूप पहला भारतीय उपग्रह आर्यभट्ट रूसी कॉस्मोड्रोम से 1975 में अंतरिक्ष में स्थापित किया गया। वे विज्ञान की शिक्षा में दिलचस्पी रखते थे और 1966 में सामुदायिक विज्ञान केंद्र की स्थापना अहमदाबाद में की । आज यह केंद्र विक्रम साराभाई सामुदायिक विज्ञान केंद्र के नाम से जाना जाता है।
प्रोफेसर सतीश धवन
![Professor Satish Dhawan](https://i0.wp.com/grehlakshmi.com/wp-content/uploads/2023/09/SIP-2023-09-04T162849.796.jpg?resize=780%2C439&ssl=1)
वे भारत के प्रसिद्ध रॉकेट वैज्ञानिक थे। देश के अंतरिक्ष कार्यक्रम को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाने में इनका महत्वपूर्ण योगदान था। वैज्ञानिक होने के साथ-साथ प्रोफेसर धवन एक कुशल शिक्षक भी थे। उन्हें डॉ विक्रम साराभाई के बाद देश के अंतरिक्ष कार्यक्रम की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। बाद में इसरो के अध्यक्ष भी नियुक्त हुए थे। उन्होंने इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस में कई सकारात्मक बदलाव किए थे। इन्हें भारतीय प्रतिभाओं पर बहुत भरोसा था। संस्थान में देशी-विदेशी युवा प्रतिभाओं को शामिल किया। कई नए विभाग शुरू किए और छात्रों को विविध क्षेत्रों में शोध के लिए प्रेरित किया। उनके प्रयासों से ही संचार उपग्रह इनसैट, दूरसंवेगी उपग्रह आइआरएस और ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान पीएसएलवी का सपना साकार हो पाया था। आज इसरो जिन ऊंचाइयों पर है- उसके पीछे शिक्षक के रूप में प्रोफेसर धवन की अहम् भूमिका रही है।