Hindi story for kids ’12 Yatri’

यह कई हज़ार वर्ष पुरानी कहानी है, या फिर शायद उससे भी ज़्यादा। आठ घोड़ों वाली एक बंद गाड़ी एक अनजान शहर में आकर रुकी। रात के बारह बजने वाले थे और बाहर बहुत ठंड थी। गाड़ी के सारथी ने अंदर बैठे यात्रियों से कहा- ‘आपकी मंज़िल आ गई। गाड़ी से उतर जाइए।’

उसने गाड़ी का दरवाज़ा खोल दिया। उसने गिना- ‘एक, दो, तीन, चार, पाँच, छः, सात, आठ, नौ, दस, ग्यारह, बारह।’ पूरे बारह यात्री थे अंदर। सब बड़े अजीब थे। हर एक के कपड़े और चीजें दूसरों से बिल्कुल अलग।

यात्री एक-एक करके उतरने लगे। सबसे पहले ऊनी कपड़ों में लिपटा एक लंबा लड़का बाहर आया। सिर पर टोपी थी और हाथों में बड़ी-बड़ी पतंगें थीं। गाड़ीवान ने पूछा- ‘नाम?’

लड़का बोला- ‘जनवरी।’

‘हाथ में क्या सामान है?’

‘पतंग, मकर-संक्राति के लिए।’

गाड़ीवान ने अपनी किताब में उसके नाम पर निशान लगाया और उसे जाने दिया।

फिर आई एक छोटी-सी लड़की। सभी यात्रियों में सबसे छोटी। उसने बताया- ‘मेरा नाम है फरवरी’

वह बसंती रंग के कपड़े पहने हुए थी और बसंती फूलों का एक गुच्छा हाथ में लिए हुए थी। फूल उसने गाड़ीवान को दे दिए और बोली- ‘ये फूल सबको बाँट देना।’

उसके बाद लाल, पीले, हरे रंगों से रंगा हुआ एक व्यक्ति बाहर आया। उसकी मुट्ठियों में गुलाल भरा हुआ था। गाड़ीवान ने जल्दी से उसका नाम लिखा और उसे जाने दिया। उसने नाम बताया-‘मार्च’ और वह गुलाल को इधर-उधर फेंकता हुआ चला गया।

चौथा यात्री बड़े ही हँसमुख स्वभाव वाला था। सिर पर पगड़ी थी, जैकेट, कुर्ता और सलवार पहने हुए था। काली दाढ़ी और होठों पर एक पंजाबी गीत था।

उसने नाम बताया- ‘अप्रैल सिंह।’

वह गा रहा था, ‘बैसाखी है ओए बैसाखी है।’ वह ओए-ओए और बल्ले-बल्ले करता हुआ चला गया।

पाँचवाँ यात्री ‘मई कुमार गरम और छठी यात्री ‘जून देवी गरम’ पति-पत्नी थे। दोनों को देखकर लगता था कि जैसे गरमी के कारण दोनों का बुरा हाल था। उनके सामान में आइसक्रीम, ठंडा पानी, पंखे …… यही सब था। दोनों साथ-साथ गाड़ी से उतरे। पंखा झलते हुए वे चले गए।

गाड़ीवान ने ऐसे विचित्र यात्री पहले कभी नहीं देखे थे।

अब सातवाँ यात्री बाहर आया। छोटा-सा बालगोपाल। सिर पर मयूर-पंख का मुकुट और हाथ में बाँसुरी थी उसके।

गाड़ीवान बोला- ‘अपना नाम तो बताओ।’

‘मेरा नाम है-जुलाई। मैं जाऊँ? मुझे जन्मदिन की तैयारी करनी है।’

इतना कहकर, वह दौड़कर चला गया।

उसके बाद एक सुंदर लकड़ी बाहर निकली। उसने सफ़ेद रंग का कुर्ता पहना हुआ था। वह हरी सलवार और केसरिया दुपट्टा ओढ़े हुए थी। हाथ में एक सुंदर राखी पकड़कर वह गाड़ीवान के पास आई।

‘तुम्हारा क्या नाम है?’ गाड़ीवान ने पूछा।

‘अगस्त।’ वह गर्व से बोली।

‘गाड़ीवाले भैया, मुझे अपने भैया को राखी बाँधनी है। जल्दी से जाने दो न मुझे!’ यह कहकर वह चली गई।

नौंवी यात्री भी एक महिला थी। लाँगदार साड़ी पहने हुए थी। हाथों में लड्डुओं से भरा हुआ थाल था। वह गाड़ीवान से बोली, ‘ए भैया, जरा मेरा नाम लिखो न, मेरे गणपति बप्पा का जन्मदिन है, उनके लिए लड्डू लाई हूँ।’

‘बोलो नाम। गाड़ीवान ने कहा।’

‘सितंबर बाई।’ लिखो मेरा नाम, ‘सितंबर बाई।’

अब ये दसवाँ यात्री कोई राजकुमार था-सिर पर मुकुट, हाथ में धनुष, माथे पर तिलक और चेहरे पर मुस्कान!

‘आप कौन हैं श्रीमान?’ गाड़ीवान ने आदर से पूछा।

‘हम हैं कुमार अक्टूबर, बुराइयों को ख़त्म करना हमारा काम है। रावण तो ख़त्म हो गया; लेकिन अभी उससे भी बड़ी बुराइयाँ हैं, जिन्हें हम ख़त्म कर देंगे, यात्री ने कहा।

गाड़ीवान ने झुककर राजकुमार को नमस्कार किया। राजकुमार चला गया।

ग्यारहवाँ यात्री छींकता हुआ बाहर आया–‘आ … क … क… छीं ऽऽऽ।’ और उसका थैला गिर पड़ा। थैले में से ढेर सारे पटाखे निकलकर चारों ओर फैल गए।

‘इतने सारे पटाखे!’ गाड़ीवान खुशी से चिल्लाया।

‘ऐ भैया, ये पटाखे मत लेना। मैंने दीपावली के लिए रखे हैं।’

वह बोला।

‘ठीक … है …।’ गाड़ीवान निराश हो गया।

‘नाम बताओ।’ वह बोला।

‘नवंबर।’ यात्री ने उत्तर दिया।

गाड़ीवान ने गिना। ग्यारह यात्री हो गए। मतलब अभी एक और यात्री अंदर है। उसने आवाज़ लगाई- ‘ए भाई, कौन है अंदर? जल्दी बाहर आओ। बारह बजने वाले हैं।’

तभी सांता क्लॉस जैसे लाल कपड़े पहनकर एक व्यक्ति बाहर आया। उसके पास बहुत सारे उपहार थे और हाथ में एक क्रिसमस ट्री था।

‘नाम बताओ, जल्दी।’

‘सेंट दिसंबर।’ वह बोला।

गाड़ीवान ने जल्दी से उसका नाम लिखा। फिर अपनी गाड़ी का दरवाज़ा बंद किया और अपने घर की ओर चल दिया। इन अजीब यात्रियों के बारे में उसने सबको बताया। ये नाम इतने मज़ेदार थे कि सभी को आज भी याद हैं।

ये सब यात्री कौन थे, कुछ समझ में आया?!!

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