Hindi Funny Story: गर्मियों की छुट्टीयों के दिन थे, बुआ घर आई थी, सभी रात को खाना खाने के बाद छत पर बातों में मशगूल थे, छत साफ करके पानी का छिड़काव करके बिस्तर लगाए जा चुके थे, पानी का घड़ा और गिलास भी स्टूल पर सजाया जा चुका था, हाथ के पंखे सभी के बिस्तर के पास रख दिए गए थे, कुछ इस तरह से ही पहले छुट्टियों का मजा आता था, आज की तरह नहीं कि आए मिले और चल दिए। सब पहले 15 दिन से कम तो छुट्टियां नानी के घर नहीं मनाते थे।
अगले दिन के लिए प्लान बनने लगे किसको क्या क्या करना है, किस को क्या क्या लाना है ,सब तय हो चुका था। मांँ को तो चौका संभालना था, बुआ को ठंडाई का काम सौंपा गया, बड़े भाई अनमोल को बाजार से फल सब्जी लाने का काम सौंपा गया। अब बाबू जी ने मुझे पूछा कमल तू क्या करेगा? तू ऐसा करना राहुल (बुआ के बेटे के बारे में बोला) के साथ जाना और मनोहर चुस्की वाले से सबके लिए चु्स्की के कुल्हड़ बनवा कर ले आना। हमारी यहां के चुस्की वाले कुल्हड़ बहुत मशहूर थे, उनके बिना तो छुट्टियों का आनंद ही नहीं आता था।
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बाबूजी का इतना कहना था मैं मन ही मन बहुत खुश हुआ क्योंकि चुस्की वाले कुल्हड़ मुझे भी बहुत पसंद थे, वैसे भी मुझे घर में मीठे का चैंटा ही बुलाते थे। रात से ही अगली सुबह का इंतजार होने लगा, सुबह मांँ ने एक ट्रे, जिसमें अच्छे से 20 कुल्हड़ आ जाते थे ,देकर कहा मनोहर चाचा से बाबू जी का नाम ले देना कि सारे कुल्हड़ अच्छे से रबड़ी डालकर बनाएं। रास्ते भर मैं राहुल पर अपनी मास्टरी छांटता हुआ जा रहा था जैसे कि कुल्हड़ लाने में तो मैंने पीएचडी कर रखी है, रास्ते में पान की दुकान आने पर मैंने कहां रात को सभी के लिए पान लेने भी आएंगे।
मनोहर चाचा की दुकान आने पर मैंने उनसे 20 कुल्हड़ चुस्की वाले बनाने के लिए कहा और इशारों ही इशारों में अपने कुल्हड़ को स्पेशल बनाने के लिए बोला।
रास्ते भर मैं उस एक रबड़ी वाली कुल्हड़ड़ की लालसा में सोचता रहा कि जाते ही मां से कहूंगा कि ये मेरा चुस्की वाला कुल्हड़ है, इसे मुझे दे दे ,लेकिन जाते ही हुआ इसका उल्टा, बुआ ने ट्रे ले ली और सभी को चुस्की वाले कुल्हड़ देने लगीं मेरा मन अब रोने को था, तभी बुआ मेरे पास आई और कहा यही है ना तेरा चुस्की वाला स्पेशल कुल्हड़ …
बुआ आगे बोली बेटा ज्यादा लालच बुरी बला है, आगे से जिंदगी में हमेशा ध्यान रखना। कितना खूबसूरत लम्हा था जब बुआ ने बातों ही बातों में इतनी गहरी बात समझा दी।
बस फिर क्या था , मेरी छोटी सी लालसा पूरी हो गई और माँ और बुआ मुस्कुराने लगीं, और बुआ ने मेरे गाल पर हल्की सी चपत लगाते हुए कहा, शैतान कहीं का, और मेरे गाल चोरी पकड़े जाने पर लाल हो गये।
सच उन दिनों वो नानी मामा बुआ मौसी के साथ की यादें कितनी मीठी थी,आज भी लगता कि काश
फिर से वो लम्हे जी पाऊं,
फिर से मैं बच्चा हो जाऊं।
पंख लगे मुझे यादि तो
नानी के घर उड़ जाऊं।
वो खट्टे मीठे आम तोड़ने,
लुक्का छुप्पी का वो खेल
नानी के हाथों के वो लड्डू खाना,
मस्त गुडडा गुड़िया की शादी का खेल।
