हड़ताल- गृहलक्ष्मी की कहानियां  
Haddtaal

Hindi Kahani: अरे अरे ये सब यहाँ क्यों चला आ रहा है?आज छोटी को क्या हो गया है? अपना काम मुझे कैसे दे दिया?कभी कभी इतनी आलसी हो जाती है कि ये भूल ही जाती हैं,कि हम ये सब काम नहीं कर सकते।

अरे छोटी,ओ छोटी सुनो तो ,क्या हुआ?ओ हो जीजी क्यों शोर कर रही हो?हम वैसे ही बहुत परेशान है।अरे क्या हुआ?बहुत गुस्से में दिख रही हो। जीजी हमने अब सोच लिया है कि अब हम कुछ नहीं काम करने वाले।हमें कुछ समझ में नहीं आ रहा है क्या बोलना चाह रही हो?अच्छे से खुलासा करोगी।

जीजी ये जो इंसान है ना इसको समझ में ही नहीं आता है कि खाना कितना खाना है।अपना पेट नहीं दिखता है बस प्लेट दिखती है। ढेर सारा खाना परोस लेता है,जैसे कभी खाया ही ना हो,अरे कुछ तो रहम करो अपने शरीर के अंदर के अंगों का।बात तो तुम सही कह रही हो छोटी, इंसान इस बात को कभी गंभीरता से नहीं लेता है कि अपने शरीर को कैसे रखना है?हमें भी कुछ दिनों से अजीब सा महसूस तो हो रहा है।

अब कल की घटना मुझे याद आ रही है ये एक शादी में गया था और ऐसे खाना खाया जैसे फिर कभी खाने नहीं मिलेगा।सारा खाना खाने की क्या जरूरत है?हां जीजी- ‘एक तो समझ में नहीं आता है की शादी में इतना सारा खाना क्यों रखते हैं?कितनी बर्बादी करते हैं और आपस में जब मिलते हैं तो कितनी अच्छी बात करते हैं कि देश में गरीबी बढ़ती जा रही है भुखमरी बढ़ रही है।

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बहुत से ऐसे लोग हैं जिनको दो वक्त का क्या एक वक्त का खाना नहीं मिल रहा है।लेकिन जब खुद के खाने की बात आएगी तो सब भूल जाते हैं और टूट पड़ते हैं खाने पर कि हमारा पेट भर जाए।छोटी ये बात तो है और तुम्हें उस दिन की बात याद आ रही है जब ये अपने किसी रिश्तेदार से मिलने अस्पताल गया था।वो भी ज्यादा खाने के कारण अस्पताल में भर्ती हुआ था।

और जिसके अंदर हम दोनों हैं वह उसे वहां पर बहुत ज्ञान देकर आया कि देखो हल्का खाना खाना चाहिए बाहर का का खाना बिल्कुल नहीं खाना है और जैसी ही यह खुद बाहर आया जितने ठेले वहां लगे थे सब में जाकर इस आदमी ने चटकारे ले ले कर खूब खाया।हाँ जीजी उस दिन भी खाना पचाने में हम दोनों की हालत खराब हो गई थी।इसको समझ में नहीं आता है कि हम लोग की भी उम्र हो रही है।यही हाल इस समय के बच्चों का भी है। किसी के घर जाते हैं या कहीं पार्टी में खाने जाते हैं तो कितना खाना लेना है इसका अंदाज ही नहीं है।हाँ छोटी ये बात तो तुमने बिलकुल सच कही है बच्चे वही करते हैं जैसा देखते हैं।

अमीर से अमीर घर के बच्चे किसी पार्टी में जाते हैं तो खाने में ऐसे टूट पड़ते हैं जैसे कभी खाया ना हो जबकि भरा हुआ पेट है,ये बात देखने में बहुत अजीब लगती है वहां भी हम आंतों को ही झेलना पड़ता है और हमारी पूरी कार्यप्रणाली में फर्क पड़ जाता है। हां जीजी जिन बच्चों को सच में ऐसे खाने की जरूरत है उन्हें कभी नहीं मिलता। वे सब आज भी ऐसे खाने को तरसते हैं।

सूखी रोटी खाकर जी रहे हैं।मुझे तो इंसान की मानसिकता नहीं समझ में आती है कि किसी का जन्म उत्सव आ रहा है या कुछ और कार्यक्रम है तो गरीब बच्चों को दान कर दो उनको खिलाकर दुआएं ले लो।उनके पेट की आंतों को पता तक नहीं है कि ऐसे खाने को कैसे पचाते हैं।अब जमाने में इतनी इंसानियत क्यों नहीं है यह देखकर  बहुत बुरा लगता है। इंसान चाहे तो सारी समस्याओं का हल  निकाल सकता है सही सोच से और सही खान-पान से भी जिससे वह फालतू के मानसिक तनाव से भी बचा रहेगा।ये मानसिक तनाव ही सारी समस्याओं की जड़ है जिसका सीधा-सीधा असर पाचन तंत्र में पड़ता है जो हम लोग हैं।

देखो तुमको कुछ कहराने  की आवाज आ रही है इसी आदमी की है जिसके अंदर हम दोनों है।इसने हद्द से ज्यादा खा लिया है और अब पेट पकड़ के बैठा है। इसको अपनी उम्र का ध्यान नहीं है पर अंगों की उम्र का तो ध्यान रखो, अरे हम लोग की पचाने की शक्ति नहीं बची इसकी हरकतों के कारण।

अब पेट ठीक नहीं है तो कुछ घंटे खाना मत खाओ, पर अभी भी यह खाने के बारे में सोच रहा है की हल्का खाना क्या खाऊ और उसको भी जी भर के खाएंगे। कितनी सीधी सी बात है थोड़ी देर मत खाओ हम लोग को भी आराम मिलेगा तो हम अपने आप कार्य करने लग जाएंगे।लो अब देखो रंग बिरंगी दवाइयां चली आ रही है एक दवाई से काम नहीं बनेगा दवाई भी ढेर सारी खाएगा।अब तुम देखना ये सारी दवाइयां इसके मुंह से वापस नहीं की ना तो हमारा नाम भी छोटी आंत नहीं।अब जीजी मैंने भी सोच लिया है मुझे इस आदमी का खाना नहीं पचाना चलो हड़ताल में चलते हैं और इसे भी आज समझ में आएगा कि शरीर के अंगों का यदि ध्यान नहीं रखा तो ऐसे ही हाल होगा।