Hindi Kahani: मेरा नाम रिजवाना है ।मैं कक्षा चार में पढ़ती हूँ। कभी स्नान करने का मेरा मन नहीं करता ।कभी-कभी माँ डांट डपटकर जबरदस्ती नलके के नीचे बैठा देती हैं तो मजबूरीवश नहाना पड़ता है। बालों को धोने की भी इच्छा नहीं होती और पढ़ाई में तो मेरा जी रत्ती भर नहीं लगता ।
आसपास के बच्चे मुझे चिढ़ाते हैं क्योंकि मैं अपने बालों को कंघी नहीं करती तो पड़ोस के बच्चे आइल दानिश और यहाँ तक कि पीहू भी मेरे बालों को देखकर कहती है “तेरे सर पर चिड़िया का घोंसला है” और सारे बच्चे जोर -जोर से हंसने लगते हैं।
जैसे ही मैं विद्यालय जाने के लिए घर से निकलती हूँ मेरे पीछे-पीछे कटाक्ष करने वाले बच्चों का हुजूम भी निकलता है ,जो मुझे विद्यालय तक कुछ न कुछ कह कर छेड़ते रहते हैं ।कोई मेरे बालों को तो कोई मेरे गंदे कपड़ों पर टिप्पणी करता रहता है।
माँ के लाख समझाने के बावजूद भी मैंने साफ- सफाई की ओर कोई ध्यान नहीं दिया। ध्यान दूँ भी तो कैसे सब मुझे पगली जो कहते हैं? सारे बच्चे “वह देखो पगली चल दी पढ़ने के लिए”कहकर मुझे चिढ़ाते हैं। रोज-रोज अपना यह नाम सुनकर मुझे इस नाम से नफरत होने लगी है।
अरे मेरा एक नाम है रिजवाना वह तो इस विद्यालय में भी कोई नहीं लेता। यहाँ तक कि सारे शिक्षक -शिक्षिका मुझे हेय दृष्टि से देखते हैं जैसे पता नहीं मेरे आ जाने मात्र से उन्हें कौन सी दुर्गंध आती है जो अपनी नाक पर रूमाल रख लेते हैं या फिर मुझे ऐसे दिखेंगे जैसे मैं कोई गंदा कीड़ा हूँ। मेरा मन किलसकर रह जाता है।इन सब के व्यवहार ने मुझे थोड़ा कठोर बना दिया है। जब बच्चे मुझे ज्यादा चिढ़ाते हैं तो कभी-कभी लंच टाइम में मैं एक दो बच्चे को चपत भी लगा देती हूँ। किंतु बाद में मेरी शिकायत हैड मैडम के पास पहुंचती है और वह मुझे ऐसी फटकार लगाती हैं…ऐसी फटकार लगाती हैं कि फिर मुझे दोबारा से सभी बच्चों के सामने शर्मिंदा होना पड़ जाता है ।मेरे साथ यही क्रम लगभग पिछले 4 वर्ष से चल रहा है। यह स्कूल आठवीं तक का है। एक रोज ऐसा हुआ कि कक्षा में मैंने एक नई टीचर जी को देखा। उनका बात करने का तरीका इतना प्यारा…इतना शालीन…कि वे हर बच्चे से बहुत प्यार से बात करतीं। पहली बार मैंने देखा कि किसी टीचर ने बच्चों को बिना पिटाई किए पढ़ाया है। वह वही नई वाली मैडम जी थीं, जो हाथ में कभी डंडी लेती ही नहीं थी और शब्दों से भी कभी किसी बच्चे को घायल नहीं करती थी। हर बच्चे को प्रेम से अपनी बात समझा देतीं। मैं अधिकांशतया क्लासरूम में सबसे पीछे बैठती थी क्योंकि पढ़ना तो था ही नहीं बस पीछे बैठे-बैठे पेज पर कोई उल्टी सीधी चित्रकारी करती रहती और रंग लेकर लीपापोती करने बैठ जाती। अधिकांश टीचर तो समझते कि पढ़ रही हूँ। कुछ सोचते “इसका कुछ नहीं हो सकता क्या पढ़ेगी ..?” इसलिए मुझ पर कोई ध्यान भी नहीं देता था ।लेकिन मैं अपना नाम सुनकर चौंक गई ।नई वाली मैडम जी ने मुझे पुकारा
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“रिजवाना इधर आओ बेटा”
मैं हतप्रभ रह गई
अरे मुझे बेटा कहा ..?मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा.. कितना प्यार से बुला रही है.. कहीं मारेंगी तो नहीं.? मैं उनके पास गई डरते …सकुचाते.. उन्होंने मेरे सिर पर हाथ फेरते हुए कहा
“तुम्हारे बाल तो बहुत सुंदर हैं… शैंपू क्यों नहीं करती इनमें…?”
मैं सकपका कर उन्हें देखने लगी
मुझे ऐसे प्रश्न की उम्मीद नहीं थी..
“वह मैडम जी…. दरअसल… मम्मी तो कहती है कि रोज़ नहाया कर …लेकिन मुझे सब बच्चे चिढ़ाते हैं …कहते हैं चिड़िया का घोंसला …चिड़िया का घोंसला… मेरे बालों को देख हँसते हैं.. तो मुझे गुस्सा आने लगता है …इसीलिए मैं अपने बालों का कुछ भी नहीं करती …और न ही साफ रहती हूँ..क्योंकि बच्चे मुझे तब भी चिढ़ाएंगे ..कोई फायदा नहीं नहाने का… बाल धोने का… सब मुझसे चिढ़ते हैं “
“अरे इतनी प्यारी बच्ची से कौन चिढ़ सकता है भला ?देखो तो …”
अपनी प्रशंसा सुनकर रिजवाना मुस्कुरा उठी। उसके चेहरे पर एक अलग ही प्रसन्नता दिखने लगी। जैसे ही कुछ बच्चे उस पर हंसने वाले थे मैडम जी ने उन्हें डांटते हुए कहा
” खबरदार जो कोई रिजवाना के लिए उल्टा- सीधा बोला तो.. कल से मैं किसी के भी मुँह से चिड़िया का घोंसला… या ऐसी वैसी उल्टी -सीधी बातें रिजवाना के लिए सुन न लूँ। यह मेरी बेटी है …जैसे तुम सब मेरे बच्चे हो… समझ गए …?”
बच्चों ने एक स्वर में “यस मैम” कहा।
रिजवाना खिलखिला कर मुस्कुरा उठी।
पता नहीं क्यों नई टीचर जी की बातें उसे बहुत प्यारी लगीं और टीचर जी भी तो सुंदर हैं, कितना साफ रहती हैं.. कितने अच्छे से कक्षा में पढ़ाती हैं। बिना पिटाई किए ही बच्चों को होशियार बना देती हैं। पता नहीं कोई जादू की छड़ी तो नहीं रखती अपने पर्स में..? वैसे कभी देखी तो वह नहीं …पर कोई न कोई जादू तो अवश्य ही करती हैं ..अगले दिन से जादू का असर होने लगा ।रिजवाना स्कूल आई तो सारे बच्चे भौचक्के होकर आंखें फाड़े उसे देख रहे थे ।आज उसकी कुर्ती सलवार धुली हुई… प्रेस की हुई थी और कंधे पर सुंदर से नर्म रेशमी बाल लहरा रहे थे ।बालों में उसने शैंपू ही नहीं किया था, अपितु कंघी करके बालों को सुंदर सी पोनीटेल बनाकर रखा हुआ था।
” कितनी प्यारी लग रही हो .?”
विद्यालय में आते ही नई टीचर जी ने रिजवाना को पास बुलाकर उसके बालों को छूते हुए कहा।
” वाह कितनी सुंदर चोटी बनाई ह रिजवाना… तुम्हारी चोटी किसने बनाई ?”
“मम्मी ने …”
“मम्मी को मम्मी ही बोलती हो…? मम्मी जी कहा करो ..ठीक है …?”
“ठीक है मैडम जी…आगे से ऐसे ही कहूँगी।”
“आज किसी ने तुम्हें चिढ़ाया तो नहीं रास्ते में..?”
” बबलू ने चिढ़ाया था… कह रहा था आज तो हीरोइन लग रही है..”
तभी नई वाली टीचर जी ने बबलू को ऊंची आवाज में अपने पास बुलाया
“बबलू इधर आओ “
“आज क्यों चिढ़ाया इसे ..?”
“मैडम जी कभी इसे देखा नहीं ना इस तरह… नहाए धोए ..तो एकदम से लगा कि हाँ हीरोइन जैसी लग रही है।”
सारे बच्चे हंस दिए। नई टीचर जी भी धीरे-धीरे मुस्कुरा दीं।और रिजवाना से बोली
“सुनो तुम्हें हीरोइन बनना पसंद है या चिड़िया का घोंसला बनना?”
” मैडम जी हीरोइन बनना ..टीवी पर देखती हूँ न.. बड़ी प्यारी लगती हैं सब हीरोइन… पर मम्मी मुझे टीवी भी नहीं देखने देती..”
“हाँ बेटा माँ सही करती हैं। तुम्हारी पढ़ाई का टाइम इसे व्यर्थ जाता है ।सुनो पढ़ाई के बाद थोड़ा समय निकालकर आधे घंटे के लिए टीवी देख लिया करो ।”
“पता है मैडम जी मुझे घर पर भी सभी चिढ़ाते हैं। पापा… अम्मा.. यहाँ तक कि बड़ी बहन भी… और छोटा भाई भी.. कहते हैं यह तो पगली है पगली ..यह क्या पढ़ेगी? पांचवी के बाद इसका नाम कटवा देंगे..।”
” ठीक है अबकी बार शिक्षक -अभिभावक मीटिंग में अपनी माताजी को मेरे पास भेज देना।
और फिर अगली बार पेरेंट्स टीचर मीटिंग में रिजवाना की माताजी नई टीचर मैडम जी से मिलने के लिए आई ।साथ में रिजवाना भी थी। रिजवाना ने कान में कुछ कहा जिससे उसकी माँ ने हाथ जोड़कर नई टीचर जी को अभिवादन किया। रिजवाना की माताजी ने बोलना प्रारंभ किया
“हमारी रिजवाना आपकी बहुत तारीफ करती है जी मैडम जी। आपने तो इसे बदल ही दिया ।इस पगली को कोई नहीं समझा पाया पर पता नहीं आपने कौन सी घुट्टी इसे पिलाई? आपकी सारी बातें मानती है ।रात को पढ़ती भी है। लेख भी सुधरने लगा है। कहती है बड़ी होकर डीएम बनूंगी। मैडम जी डी०एम० क्या होता है?”
” अरे जब बन जाएगी ना रिजवाना ..तब खुद समझ जाएंगी आप… यह देश का प्रशासनिक सेवा में एक बहुत ही बड़ा और ऊँचा पद होता है ।आप देखना रिजवाना कितना नाम रोशन करेगी आपका ।आप बस इसकी पढ़ाई कभी रुकवाना मत और हाँ पापा अम्मा और इसकी बड़ी बहन और छोटे भाई को भी समझा देना कि इसके मुंह पर इस पगली न कहा करें ।”
रिजवाना की माता जी को अपनी भूल का एहसास हुआ यदि वही रिजवाना को पागल कहेंगे तो सारी दुनिया ही उसे पागल समझेगी। घर जाकर रिजवाना की माताजी ने सारे परिवार को यह बात बताई जो नई मैडम जी ने उसे पेरेंट्स मीटिंग में कही थी ।सभी को बात समझ में आ गई और सब का व्यवहार रिजवाना के प्रति बदल गया ।अब रिजवाना भी कहां पहले जैसी रह गई थी? पढ़ाई में उसकी लगन और मेहनत धीरे-धीरे रंग लाने लगी। वह कक्षा में अच्छे अंकों से उत्तीर्ण होने लगी और फिर ऐसा भी समय आया कि उसने कक्षा 5 में अपने विद्यालय को टॉप किया। स्वतंत्रता दिवस पर रिजवाना को नई टीचर मैडम जी ने एक स्कूल बैग उपहार स्वरूप दिया ।रिजवाना उनके पैरों में झुक गई किंतु मैडम जी ने उसे बीच में ही रोक लिया
” नहीं नहीं… यह क्या कर रही हो ..?रिजवाना लड़कियाँ पैर नहीं छूती।”
“नहीं मैडम जी छूने दीजिए।।। आप मेरे लिए मात्र गुरु नहीं… अपितु मुझे बनाने वाली कुम्हार है ।मैं तो पता नहीं किस धुन में रहती थी… कुछ समझती ही नहीं थी ..किसी बात का कोई असर ही नहीं होता था.. किंतु आपने इस अनपढ़ जाहिल पगली लड़की को पढ़ना सिखा दिया। आप जैसा गुरु पाकर मैं धन्य हो गई ।
“अरे बहुत बड़ी-बड़ी बातें करने लगी हो .क्या कबीर दास जी को पढ़ रही हो आजकल?”
रिजवाना मुस्कुरा कर रह गई ।इसके बाद रिजवाना की पढ़ाई का सफर कभी रुका ही नहीं ।उसने कक्षा 5 के बाद इसी विद्यालय से कक्षा 8 तक की पढ़ाई की। जब नई मैडम जी का ट्रांसफर विद्यालय से हुआ तो रिजवाना फूट फूट कर रोई जैसे पता नहीं कोई अपना ही उससे जुदा हो रहा हो। किंतु मैडम जी के शब्द उसके लिए सदैव ही मार्गदर्शन बन कर रहे ।जाते-जाते भी उन्होंने रिजवाना से यही कहा
” रिजवाना हमेशा जीवन में आगे बढ़ाने की कोशिश करना। सीखने की कोई उम्र नहीं होती। व्यक्ति किसी भी उम्र में सीख सकता है। बस सीखने के लिए मेहनत की आवश्यकता होती है ।परिश्रम की चाबी से भाग्य का द्वारा अवश्य ही खुलता है। श्रम करने से ही जीत मिलती है। चींटी को नहीं देखती कितनी बार दीवार पर चढ़ती है… गिरती है… फिर संभालती है… और आखिरकार अपनी मंजिल को प्राप्त कर ही लेती है। तुम भी कभी मत रुकना.. और जो तुमने कहा है उस सपने को अवश्य ही पूरा करना… मेरा आशीर्वाद सदैव ही तुम्हारे साथ रहेगा.. किसी भी मदद की जरूरत हो तो इस मोबाइल नंबर पर तुम मुझसे संपर्क कर सकती हो..”
उन्होंने रिजवाना को अपना मोबाइल नंबर भी लिख कर दिया। रिजवाना की आंखों में आभार और असीम श्रद्धा अपनी टीचर जी के लिए उमड़ आई ।वह उनकी सीख को हृदय में धरकर पढ़ाई के क्षेत्र में नाम रोशन करने लगी।
दसवीं कक्षा में उसने अच्छी रैंक हासिल की फिर 12वीं में उसे छात्रवृत्ति मिली। उसका अच्छा आचरण और पढ़ाई के प्रति लगन देखकर उसकी फीस भी माफ कर दी गई ।उसने प्रथम श्रेणी में स्नातक उत्तीर्ण किया। इसके पश्चात उसने सिविल सर्विस की तैयारी प्रारंभ कर दी।। पूरी मेहनत और लगन के साथ उसने स्वयं को पढ़ाई में झोंक दिया। घंटो घंटो वह सर झुकाए पढ़ती रहती ।माँ की उनके काम में मदद भी करती हालांकि अम्मा तो उसे देखकर अक्सर बड़बड़ करती रहती
“पता नहीं कौन सा भूत सवार हो गया है..? किताब लिए बैठी रहती है.. ऐसे बैठने से कैसे काम चलेगा? और भी तो भाई बहन हैं.. यही पढ़ कर कलेक्टर बनेगी…हुँह… पता नहीं क्या हो गया है इस लड़की को ..?”
लेकिन उनकी नकारात्मक बातों का रिजवाना पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता क्योंकि अब भी मैडम जी के वे शब्द उसके कानों में गूँजते रहते हैं कि
“परिश्रम की चाबी लेकर आगे बढ़ते रहना..”
रिजवाना ने परिश्रम करना सीख लिया और उसकी लगन और मेहनत एक दिन रंग लाई और 10 साल के अथक परिश्रम के बाद रिजवाना सिविल सेवा परीक्षा में उत्तीर्ण हो गई। लिखित परीक्षा के पश्चात जब इंटरव्यू हुआ तो इंटरव्यू में भी उसका चयन हो गया ।गांव के साथ-साथ उसने पूरे जनपद का नाम भी रोशन कर दिया ।आज अखबार में उसकी फोटो आई। फोटो देखकर माता-पिता फूले नहीं समा रहे हैं।रिजवाना के घर के आगे एक गाड़ी आकर रुकी रिजवाना ने कौतूहल वश बाहर जाकर देखा तो उसकी मैडम जी गाड़ी से उतर रही हैं ।मानो रिजवाना को उसके परिश्रम का प्रतिफल मिल गया हो। यही तो वह चाहती थी कि एक बार उस देवी के दर्शन हो जायें, जिनकी प्रेरणा से आज इस मुकाम तक पहुंची है ।रिजवाना दौड़कर उनके पैरों में झुकने लगी लेकिन मैडम जी ने उन्हें अपने सीने से लगा लिया। दोनों में से किसी ने भी एक भी शब्द एक -दूसरे से नहीं कहा बस अश्रु धार बह निकली। सब कुछ वर्णित हो गया।कुछ भी कहा न गया…कुछ भी अनकहा भी न रहा। भावातिरेक से कंठ अवरुद्ध हो गया ।आज एक पगली लड़की ने गुरु की प्रेरणा पाकर लोगों को डी०एम ० बनकर दिखा दिया।
