जब होली की धूम मची थी—हाय मैं शर्म से लाल हो गई: Holi Funny Story
Jab Holi ki Dhoom Machi Thi

Holi Funny Story: मुझे आज भी याद है वह होली जब मैं दसवीं कक्षा में थी, और बोर्ड के एग्जाम थे,तो मैंने तय किया था कि इस बार होली नहीं खेलूंगी। एक तो मुझे कुछ रंगों से डर लगता था एक इम्तिहान की वजह से कि कहीं बीमार न हो जाऊं।
वह बचपन की होली जब भी याद आती है तो होठों पर अपनी नादानी को याद कर मुस्कुराहट स्वयं ही तैर जाती है।
सुबह से ही होली की धूम मची थी, पूरे मोहल्ले के 20 -25 बच्चे बच्चे एक साथ इकट्ठा होकर घूम घूम कर होली खेल रहे थे ।जो घर में छिपे थे उन्हें ढूंढ ढूंढ कर निकाल कर होली के रंगों से रंग देते,और फिर हो हल्ला करते हुए अगले शिकार के लिए निकल जाते थे।किसी के हाथ में गुंझियां थी, किसी के हाथ में पिचकारी थी,कोई गहरे हरे काले रंगों लेकर तैयार था,सब मस्त होकर सिर्फ होली खेलने में लगे थे ।

मुझे बहुत डर लगता था इसलिए मैंने नीचे का गेट बंद करके ऊपर आकर छत पर से ही सब की होली देखने का मन बना लिया था।मां से कह दिया कि किसी भी बच्चे को अंदर न आने दे।
लेकिन बच्चे कहां मानने वाले थे ,छतों से होते हुए सभी हमारी छत पर उतर आए, मैं छत पर बने एक छोटे से अपने कमरे में छिप गई ,उन्होंने बहुत कोशिश करी, पर मैं न निकली।
तब मां ने बहुत समझाया कि बाहर आजा कोई तुझे रंग नहीं लगाएगा,तब मैं बाहर आई और एक डंडा उठा लिया और कहा देखूं कौन मुझे रंग लगाता है, उसी टोली में एक छोटा सा दुबला पतला सा लड़का था जो मुझे रंग लगाना चाहता था।
वह आगे आया मैंने उसे धमकाया, रंग लगा कर  तो दिखा, बहुत पिटेगा वह डर गया ,थोड़ा पीछे हटा ।
सभी बच्चे बोले, छोड़ो नहीं खेलना चाहती तो रहने दो मैंने भी सोचा कि अब क्या होली खेलेंगे मैंने डंडे की पकड़ ढीली छोड़ दी इतने में ही वही लड़का आया और उसने भर के मुट्ठी रंग मुझ पर डाल दिया और बोला ले अब मार ले …
इतना कहना था  कि छत पर खड़े सभी लोग मेरी मां ,चाची पड़ोसी, मोहल्ले की औरतें और सभी बच्चे हंसने लगे, मैं थोड़ा सा झेंप गई, और शर्म से  लाल हो गई,लेकिन फिर कुछ ही देर बाद सब कुछ भूलकर सबके साथ होली खेलने लगी…

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